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जीने की आरज़ू तो है सब को खुशी के साथ - सलीम रज़ा रीवा

221 2121 1221 212 

जीने की आरज़ू तो है सब को खुशी के साथ

ग़म भी लगे हुए हैं मगर ज़िन्दगी के  साथ

-  

नाज़-ओ-अदा के साथ कभी बे-रुख़ी के साथ 

दिल में उतर  गया वो बड़ी सादगी के साथ

-  

आएगा मुश्किलों में भी जीने का फ़न तुझे

कुछ दिन गुज़ार ले तू मेरी ज़िन्दगी के साथ

-  

ख़ून-ए- जिगर निचोड़ के रखते हैं शेर में

यूँ ही नहीं है प्यार हमें  शायरी के साथ 

-  

अच्छी तरह से आपने जाना नहीं जिसे

यारी कभी न कीजिये उस अजनबी के साथ

-  

मुश्किल में कैसे जीते हैं यह उनसे पूछिये

गुज़रा है जिनका वक़्त सदा मुफ़लिसी के साथ

-  

उसपर न ऐतबार  कभी कीजिए  " रज़ा 

धोका किया है जिसने हमेशा सभी के साथ

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मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by नाथ सोनांचली on February 7, 2018 at 7:06pm

आद0 सलीम जी सादर अभिवादन। बहुत बेहतरीन ग़ज़ल। उम्दा मतला,वाह वाह। हरेक शैर में उम्दा ख्यालात बुना है आपने। बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on February 7, 2018 at 6:33pm

वाह वाह आदरणीय सलीम जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही..सादर

Comment by SALIM RAZA REWA on February 7, 2018 at 5:47pm
अजय जी बहुत बहुत शुक्रिया
Comment by SALIM RAZA REWA on February 7, 2018 at 5:47pm
चौहान साहब बहुत बहुत शुक्रिया.
Comment by Ajay Kumar Sharma on February 6, 2018 at 9:15pm

बहुत सुन्दर रचना,

हार्दिक बधाई...

Comment by narendrasinh chauhan on February 6, 2018 at 11:41am

खूब सुंदर रचना 

Comment by SALIM RAZA REWA on February 5, 2018 at 7:37pm
जनाब समर साहब आपकी नज़रे इनायत और हौसला अफज़ाई के लिए दिली शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on February 5, 2018 at 7:36pm
जनाब नादिर ख़ान साहिब,
बहुत दिनो में आपकी शिर्कत हुई है.. ग़ज़ल में शिरकत के लिए शुक्रिया
Comment by SALIM RAZA REWA on February 5, 2018 at 7:34pm
मुहतरमा रक्क्षीता जी,
आपकी महब्बत के लिए शुक्रिया.
Comment by SALIM RAZA REWA on February 5, 2018 at 7:33pm
जनाब आरिफ साहब,
ग़ज़ल पर आपकी शिरक़त और हौसला अफज़ाई के लिए दिली शुक्रिया टंकण गलती सही कर ली जाएगी.

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