Comments - जब-जब ख़्वाब सुनहरे देखे - ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-28T16:38:10Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1030589&xn_auth=noआदरणीय Rupam kumar -'मीत' जी…tag:openbooksonline.com,2020-10-23:5170231:Comment:10354252020-10-23T11:43:50.449Zबसंत कुमार शर्माhttp://openbooksonline.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Rupamkumar" class="fn url">Rupam kumar -'मीत'</a> जी सादर नमस्कार </p>
<p>आपकी हौसलाअफजाई के लिए दिल से शुक्रिया </p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Rupamkumar" class="fn url">Rupam kumar -'मीत'</a> जी सादर नमस्कार </p>
<p>आपकी हौसलाअफजाई के लिए दिल से शुक्रिया </p> आदरणीय Nilesh Shevgaonkar जी…tag:openbooksonline.com,2020-10-16:5170231:Comment:10319052020-10-16T07:06:59.778Zबसंत कुमार शर्माhttp://openbooksonline.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar" class="fn url">Nilesh Shevgaonkar</a><span> जी सादर नमस्कार </span></p>
<p><span>आपका सुझाव अनुकरणीय है , सादर स्वागत है </span></p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar" class="fn url">Nilesh Shevgaonkar</a><span> जी सादर नमस्कार </span></p>
<p><span>आपका सुझाव अनुकरणीय है , सादर स्वागत है </span></p> आ. बसंत कुमार जी,अच्छी ग़ज़ल हु…tag:openbooksonline.com,2020-10-16:5170231:Comment:10317992020-10-16T06:20:39.561ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. बसंत कुमार जी,<br/><br/>अच्छी ग़ज़ल हुई है .. बधाई स्वीकार करें.. <br/>मतले में रब्त कम है.. गहरे और सुनहरे में कोई तार्किक समानता नहीं नज़र आती ..<br/>इसे यूँ कर के देखें..<br/><strong>"जब भी ख़ाब सुनहरे देखे </strong><br/><strong>सहरा जैसे ठहरे देखे..."</strong><br/>इस में धूप में तपती सुनहरी रेत और का सम्बन्ध भी है और काफ़िया भी..<br/>यह सिर्फ आग्रह है.. ग़ज़ल के लिए पुन: बधाई </p>
<p>आ. बसंत कुमार जी,<br/><br/>अच्छी ग़ज़ल हुई है .. बधाई स्वीकार करें.. <br/>मतले में रब्त कम है.. गहरे और सुनहरे में कोई तार्किक समानता नहीं नज़र आती ..<br/>इसे यूँ कर के देखें..<br/><strong>"जब भी ख़ाब सुनहरे देखे </strong><br/><strong>सहरा जैसे ठहरे देखे..."</strong><br/>इस में धूप में तपती सुनहरी रेत और का सम्बन्ध भी है और काफ़िया भी..<br/>यह सिर्फ आग्रह है.. ग़ज़ल के लिए पुन: बधाई </p> आदरणीय Samar kabeer जी सादर…tag:openbooksonline.com,2020-10-16:5170231:Comment:10319012020-10-16T06:17:05.476Zबसंत कुमार शर्माhttp://openbooksonline.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url"> आदरणीय Samar kabeer</a><span> जी सादर नमस्कार-</span></p>
<p><span>अरे कोई बात नहीं , कभी कभी ऐसा हो जाता है, आपकी इस्लाह सदैव अनुकरणीय होती है और बहुत कुछ सीखने को मिलता है </span></p>
<p><span>आपका स्नेह सदा मिलता रहे यही कामना है, सादर नमन आपको </span></p>
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url"> आदरणीय Samar kabeer</a><span> जी सादर नमस्कार-</span></p>
<p><span>अरे कोई बात नहीं , कभी कभी ऐसा हो जाता है, आपकी इस्लाह सदैव अनुकरणीय होती है और बहुत कुछ सीखने को मिलता है </span></p>
<p><span>आपका स्नेह सदा मिलता रहे यही कामना है, सादर नमन आपको </span></p> मुआफ़ कीजियेगा नज़र कमज़ोर है रद…tag:openbooksonline.com,2020-10-15:5170231:Comment:10314042020-10-15T15:38:38.527ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>मुआफ़ कीजियेगा नज़र कमज़ोर है रदीफ़ देखे की जगह देखो हो गई, आपका मतला जैसा है वैसा ही रखें ।</p>
<p>मुआफ़ कीजियेगा नज़र कमज़ोर है रदीफ़ देखे की जगह देखो हो गई, आपका मतला जैसा है वैसा ही रखें ।</p> आदरणीय Samar kabeer जी सादर न…tag:openbooksonline.com,2020-10-15:5170231:Comment:10316542020-10-15T12:27:02.016Zबसंत कुमार शर्माhttp://openbooksonline.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>आदरणीय <span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a> </span>जी सादर नमस्कार </p>
<p>आपकी हौसलाअफजाई एवं तरमीम का दिल से शुक्रिया </p>
<p>आपका सुझाव तो बहुत अच्छा है लेकिन अन्य अशआर में निभ नहीं रहा है </p>
<p><span>'जब तुम ख़्वाब सुनहरे देखो'</span></p>
<p><span>शायद </span></p>
<p><span>'सागर से भी गहरे देखे.</span></p>
<p><span>जितने ख़्वाब सुनहरे देखे' या </span></p>
<p><span>जो-जो ख़्वाब सुनहरे देखे' किया जा सकता है </span></p>
<p>आदरणीय <span><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a> </span>जी सादर नमस्कार </p>
<p>आपकी हौसलाअफजाई एवं तरमीम का दिल से शुक्रिया </p>
<p>आपका सुझाव तो बहुत अच्छा है लेकिन अन्य अशआर में निभ नहीं रहा है </p>
<p><span>'जब तुम ख़्वाब सुनहरे देखो'</span></p>
<p><span>शायद </span></p>
<p><span>'सागर से भी गहरे देखे.</span></p>
<p><span>जितने ख़्वाब सुनहरे देखे' या </span></p>
<p><span>जो-जो ख़्वाब सुनहरे देखे' किया जा सकता है </span></p> आदरणीय अमीरुद्दीन 'अमीर' जी स…tag:openbooksonline.com,2020-10-15:5170231:Comment:10316532020-10-15T12:24:16.279Zबसंत कुमार शर्माhttp://openbooksonline.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz" class="fn url">अमीरुद्दीन 'अमीर'</a><span> </span>जी सादर नमस्कार </p>
<p>आपकी हौसलाअफजाई एवं तरमीम का दिल से शुक्रिया </p>
<p></p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz" class="fn url">अमीरुद्दीन 'अमीर'</a><span> </span>जी सादर नमस्कार </p>
<p>आपकी हौसलाअफजाई एवं तरमीम का दिल से शुक्रिया </p>
<p></p> आदरणीय Deepalee Thakur जी साद…tag:openbooksonline.com,2020-10-15:5170231:Comment:10313712020-10-15T12:23:26.919Zबसंत कुमार शर्माhttp://openbooksonline.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/DeepaleeThakur" class="fn url">Deepalee Thakur</a> जी सादर नमस्कार </p>
<p>आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया </p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/DeepaleeThakur" class="fn url">Deepalee Thakur</a> जी सादर नमस्कार </p>
<p>आपकी हौसलाअफजाई का दिल से शुक्रिया </p> जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब…tag:openbooksonline.com,2020-10-15:5170231:Comment:10316342020-10-15T10:14:18.787ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'सागर से भी गहरे देखे.</span></p>
<p><span>जब-जब ख़्वाब सुनहरे देखे'</span></p>
<p><span>मतले के दोनों मिसरो में रब्त की कमी नहीं,हाँ इसे और साफ़ करने के लिये सानी यूँ किया जा सकता है:-</span></p>
<p><span>'जब तुम ख़्वाब सुनहरे देखो'</span></p>
<p>जनाब बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'सागर से भी गहरे देखे.</span></p>
<p><span>जब-जब ख़्वाब सुनहरे देखे'</span></p>
<p><span>मतले के दोनों मिसरो में रब्त की कमी नहीं,हाँ इसे और साफ़ करने के लिये सानी यूँ किया जा सकता है:-</span></p>
<p><span>'जब तुम ख़्वाब सुनहरे देखो'</span></p> आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी आद…tag:openbooksonline.com,2020-10-14:5170231:Comment:10311212020-10-14T14:36:18.599Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, बहतरीन ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ, बस मतले में जब-जब की वजह से रब्त टूट रहा है, जब-जब की जगह <strong>जितने </strong>करने से रब्त क़ायम हो सकता है। सादर। </p>
<p>आदरणीय बसंत कुमार शर्मा जी आदाब, बहतरीन ग़ज़ल हुई है दाद के साथ मुबारकबाद पेश करता हूँ, बस मतले में जब-जब की वजह से रब्त टूट रहा है, जब-जब की जगह <strong>जितने </strong>करने से रब्त क़ायम हो सकता है। सादर। </p>