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रिम झिम रिम झिम बारिश होने लगती है

फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़

यारों में जब रंजिश होने लगती है
चुपके चुपके साज़िश होने लगती है

आँखों में जब सोज़िश होने लगती है
रिम झिम रिम झिम बारिश होने लगती है

बाबू जी का साया सर से उठते ही
धरती की पैमाइश होने लगती है

तुम जब मेरे साथ नहीं होते जानाँ
मुझ पर ग़म की यूरिश होने लगती है

मुझसे कोई काम अटक जाता है जब
उनको मेरी काविश होने लगती है

जब जब भी मैं नाम तुम्हारा लिखता हूँ
हाथों में क्यूँ लरज़िश होने लगती है

बच्चे ग़ुरबत को क्या समझें उनकी तो
रोज़ नई फ़रमाइश होने लगती है

मुझसे कोई भूल "समर" हो जाये तो
महशर जैसी पुरसिश होने लगती है

---

रंजिश :- दुश्मनी
साज़िश :- षडयंत्र
सोज़िश :- जलन
पैमाइश :- माप (नपती)
यूरिश :- हमला
काविश :- तलाश
लरज़िश :- कम्पन्न
ग़ुरबत :- ग़रीबी
महशर :- महाप्रलय के बाद ईश्वर जिस मैदान में हर इंसान से उसके कर्मों का हिसाब लेगा ।
पुरसिश :- पूछताछ (जवाब तलबी)
___

समर कबीर
मौलिक/ अप्रकाशित

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Comment by Samar kabeer on July 5, 2017 at 5:52pm
जनाब निलेश'नूर'साहिब आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिये आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
Comment by Sushil Sarna on July 5, 2017 at 2:57pm

जब जब भी मैं नाम तुम्हारा लिखता हूँ
हाथों में क्यूँ लरज़िश होने लगती है

बच्चे ग़ुरबत को क्या समझें उनकी तो
रोज़ नई फ़रमाइश होने लगती है


गज़ब आदरणीय समर कबीर साहिब बहुत ही खूबसूरत अहसासों से लबरेज़ है आपकी ये बेहतरीन ग़ज़ल। दिल मुबारक बाद कबूल फरमाएं से सर।

Comment by नाथ सोनांचली on July 5, 2017 at 5:40am
आद0 समर कबीर साहब प्रणाम, बेहद उम्दा गजल। मतले महफ़िल लूट लिया।और सबसे अच्छी बात आपने कतजिन उर्दू शब्दो के जो अर्थ लिख दिए उससे हमे गजल को समझने में और राहत मिली। आपको नमन,आपको अनन्त बधाइयाँ।
Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 4, 2017 at 9:36pm
वाह आदरणीय बहुत ही शानदार ग़ज़ल हुई..सादर
Comment by Tasdiq Ahmed Khan on July 4, 2017 at 9:17pm
मुहतरम जनाब समर कबीर साहिब आदाब,बहुत ही अच्छी ग़ज़ल हुई है,दाद के साथ मुबारकबाद क़ुबूल फरमायें
Comment by विनय कुमार on July 4, 2017 at 7:47pm

वाह, वाह, क्या गजब की गजल हुई है आ मोहतरम समर कबीर साहब, पढ़कर आनंद आ गया| बहुत बहुत बधाई आपको 

Comment by narendrasinh chauhan on July 4, 2017 at 6:38pm

वाह , खूब सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करे 

Comment by Mohammed Arif on July 4, 2017 at 12:31pm
यारों में जब रंजिश होने लगती है वाह!वाह!! क्या ख़ूब अंदाज़ है ।
चुपके चुपके साज़िश होने लगती है
कोई एक शे'र हो तो गिनाऊँ ,यहाँ तो हर शे'र लाजवाब है । जी चाहता है सदियों तक यही ग़ज़ल गुनगुनाता रहूँ ।
शे'र दर शे'र दाद के साथ दिली मुबारकबाद आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब ।
Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 4, 2017 at 8:16am

वाह वाह ..मेरा बहुत दिनों बाद इधर आना हुआ और पहली ही घजल आपकी मिल गयी..
क्या कहने 

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