Comments - कह रहे हैं जब सभी तुम भी कहो..( ग़ज़ल : सालिक गणवीर) - Open Books Online2024-03-28T11:25:54Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1017766&xn_auth=noआदरणीय समर कबीर साहिब
आदाब
ग़ज़…tag:openbooksonline.com,2020-09-23:5170231:Comment:10180152020-09-23T13:12:35.109Zसालिक गणवीरhttp://openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय समर कबीर साहिब</p>
<p>आदाब</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिये ह्रदय तल से आभार. नया मतला कहने की कोशिश करता हूँ और दोनों अश'आर भी. सादर.</p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहिब</p>
<p>आदाब</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिये ह्रदय तल से आभार. नया मतला कहने की कोशिश करता हूँ और दोनों अश'आर भी. सादर.</p> जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल…tag:openbooksonline.com,2020-09-23:5170231:Comment:10178882020-09-23T06:25:15.967ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'कल कहा था आज भी कल भी कहो</span><br></br><span>आम को हर बार ही इमली कहो'</span></p>
<p><span>मुझे मतले के दोनों मिसरों में रब्त नज़र नहीं आया,और ऊला में वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं लगा, 'कल भी कहो' 'कल भी कहना' सहीह होगा,लेकिन आपके रदीफ़ क़ाफ़िये का सवाल है, मतला दूसरा कहने का प्रयास करें ।</span></p>
<p><span>'हम ग़ुलामों की तरह पेश आएँगे</span></p>
<p><span>आप जिसको हुक्म की रानी कहो'</span></p>
<p><span>इस…</span></p>
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'कल कहा था आज भी कल भी कहो</span><br/><span>आम को हर बार ही इमली कहो'</span></p>
<p><span>मुझे मतले के दोनों मिसरों में रब्त नज़र नहीं आया,और ऊला में वाक्य विन्यास भी ठीक नहीं लगा, 'कल भी कहो' 'कल भी कहना' सहीह होगा,लेकिन आपके रदीफ़ क़ाफ़िये का सवाल है, मतला दूसरा कहने का प्रयास करें ।</span></p>
<p><span>'हम ग़ुलामों की तरह पेश आएँगे</span></p>
<p><span>आप जिसको हुक्म की रानी कहो'</span></p>
<p><span>इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ ,देखियेगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'ज़िंदगी बदलेगी रातों - रात फिर<br/>मत कभी कहना नहीं हाँ जी कहो'</span></p>
<p><span>इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ,क्या कहना चाहते हैं ?</span></p>
<p></p>
<p><span>'दोस्तों उनको दीया बाती कहो'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'दीया' को "दिया" कर लें, बह्र गड़बड़ हो रही है ।</span></p>
<p></p> भाई हर्ष महाजन जीसादर अभिवादन…tag:openbooksonline.com,2020-09-19:5170231:Comment:10179182020-09-19T15:16:20.181Zसालिक गणवीरhttp://openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>भाई हर्ष महाजन जी<br/>सादर अभिवादन<br/>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभार.</p>
<p>भाई हर्ष महाजन जी<br/>सादर अभिवादन<br/>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभार.</p> आदरणीय सालिक गणवीर जी आदाब ।…tag:openbooksonline.com,2020-09-19:5170231:Comment:10177962020-09-19T04:29:12.690ZHarash Mahajanhttp://openbooksonline.com/profile/HarashMahajan
<p>आदरणीय सालिक गणवीर जी आदाब । अच्छी पेशकश हेतु बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>सादर ।</p>
<p>आदरणीय सालिक गणवीर जी आदाब । अच्छी पेशकश हेतु बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>सादर ।</p> भाई लक्षण धामी 'मुसाफ़िर' जीसा…tag:openbooksonline.com,2020-09-18:5170231:Comment:10178132020-09-18T16:40:47.764Zसालिक गणवीरhttp://openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>भाई लक्षण धामी 'मुसाफ़िर' जी<br/>सादर अभिवादन<br/>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.</p>
<p>भाई लक्षण धामी 'मुसाफ़िर' जी<br/>सादर अभिवादन<br/>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिती और सराहना के लिए ह्रदय तल से आपका आभारी हूँ.</p> आदरणीय निलेश शेगाँवकर साहेब
स…tag:openbooksonline.com,2020-09-18:5170231:Comment:10177892020-09-18T16:38:29.829Zसालिक गणवीरhttp://openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय निलेश शेगाँवकर साहेब</p>
<p>सादर अभिवादन</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए बहुत आभार .सही कहा आपने, ही की बजाय तुम करुँ तो?</p>
<p>आदरणीय निलेश शेगाँवकर साहेब</p>
<p>सादर अभिवादन</p>
<p>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए बहुत आभार .सही कहा आपने, ही की बजाय तुम करुँ तो?</p> आ. सालिक गणवीर जी,बहुत अच्छी…tag:openbooksonline.com,2020-09-18:5170231:Comment:10177852020-09-18T14:04:16.995ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. सालिक गणवीर जी,<br/>बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ नए आयाम भी हैं.. बधाई..<br/>मतले के सानी में "ही" भर्ती का लग रहा है.. कुछ और कर सकें तो देखें..<br/>थोडा बहुत फाइन ट्यून एक दो शेरोन में भी किया जाए तो ग़ज़ल और निखर उठेगी <br/>सादर </p>
<p>आ. सालिक गणवीर जी,<br/>बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ नए आयाम भी हैं.. बधाई..<br/>मतले के सानी में "ही" भर्ती का लग रहा है.. कुछ और कर सकें तो देखें..<br/>थोडा बहुत फाइन ट्यून एक दो शेरोन में भी किया जाए तो ग़ज़ल और निखर उठेगी <br/>सादर </p> आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अ…tag:openbooksonline.com,2020-09-17:5170231:Comment:10176932020-09-17T13:16:53.695Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>