Comments - नहीं दो चार लगता है बहुत सारे बनाएगा.( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर) - Open Books Online2024-03-28T16:33:47Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1033673&xn_auth=noशानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय...tag:openbooksonline.com,2020-11-01:5170231:Comment:10364892020-11-01T15:14:37.969Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय...</p>
<p>शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय...</p> उस्ताद-ए -मुहतरम समर कबीर साह…tag:openbooksonline.com,2020-10-22:5170231:Comment:10353532020-10-22T12:40:28.740Zसालिक गणवीरhttp://openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>उस्ताद-ए -मुहतरम समर कबीर साहिब <br/>आदाब <br/>ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार। ग़ज़ल पर इस्लाह के लिए विशेष आभार आदरणीय। इस्लाह पर तामील कर दी है जनाब। <br/>सलामत रहें।</p>
<p>उस्ताद-ए -मुहतरम समर कबीर साहिब <br/>आदाब <br/>ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार। ग़ज़ल पर इस्लाह के लिए विशेष आभार आदरणीय। इस्लाह पर तामील कर दी है जनाब। <br/>सलामत रहें।</p> आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहि…tag:openbooksonline.com,2020-10-22:5170231:Comment:10351542020-10-22T12:36:30.547Zसालिक गणवीरhttp://openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहिब <br/>आदाब <br/>ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार। ग़ज़ल पर समझाइश के लिए विशेष आभार।</p>
<p>आदरणीय अमीरूद्दीन 'अमीर' साहिब <br/>आदाब <br/>ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार। ग़ज़ल पर समझाइश के लिए विशेष आभार।</p> आदरणीय भाई लक्मण धामी जी ग़ज़ल…tag:openbooksonline.com,2020-10-22:5170231:Comment:10351532020-10-22T12:27:13.272Zसालिक गणवीरhttp://openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय भाई लक्मण धामी जी <br/>ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार।</p>
<p>आदरणीय भाई लक्मण धामी जी <br/>ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार।</p> प्रिय रूपम ग़ज़ल पर आपकी आमद और…tag:openbooksonline.com,2020-10-22:5170231:Comment:10351512020-10-22T12:23:24.872Zसालिक गणवीरhttp://openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>प्रिय रूपम <br/>ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार। बालक शाइरी को विज्ञान से जोड़ना ठीक नहीं। सलामत रहें।</p>
<p>प्रिय रूपम <br/>ग़ज़ल पर आपकी आमद और सराहना के लिए हार्दिक आभार। बालक शाइरी को विज्ञान से जोड़ना ठीक नहीं। सलामत रहें।</p> आदरणीय सालिक गणवीर जी आदाब, ग…tag:openbooksonline.com,2020-10-20:5170231:Comment:10348462020-10-20T17:20:08.199Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>आदरणीय सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें, मुहतरम समर कबीर साहिब का विश्लेषण क़ाबिल-ए-ग़ौर है।</p>
<p>रूपम जी मेरे ख़याल में ये मिसरा "फ़लक पर वो नये दो-तीन सय्यारे बनाएगा" विज्ञान के अनुसार सहीह है। क्योंकि कहकशांँ या आकाशगंगा भी फ़लक (अंतरिक्ष) में ही होती है। मिसाल के लिए ये अश'आ़र देखिये :</p>
<p>"पुराने हैं ये सितारे फ़लक भी फ़र्सूदा </p>
<p> जहाँ वो चाहिये मुझको कि हो अभी नौ-ख़ेज़". - अल्लामा इक़बाल </p>
<p>" फ़लक पे चाँद सितारे निकलने हैं हर…</p>
<p>आदरणीय सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें, मुहतरम समर कबीर साहिब का विश्लेषण क़ाबिल-ए-ग़ौर है।</p>
<p>रूपम जी मेरे ख़याल में ये मिसरा "फ़लक पर वो नये दो-तीन सय्यारे बनाएगा" विज्ञान के अनुसार सहीह है। क्योंकि कहकशांँ या आकाशगंगा भी फ़लक (अंतरिक्ष) में ही होती है। मिसाल के लिए ये अश'आ़र देखिये :</p>
<p>"पुराने हैं ये सितारे फ़लक भी फ़र्सूदा </p>
<p> जहाँ वो चाहिये मुझको कि हो अभी नौ-ख़ेज़". - अल्लामा इक़बाल </p>
<p>" फ़लक पे चाँद सितारे निकलने हैं हर शब</p>
<p> सितम यही है निकलता नहीं हमारा चाँद". - पंडित जवाहरनाथ साक़ी </p>
<p></p> जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल…tag:openbooksonline.com,2020-10-20:5170231:Comment:10346602020-10-20T15:03:35.879ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'बनाए जुगनू हैं जिसने वही तारे बनाएगा'</span></p>
<p>जुगनू और तारे तो वो बना चुका है,आप क्या कहना चाहते हैं ?</p>
<p></p>
<p><span>'वो अपने तिफ़्ल की ख़ातिर तो गुब्बारे बनाएगा'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'ग़ुब्बारे' ग़लत शब्द है,सहीह शब्द है "ग़ुबारा" बहुवचन "ग़ुबारे",देखियेगा ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'बशर जो सो नहीं सकते वहीं पे सेज फूलों की<br></br>जहाँ बिस्तर नहीं होंगे थके-हारे…</span></p>
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'बनाए जुगनू हैं जिसने वही तारे बनाएगा'</span></p>
<p>जुगनू और तारे तो वो बना चुका है,आप क्या कहना चाहते हैं ?</p>
<p></p>
<p><span>'वो अपने तिफ़्ल की ख़ातिर तो गुब्बारे बनाएगा'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'ग़ुब्बारे' ग़लत शब्द है,सहीह शब्द है "ग़ुबारा" बहुवचन "ग़ुबारे",देखियेगा ।</span></p>
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<p><span>'बशर जो सो नहीं सकते वहीं पे सेज फूलों की<br/>जहाँ बिस्तर नहीं होंगे थके-हारे बनाएगा'</span></p>
<p><span>इस शैर का भाव स्पष्ट नहीं हुआ,देखियेगा ।</span></p> आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अ…tag:openbooksonline.com,2020-10-20:5170231:Comment:10342982020-10-20T07:45:04.109Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन। उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन। उम्दा गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>