Comments - ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-28T21:06:31Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1036631&xn_auth=noआ. अंजलि जी, गजल का प्रयास अच…tag:openbooksonline.com,2020-11-21:5170231:Comment:10371662020-11-21T00:55:44.750Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. अंजलि जी, गजल का प्रयास अच्छा हुआ है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. अंजलि जी, गजल का प्रयास अच्छा हुआ है । हार्दिक बधाई ।</p> वाह क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है…tag:openbooksonline.com,2020-11-17:5170231:Comment:10372152020-11-17T14:38:23.390Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>वाह क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीया...हरेक शे'र लाजबाब।</p>
<p>वाह क्या ही शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीया...हरेक शे'र लाजबाब।</p> आदरणीया अंजलि गुप्ता जी बेहतर…tag:openbooksonline.com,2020-11-09:5170231:Comment:10366692020-11-09T07:39:02.491ZRachna Bhatiahttp://openbooksonline.com/profile/RachnaBhatia
<p>आदरणीया अंजलि गुप्ता जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई।सर् द्वारा दी गई इस्लाह से भी सीखने को मिला।रदीफ़ बहुत अच्छी ली आपने, बधाई।</p>
<p>आदरणीया अंजलि गुप्ता जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई।सर् द्वारा दी गई इस्लाह से भी सीखने को मिला।रदीफ़ बहुत अच्छी ली आपने, बधाई।</p> khub sundar rachna tag:openbooksonline.com,2020-11-09:5170231:Comment:10369262020-11-09T06:54:34.342Znarendrasinh chauhanhttp://openbooksonline.com/profile/narendrasinhchauhan
<p>khub sundar rachna </p>
<p>khub sundar rachna </p> आदरणीय सालिक गणवीर जी, आपका द…tag:openbooksonline.com,2020-11-08:5170231:Comment:10369242020-11-08T18:53:45.087Zanjali guptahttp://openbooksonline.com/profile/anjaligupta
<p>आदरणीय सालिक गणवीर जी, आपका दिली शुक्रिया</p>
<p>आदरणीय सालिक गणवीर जी, आपका दिली शुक्रिया</p> आदरणीय समर sir,
sir वो शब्द…tag:openbooksonline.com,2020-11-08:5170231:Comment:10367522020-11-08T18:51:14.934Zanjali guptahttp://openbooksonline.com/profile/anjaligupta
<p>आदरणीय समर sir, </p>
<p>sir वो शब्द की ज़रूरत महसूस हो रही।है ज़ोर डालने के लिए।</p>
<p>जन्नत है ज़मीं पर तो यहीं पर है यहीं पर</p>
<p>क्या यूँ कहने से बेहतरी हो रही है sir क्योंकि कश्मीर के लिए ही ये कहा जाता था कभी</p>
<p>/थे इक से बड़े एक गुरु फिर भी न समझे/ क्या ये बेहतर है</p>
<p>/बाँधे हूँ मैं ज़ेवर/ sir यहॉं बांधना जानबूझकर इस्तेमाल किया है क्योंकि जब मन से न पहना जाए तो ज़ेवर भी ज़ंजीर महसूस होता है और जबरन बाँधे जाने का एहसास होता है। ज़ंजीर में टंकण त्रुटि के लिए मुआफ़ी चाहती हूँ sir। ग़ज़ल…</p>
<p>आदरणीय समर sir, </p>
<p>sir वो शब्द की ज़रूरत महसूस हो रही।है ज़ोर डालने के लिए।</p>
<p>जन्नत है ज़मीं पर तो यहीं पर है यहीं पर</p>
<p>क्या यूँ कहने से बेहतरी हो रही है sir क्योंकि कश्मीर के लिए ही ये कहा जाता था कभी</p>
<p>/थे इक से बड़े एक गुरु फिर भी न समझे/ क्या ये बेहतर है</p>
<p>/बाँधे हूँ मैं ज़ेवर/ sir यहॉं बांधना जानबूझकर इस्तेमाल किया है क्योंकि जब मन से न पहना जाए तो ज़ेवर भी ज़ंजीर महसूस होता है और जबरन बाँधे जाने का एहसास होता है। ज़ंजीर में टंकण त्रुटि के लिए मुआफ़ी चाहती हूँ sir। ग़ज़ल को समय देने के लिए और मार्गदर्शन के लिए जितना आभार व्यक्त करूं कम है।</p> मुहतरमा अंजलि गुप्ता जी आदाब,…tag:openbooksonline.com,2020-11-08:5170231:Comment:10367382020-11-08T06:38:21.875ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>मुहतरमा अंजलि गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><br></br><span>'वो पर्स में तेरे मेरी तस्वीर का मतलब'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'वो' शब्द भर्ती का है, ग़ौर करें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'जन्नत है कहीं गर तो यहीं पर है यहीं पर<br></br>क्या था कभी क्या आज है कश्मीर का मतलब'</span></p>
<p><span>इस शैर के दोनों मिसरे अलग अलग हैं,इनमें रब्त पैदा नहीं हो सका,ग़ौर करें ।</span></p>
<p></p>
<p>'थे एक से बढ़ एक गुरु फिर भी न समझे'</p>
<p>इस मिसरे में 'एक से बढ़…</p>
<p>मुहतरमा अंजलि गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><br/><span>'वो पर्स में तेरे मेरी तस्वीर का मतलब'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'वो' शब्द भर्ती का है, ग़ौर करें ।</span></p>
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<p><span>'जन्नत है कहीं गर तो यहीं पर है यहीं पर<br/>क्या था कभी क्या आज है कश्मीर का मतलब'</span></p>
<p><span>इस शैर के दोनों मिसरे अलग अलग हैं,इनमें रब्त पैदा नहीं हो सका,ग़ौर करें ।</span></p>
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<p>'थे एक से बढ़ एक गुरु फिर भी न समझे'</p>
<p>इस मिसरे में 'एक से बढ़ एक' वाक्य दुरुस्त नहीं सहीह वाक्य है "एक से बढ़ कर एक' ग़ौर करें ।</p>
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<p><span>'इस जिस्म के हर हिस्से में बाँधे हूँ मैं ज़ेवर</span><br/><span>कैसे मुझे मालूम हो जंजीर का मतलब'</span></p>
<p><span>इस शैर के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, और ऊला में 'ज़ेवर' बाँधेनहीं जाते,ग़ौर करें,और सहीह शब्द "ज़ंजीर" है ।</span></p> मुहतरमा अंजलि गुप्ता जीसादर अ…tag:openbooksonline.com,2020-11-06:5170231:Comment:10366502020-11-06T16:38:15.220Zसालिक गणवीरhttp://openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>मुहतरमा अंजलि गुप्ता जी<br/>सादर अभिवादन<br/>उम्दा क्या ग़ज़ल कही आपने,वाह। एक एक लफ्ज़ और हर एक अशआर के लिए तह -ए -दिल से दाद और मुबारक़बाद क़ुबूल करें।</p>
<p>मुहतरमा अंजलि गुप्ता जी<br/>सादर अभिवादन<br/>उम्दा क्या ग़ज़ल कही आपने,वाह। एक एक लफ्ज़ और हर एक अशआर के लिए तह -ए -दिल से दाद और मुबारक़बाद क़ुबूल करें।</p>