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ग़ज़ल- मिला कुछ नहीं जाँच पड़ताल में।

बह्र- फऊलुन फऊलुन फऊलुन फउल

मग़रमच्छ घड़ियाल को जाल में।
फँसा कर रहेंगे वो हरहाल में।

खुदा जाने होंगी वो किस हाल में।
मेरी बेटियाँ अपनी ससुराल में।

निकालो नहीं बाल की खाल को,
नहीं कुछ रखा बाल की खाल में।

नतीजा सिफर का सिफर ही रहा,
मिला कुछ नहीं जाँच पड़ताल में।

मिनिस्टर का फरमान जारी हुआ,
गधे बाँधे जायेंगे घुड़साल में।

हुई हेकड़ी सारी गुम उसकी तब,
तमाचा पड़ा वक्त का गाल में।

कभी जिसमें पानी की बूँदें न थीं।
कमल खिल रहे हैं उसी ताल में।

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Ram Awadh VIshwakarma on January 16, 2018 at 9:50am

आदरणीय लक्ष्मण धामी जी ग़ज़ल सराहना के लिये बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on January 16, 2018 at 7:16am

अच्छी गजल हार्दिक बधाई ।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on January 15, 2018 at 9:27am

आदरणीय सुरेन्द्रनाथ सिंह जी आप सही फरमारहे हैं.शेर में परिवर्तन कर लूँगा। सादर आभार टिप्पणी क लिये।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on January 15, 2018 at 9:25am

आदर्णीया कालीपद प्रसाद जी अमूल्य टिप्पणी के लिये  सादर आभार।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on January 15, 2018 at 9:23am

आदर्णीय समर कबीर साहब आपके सुझाव के अनुसार संशोधन कर लूँगा। अमूल्य सुझाव के लिये बहुत बहुत शुक्रिया।

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on January 15, 2018 at 9:21am

आदरणीय आरिफ साहब ग़ज़ल पसन्द आई। आपने हौसला बढ़ाया। इसके लिये शुक्रिया।

Comment by नाथ सोनांचली on January 15, 2018 at 6:19am

आद0 राम अवध जी सादर अभिवादन।बढ़िया ग़ज़ल हुई है, बधाई । 

गाल में' उचित प्रतीत नहीं होता सादर

Comment by Kalipad Prasad Mandal on January 14, 2018 at 8:06pm

आ राम अवध जी , गज़की प्रयास अच्छी हुई है |बधाई कुबूल करें 

Comment by Samar kabeer on January 14, 2018 at 12:38pm

जनाब  राम अवध जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।

'निकालो नहीं बाल की खाल को'

इस मिसरे को अगर यूँ कहें तो उचित होगा:-

'निकालो नहीं बाल की खाल तुम'

Comment by Mohammed Arif on January 14, 2018 at 10:37am

आदरणीय राम अवध जी आदाब,

                          बहुत ही अच्छी ग़ज़ल । हर शे'र बढ़िया । दिली मुबारकबाद क़ुबूल करें ।

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