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हमने हरिक उम्मीद का पुतला जला दिया
दुश्वारियों को पांव के नीचे दबा दिया
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मेरी तमाम उँगलियाँ घायल तो हो गईं
लेकिन तुम्हारी याद का नक्शा मिटा दिया
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मैंने तमाम छाँव ग़रीबों में बांट दी
और ये किया कि धूप को पागल बना दिया
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उसके हँसीं लिबास पे इक दाग़ क्या लगा
सारा ग़ुरूर ख़ाक़ में उसका मिला दिया
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जो ज़ख्म खाके भी रहा है आपका सदा
उस दिल पे फिर से आपने खंज़र चला दिया
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उसने निभाई ख़ूब मेरी दोस्ती " रज़ा "
इल्ज़ाम-ए-क़त्ल-ए-यार मुझी पर लगा दिया
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