Comments - वफ़ा के देवता को बेवफ़ा हम कैसे होने दें(११३ ) - Open Books Online2024-03-29T10:33:48Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1010682&xn_auth=noभाई Rupam kumar -'मीत' जी ,…tag:openbooksonline.com,2020-07-03:5170231:Comment:10116352020-07-03T15:23:40.157Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'http://openbooksonline.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p>भाई <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Rupamkumar" class="fn url">Rupam kumar -'मीत'</a><span> जी , आपकी हौसला आफ़जाई के लिए दिली शुक्रिया | </span></p>
<p>भाई <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Rupamkumar" class="fn url">Rupam kumar -'मीत'</a><span> जी , आपकी हौसला आफ़जाई के लिए दिली शुक्रिया | </span></p> आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'…tag:openbooksonline.com,2020-07-01:5170231:Comment:10112652020-07-01T13:55:45.052Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'http://openbooksonline.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a><span> जी , रचना की सराहना के लिए सादर आभार एवं नमन | </span></p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a><span> जी , रचना की सराहना के लिए सादर आभार एवं नमन | </span></p> आ. भाई गिरधारी सिंह गहलौत जी,…tag:openbooksonline.com,2020-07-01:5170231:Comment:10111922020-07-01T11:57:08.500Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई गिरधारी सिंह गहलौत जी, सादर अभिवादन । उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. भाई गिरधारी सिंह गहलौत जी, सादर अभिवादन । उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p> आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तु…tag:openbooksonline.com,2020-06-28:5170231:Comment:10112212020-06-28T10:31:07.407Zरवि भसीन 'शाहिद'http://openbooksonline.com/profile/RaviBhasin
<div align="left"><p dir="ltr">आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी साहिब, इस शानदार ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें।</p>
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<p dir="ltr">/गुनाहों की दफ़ाओं में नहीं है ज़िक्र उल्फ़त का</p>
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<div align="left"><p dir="ltr">मुहब्बत में क़ज़ा की हो सज़ा हम कैसे होने दें/</p>
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<div align="left"><p dir="ltr">हुज़ूर, दूसरे शेर में आपने जो 'दफ़ाओं' को 122 के वज़्न पर लिया है, उस पर संशय है, क्यूँकि 'दफ़्अ:' का सहीह वज़्न 21 होता है, और इसका बहुवचन 'दफ़्आत' होता है। अगर आपको मुनासिब लगे…</p>
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<div align="left"><p dir="ltr">आदरणीय गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत ' बीकानेरी साहिब, इस शानदार ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें।</p>
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<p dir="ltr">/गुनाहों की दफ़ाओं में नहीं है ज़िक्र उल्फ़त का</p>
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<div align="left"><p dir="ltr">मुहब्बत में क़ज़ा की हो सज़ा हम कैसे होने दें/</p>
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<div align="left"><p dir="ltr">हुज़ूर, दूसरे शेर में आपने जो 'दफ़ाओं' को 122 के वज़्न पर लिया है, उस पर संशय है, क्यूँकि 'दफ़्अ:' का सहीह वज़्न 21 होता है, और इसका बहुवचन 'दफ़्आत' होता है। अगर आपको मुनासिब लगे तो इस मिस्रे को यूँ कह सकते हैं:<br/> 1222 / 1222 / 1222 / 1222<br/> नहीं क़ानून की दफ़्आत में कुछ ज़िक्र उलफ़त का</p>
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<div align="left"><p dir="ltr">/बिठाया तख़्त पर हमने रखा है ताज तेरे सर<br/> हमीं पर ज़ुल्म की बारिश बता हम कैसे होने दें/<br/> आदरणीय, इस शेर में 'बिठाया' के स्थान पर 'बिठा कर' कह कर देखिएगा।</p>
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<p dir="ltr">/ख़ताएँ की सज़ा भुगती सबक़ से दूरियाँ फिर भी<br/> ख़ताएँ बारहा हर मर्तबा हम कैसे होने दें/<br/> जी, इस शेर में ऊला का भाव और स्पष्ट किया जा सकता है। और सानी में जब 'हर मर्तबा' कह दिया तो 'बारहा' अनावश्यक लग रहा है। अगर उचित समझें तो सानी यूँ कह सकते हैं:<br/> 1222 / 1222 / 1222 / 1222<br/> ख़ताएँ सब वही हर मर्तबा हम कैसे होने दें</p>
<p dir="ltr"></p>
<p dir="ltr">/ग़मों की मेजबानी में कटी है उम्र ये सारी<br/> ख़ुशी इसके लिए तुमको ख़फ़ा हम कैसे होने दें/<br/> आदरणीय, 'मेज़बानी' में नुक़्ता लगा लीजिये।</p>
</div> आदरणीय Samar kabeer साहेब ,…tag:openbooksonline.com,2020-06-28:5170231:Comment:10111492020-06-28T10:08:54.315Zगिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत 'http://openbooksonline.com/profile/GIRDHARISINGHGAHLO
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a> साहेब , आदाब , </p>
<p>आपका अनमोल आशीर्वाद पा कर मेरा लिखना सार्थक हो गया. आदर सहित कोटिशः धन्यवाद आपको</p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a> साहेब , आदाब , </p>
<p>आपका अनमोल आशीर्वाद पा कर मेरा लिखना सार्थक हो गया. आदर सहित कोटिशः धन्यवाद आपको</p> जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरं…tag:openbooksonline.com,2020-06-28:5170231:Comment:10109762020-06-28T05:49:31.836ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>जनाब गिरधारी सिंह गहलोत 'तुरंत' जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>