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दामन को तीरगी से बचाते चले गए - सलीम रज़ा रीवा

221 2121 1221 212 
दामन को तीरगी से बचाते चले गए
ईमाँ की रोशनी में  नहाते चले गए

 -
हम दर-बदर की ठोकरे खाते चले गए
फिर भी तराने प्यार के गाते चले गए
 -
कोशिश तो की भंवर ने डुबोने की बारहा
हम कश्ती-ए-हयात बचाते चले  गए

 -

रुसवाईयों के डर से कभी बज़्में नाज़ में
हंस-हंस के दिल का दर्द छुपाते चले गए

 -

अपना रहा ख़्याल न कुछ होश ही रहा
आँखों में उनकी हम तो समाते चले गए

 -

करता है जो सभी के मुक़द्दर का फ़ैसला
उसकी रज़ा की शम्अ जलाते चले गए

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Comment by SALIM RAZA REWA on December 17, 2017 at 8:29pm
आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया सुरेन्द्र नाथ सिंह 'कुशक्षत्रप' जी.
Comment by SALIM RAZA REWA on December 17, 2017 at 8:28pm
बहुत शुक्रिया लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी
Comment by नाथ सोनांचली on December 11, 2017 at 4:49am

आद0 सलीम जी सादर अभिवादन, बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल कही आपने, शैर दर शैर बधाई देता हूँ। सादर

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 10, 2017 at 2:15pm

बहुत खूब । हार्दिक बधाई ।

Comment by SALIM RAZA REWA on December 8, 2017 at 7:48am

काली प्रसाद जी,

ग़ज़ल को सराहने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद, 

Comment by SALIM RAZA REWA on December 8, 2017 at 7:47am

आरिफ साहब, महब्बत सलामत रहे, 

Comment by SALIM RAZA REWA on December 8, 2017 at 7:46am

जनाब अफरोज साहब,

आपके ख़ुलूश और महब्बत के लिए शुक्रिया, 

Comment by SALIM RAZA REWA on December 8, 2017 at 7:45am

श्याम नारायण जी ग़ज़ल पर आपकी सराहना के लिए धन्यवाद, 

Comment by SALIM RAZA REWA on December 8, 2017 at 7:44am

जनाब तस्दीक़ अहमद साहब,

आपकी ग़ज़ल पर शिर्कत और आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया, 

Comment by Kalipad Prasad Mandal on December 6, 2017 at 8:08pm

आ सलीम रज़ा साहिब आदाब , सभी अशआर बहुत सुन्दर है बधाई स्वीकार करें 

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