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कविता-- लाजमी है अब मरना

हमें अब मरना होगा
अपने आदर्शों के साथ
गला घोंटना होगा
अपने ही सिद्धांतों का
सूली पर चढ़ाना होगा मान्यताओं को
इन सबका औचित्य समाप्त - सा हो गया है
सच की अँतड़ियाँ निकल आई है
काल के दर्पण पर कुछ भद्दे चेहरें
मुँह चिढ़ा रहे है खोखले मानव को
दिन सारे दहशत में झुलसते रहते हैं
दोपहर को लू लग गई है
कँपकँपी-सी लगी रहती है शाम को
रातें आतंकी के विस्फोट -सी लगती है
हमें अब मरना होगा अपने आंदोलनों के साथ
भूख हड़ताल और आमरण अनशन के साथ
क्योंकि -
सरकार ने ज्ञापन लेना बंद कर दिया है
वह ज्ञापन लेने के नए टेण्डर जारी करेगी
जनप्रतिनिधि सारे सो रहे हैं
ख़ामोश ! अगर उनको जगाया तो
देश में अभी नारी उत्पीड़न
दुष्कर्म और बलात्कार का उत्सव चल रहा है
लूट , हत्या , डकैती , किसानों की आत्महत्या
भूख , ग़रीबी दिखाते-दिखाते
मीडिया की भी अब साँसें फुलने लगी है
ऐसे में लाजमी है हम सबका मरना ।
मौलिक एवं अप्रकाशित ।

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 27, 2018 at 10:20am

आ. भाई आरिफ जी, बेहतरीन प्रस्तुति हुई है हार्दिक बधाई ।

Comment by Mohammed Arif on February 25, 2018 at 10:43pm

दाद-ओ तहसीन और उत्साहजन टिप्पणी का बहुत-बहुत आभार आली जनाब मोहतरम समर कबीर साहब । आपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हो गया । 

Comment by Samar kabeer on February 25, 2018 at 10:12pm

जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब आदाब,बहुत उम्दा और शानदार कविता,इस प्रस्तुति पर दिल से ढेरों बधाई स्वीकार करें ।

Comment by Mohammed Arif on February 25, 2018 at 2:51pm

बेहद सटीक और सारगर्भित , उत्सासजनक टिप्पणी के लिए दिल की अथाह गहराइयों से आभार आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी । लेखन सार्थक हो गया ।

                 इस पर एक अच्छी लघुकथा भी लिखी जा सकती है , आपके इस अमूल्य सुझाव पर ज़रूर विचार करूँगा ।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on February 25, 2018 at 1:49pm

बेहद कटाक्षपूर्ण तीखी और यथार्थपूर्ण विचारोत्तेजक रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब मोहम्मद आरिफ़ साहिब। कमाल कर दिया है। इसे आप बेहतरीन लघुकथा का रूप भी दे सकते हैं प्रतीकात्मक/ विवरणात्मक शैली में!

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