Comments - तू ही नहीं मैं भी तो हूँ (ग़ज़ल) - Open Books Online2024-03-29T08:30:09Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1001327&xn_auth=noआदरणीय समर कबीर साहब, आपकी इस…tag:openbooksonline.com,2020-02-23:5170231:Comment:10016132020-02-23T10:01:00.186Zरवि भसीन 'शाहिद'http://openbooksonline.com/profile/RaviBhasin
<p>आदरणीय समर कबीर साहब, आपकी इस्लाह और मार्गदर्शन के लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ।</p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहब, आपकी इस्लाह और मार्गदर्शन के लिए तह-ए-दिल से आपका शुक्रिया अदा करता हूँ।</p> सबसे पहली बात ये ध्यान में रख…tag:openbooksonline.com,2020-02-23:5170231:Comment:10014722020-02-23T09:32:11.604ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>सबसे पहली बात ये ध्यान में रखें कि शाइर को अपने अशआर की तशरीह कभी नहीं करना चाहिए,क्योंकि पाठक अपने दिमाग़ से ग़ज़ल पढ़ता और समझता है ।</p>
<p></p>
<p>'सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ<br></br>हादसों का सिलसिला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'</p>
<p>इस मतले को आपके बताये भाव के अनुसार यूँ किया जा सकता है:-</p>
<p>'सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ</p>
<p>हादिसों से आशना तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'</p>
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<p><br></br>'क्या हुआ तकमील तेरी और न मेरी हो सकी<br></br>ख़ल्क़ का अहद-ए-वफ़ा तू ही नहीं…</p>
<p>सबसे पहली बात ये ध्यान में रखें कि शाइर को अपने अशआर की तशरीह कभी नहीं करना चाहिए,क्योंकि पाठक अपने दिमाग़ से ग़ज़ल पढ़ता और समझता है ।</p>
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<p>'सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ<br/>हादसों का सिलसिला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'</p>
<p>इस मतले को आपके बताये भाव के अनुसार यूँ किया जा सकता है:-</p>
<p>'सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ</p>
<p>हादिसों से आशना तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'</p>
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<p><br/>'क्या हुआ तकमील तेरी और न मेरी हो सकी<br/>ख़ल्क़ का अहद-ए-वफ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'</p>
<p>इस शैर को हम ऐसे ही रहने देते हैं ।</p>
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<p><br/>'क्या ख़बर आये कहाँ से और जाएँगे किधर<br/>रस्म-ए-दुनिया की ख़ता तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'</p>
<p>इस शैर को भी हम ऐसे ही रहने देते हैं ।</p>
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<p>'जो हक़ीक़त है वो ग़ैब-ए-ग़ैब हो ये क्या ख़बर<br/>असलियत से यूँ जुदा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'</p>
<p>इस मिसरे में 'ग़ैब-ए-ग़ैब' का अर्थ होगा ग़ैब का ग़ैब,जो अर्थहीन है,ऊला यूँ कर सकते हैं:-</p>
<p>'जो हक़ीक़त है वो सारी ग़ैब के पर्दे में है'</p>
<p>बाक़ी शुभ शुभ ।</p> आदरणीय समर कबीर साहब, सादर प्…tag:openbooksonline.com,2020-02-23:5170231:Comment:10014712020-02-23T08:54:12.090Zरवि भसीन 'शाहिद'http://openbooksonline.com/profile/RaviBhasin
<p>आदरणीय समर कबीर साहब, सादर प्रणाम। ग़ज़ल को अपना कीमती वक़्त देने के लिए और अपनी अमूल्य राय देने के लिए आपका बेहद शुक्रगुज़ार हूँ। सर, आपके कहने पर मैंने दोबारा अशआ'र को ध्यान से पढ़ा है।</p>
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<p>//सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ<br></br>हादसों का सिलसिला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ//<br></br>इसमें मेरा भाव ये है कि तू भी मेरे ही जैसा है, हम दोनों सब से नाराज़ हैं क्यूंकि क़दम क़दम पर हादिसात के शिकार होते चले आये हैं, और वो हासिल नहीं कर पाए जो चाहा...</p>
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<p>//क्या हुआ तकमील तेरी…</p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहब, सादर प्रणाम। ग़ज़ल को अपना कीमती वक़्त देने के लिए और अपनी अमूल्य राय देने के लिए आपका बेहद शुक्रगुज़ार हूँ। सर, आपके कहने पर मैंने दोबारा अशआ'र को ध्यान से पढ़ा है।</p>
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<p>//सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ<br/>हादसों का सिलसिला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ//<br/>इसमें मेरा भाव ये है कि तू भी मेरे ही जैसा है, हम दोनों सब से नाराज़ हैं क्यूंकि क़दम क़दम पर हादिसात के शिकार होते चले आये हैं, और वो हासिल नहीं कर पाए जो चाहा...</p>
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<p>//क्या हुआ तकमील तेरी और न मेरी हो सकी<br/>ख़ल्क़ का अहद-ए-वफ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ//<br/>सर, इसमें 'क्या हुआ' का भाव है 'कोई बात नहीं, फ़िक्र ना कर' – इस सृष्टि का वादा है तुझसे, मुझसे और सभी से कि उनको fulfillment मिलेगी, और वो अपनी full potential को achieve करेंगे, अन्यथा बनाने वाले ने बनाया ही न होता, इसलिए दिल में उम्मीद रख...</p>
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<p>//क्या ख़बर आये कहाँ से और जाएँगे किधर<br/>रस्म-ए-दुनिया की ख़ता तू ही नहीं मैं भी तो हूँ//<br/>सर, यहाँ रस्म-ए-दुनिया से मेरा इशारा विवाह करके नई रूहों को दुनिया में लाने की तरफ़ है – हम लोग बच्चे पैदा करते हैं, ये जानते हुए भी कि जीवन का उद्देश्य क्या है हमें नहीं पता, और जीवन के बाद आगे क्या है, वो भी हम नहीं जानते, बस एक रस्म बन गई है...</p>
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<p>//इस मिसरे में 'मक़तल' को बज़्म कहना उचित नहीं,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-<br/>'यार मक़तल में नया तू ही नहीं मैं भी तो हूँ//<br/>जी सर, बहुत बेहतर है...</p>
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<p>//जो हक़ीक़त है वो ग़ैब-ए-ग़ैब हो ये क्या ख़बर'<br/>इस मिसरे में 'ग़ैब-ए-ग़ैब' की तरकीब उचित नहीं//<br/>सर, इस शेर को मैंने थोड़ा तब्दील कर लिया है:<br/> जो नुमायाँ है वो ग़ैब-ए-ग़ैब हो ये क्या ख़बर<br/> असलियत से यूँ जुदा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ<br/>भाव ये है कि जो हमें दिखता है और जिसे हम reality समझते हैं, क्या पता वो दर-हक़ीक़त ऐसी छुपी हुई बात हो जो हमें कभी समझ ही नहीं आ सकती, क्या पता वो 'mystery of mysteries' हो...</p>
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<p>//या तो ले जाऊँगा सब कुछ या नहीं कुछ चाहिए<br/>अपनी ज़िद पर यूँ अड़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ//<br/>सर, इस शेर में भाव ये है कि हम सभी ज़िद्द पर अड़े होते हैं कि जीवन में सभी कुछ जो हासिल करना चाहते हैं, वो मिले, और हम compromise करने के लिए तैयार नहीं होते...</p>
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<p>आदरणीय समर कबीर जी, अपनी बात कहने के लिए अंग्रेज़ी के अलफ़ाज़ इस्तेमाल करने के लिए माज़रत चाहता हूँ – दरअस्ल अंग्रेज़ी का टीचर हूँ और हिंदी/उर्दू दोनों कमज़ोर हैं। आपकी टिप्पणी से मुझे ये बात तो स्पष्ट हो गई है कि अगर मुझे इन अशआ'र के बारे में इतना कुछ समझाना पड़ रहा है, तो इसका मतलब है कि कुछ ना कुछ कमी रह गई ग़ज़ल की तख़लीक़ में, वैसे बड़ा मन लगा कर लिखा था इसको...</p>
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<p>आप ये सन्देश पढ़ लें तो आपको फ़ोन करने की जुर्रत करने का हौसला जुटाता हूँ। सादर...</p>
<p></p> आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिव…tag:openbooksonline.com,2020-02-23:5170231:Comment:10016102020-02-23T07:03:47.028Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिवादन । आपके मार्गदर्शन में बहुतकुछ नया सीखने समझने को मिलता है । इस ज्ञानवर्धन के लिए आभार..</p>
<p>आ. भाई समर कबीर जी, सादर अभिवादन । आपके मार्गदर्शन में बहुतकुछ नया सीखने समझने को मिलता है । इस ज्ञानवर्धन के लिए आभार..</p> जनाब रवि भसीन 'शाहिद' जी आदाब…tag:openbooksonline.com,2020-02-23:5170231:Comment:10014662020-02-23T06:37:25.467ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब रवि भसीन 'शाहिद' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>'सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ</span><br></br><span>हादसों का सिलसिला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'</span></p>
<p><span>मतले के दोनों मिसरों में रब्त पैदा नहीं हो सका,देखियेगा ।</span></p>
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<p><span>'क्या हुआ तकमील तेरी और न मेरी हो सकी<br></br>ख़ल्क़ का अहद-ए-वफ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'</span></p>
<p><span>इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं,देखियेगा…</span></p>
<p>जनाब रवि भसीन 'शाहिद' जी आदाब,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा हुआ है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
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<p><span>'सारी दुनिया से ख़फ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ</span><br/><span>हादसों का सिलसिला तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'</span></p>
<p><span>मतले के दोनों मिसरों में रब्त पैदा नहीं हो सका,देखियेगा ।</span></p>
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<p><span>'क्या हुआ तकमील तेरी और न मेरी हो सकी<br/>ख़ल्क़ का अहद-ए-वफ़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'</span></p>
<p><span>इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं,देखियेगा ।</span></p>
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<p><span>'क्या ख़बर आये कहाँ से और जाएँगे किधर<br/>रस्म-ए-दुनिया की ख़ता तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'</span></p>
<p><span>इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है,देखियेगा ।</span></p>
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<p><span>'बज़्म-ए-मक़तल में नया तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'मक़तल' को बज़्म कहना उचित नहीं,मिसरा यूँ कर सकते हैं:-</span></p>
<p><span>'यार मक़तल में नया तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'</span></p>
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<p><span>'जो हक़ीक़त है वो ग़ैब-ए-ग़ैब हो ये क्या ख़बर'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'ग़ैब-ए-ग़ैब' की तरकीब उचित नहीं ।</span></p>
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<p>'या तो ले जाऊँगा सब कुछ या नहीं कुछ चाहिए<br/>अपनी ज़िद पर यूँ अड़ा तू ही नहीं मैं भी तो हूँ'</p>
<p>इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं,ऊला बदलने का प्रयास करें ।</p>
<p>मेरा मोबाइल नम्बर नोट कर लें,समय मिलते ही बात कर लें 09753845522</p> आदरणीय लक्ष्मण भाई, ग़ज़ल पढ़ने…tag:openbooksonline.com,2020-02-20:5170231:Comment:10012342020-02-20T06:07:43.117Zरवि भसीन 'शाहिद'http://openbooksonline.com/profile/RaviBhasin
<p>आदरणीय लक्ष्मण भाई, ग़ज़ल पढ़ने के लिए और हौसला बढ़ाने के लिए बहुत शुक्रिया। इस मंच पर मैं आपकी सक्रियता, सकारात्मक प्रतिक्रिया, और सभी को प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से सराहना करता हूँ। सलामत रहें, और ख़ूब अच्छा लिखते रहें।</p>
<p>आदरणीय लक्ष्मण भाई, ग़ज़ल पढ़ने के लिए और हौसला बढ़ाने के लिए बहुत शुक्रिया। इस मंच पर मैं आपकी सक्रियता, सकारात्मक प्रतिक्रिया, और सभी को प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से सराहना करता हूँ। सलामत रहें, और ख़ूब अच्छा लिखते रहें।</p> आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन उ…tag:openbooksonline.com,2020-02-20:5170231:Comment:10013282020-02-20T05:24:42.040Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. भाई रवि जी, सादर अभिवादन उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>