Comments - एक पत्थर सा बस पड़ा हूँ मैं......( ग़ज़ल :- सालिक गणवीर) - Open Books Online2024-03-19T10:32:04Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1042370&xn_auth=no मुहतरम अमीरुद्दीन 'अमीर' साह…tag:openbooksonline.com,2021-01-25:5170231:Comment:10431492021-01-25T07:12:49.728Zसालिक गणवीरhttp://openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p> मुहतरम <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz" class="fn url">अमीरुद्दीन 'अमीर'</a> साहिब <br/>आदाब <br/>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार . ममनून हूँ कि आपने इस नाचीज़ के मिसरे पर इतनी मिहनत की. शुक्रिय : जनाब </p>
<p> मुहतरम <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz" class="fn url">अमीरुद्दीन 'अमीर'</a> साहिब <br/>आदाब <br/>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार . ममनून हूँ कि आपने इस नाचीज़ के मिसरे पर इतनी मिहनत की. शुक्रिय : जनाब </p> उस्ताद - ए - मुहतरम समर कबीर…tag:openbooksonline.com,2021-01-25:5170231:Comment:10431042021-01-25T07:08:14.742Zसालिक गणवीरhttp://openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>उस्ताद - ए - मुहतरम समर कबीर साहिब <br/>आदाब <br/>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ और आपकी क़ीमती इस्लाह के लिए तह-ए -दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ. सलामत रहें।</p>
<p>उस्ताद - ए - मुहतरम समर कबीर साहिब <br/>आदाब <br/>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ और आपकी क़ीमती इस्लाह के लिए तह-ए -दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ. सलामत रहें।</p> जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, क्य…tag:openbooksonline.com,2021-01-24:5170231:Comment:10431012021-01-24T14:36:37.985Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने, उस्ताद मुहतरम की इस्लाह पर अमल के बाद ग़ज़ल और बहतर हो जाएगी। मतले के ऊला के लिए चंद मिसरे सुझाव के तौर पर पेश करने की जसारत कर रहा हूँ -</p>
<p>1. एक पत्थर सा बस पड़ा हूँ मैं 2. कबसे पत्थर सा बन खड़ा हूँ मैं 3. एक पत्थर सा बन गया हूँ मैं</p>
<p>4. फिर उसी रस्ते पर खड़ा हूँ मैं 5. चलके दो गाम बस पड़ा हूँ मैं सादर।</p>
<p></p>
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, क्या ख़ूब ग़ज़ल कही है आपने, उस्ताद मुहतरम की इस्लाह पर अमल के बाद ग़ज़ल और बहतर हो जाएगी। मतले के ऊला के लिए चंद मिसरे सुझाव के तौर पर पेश करने की जसारत कर रहा हूँ -</p>
<p>1. एक पत्थर सा बस पड़ा हूँ मैं 2. कबसे पत्थर सा बन खड़ा हूँ मैं 3. एक पत्थर सा बन गया हूँ मैं</p>
<p>4. फिर उसी रस्ते पर खड़ा हूँ मैं 5. चलके दो गाम बस पड़ा हूँ मैं सादर।</p>
<p></p> जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल…tag:openbooksonline.com,2021-01-24:5170231:Comment:10432212021-01-24T09:03:14.414ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'एक ही जगह बस पड़ा हूँ मैं'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में आपने 'जगह' शब्द को 21 पर लिया है, जबकि इसका वज़्न 12 होता है, सुधारने का प्रयास करें ।</span></p>
<p></p>
<p>'गुम गया हूँ या लापता हूँ मैं'</p>
<p>इस मिसरे को यूँ कहें:-</p>
<p>'एक मुद्दत से लापता हूँ मैं'</p>
<p></p>
<p><span>'ऐसी वीरानगी है चारों सू</span><br></br><span>लग रहा है उजड़ रहा हूँ मैं'</span></p>
<p><span>इस शैर को यूँ…</span></p>
<p>जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'एक ही जगह बस पड़ा हूँ मैं'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में आपने 'जगह' शब्द को 21 पर लिया है, जबकि इसका वज़्न 12 होता है, सुधारने का प्रयास करें ।</span></p>
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<p>'गुम गया हूँ या लापता हूँ मैं'</p>
<p>इस मिसरे को यूँ कहें:-</p>
<p>'एक मुद्दत से लापता हूँ मैं'</p>
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<p><span>'ऐसी वीरानगी है चारों सू</span><br/><span>लग रहा है उजड़ रहा हूँ मैं'</span></p>
<p><span>इस शैर को यूँ कहें:-</span></p>
<p><span>'हर तरफ़ है अजीब वीरानी</span></p>
<p><span>ख़ुद में शायद उजड़ रहा हूँ मैं'</span></p> आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी 'मुस…tag:openbooksonline.com,2021-01-22:5170231:Comment:10430232021-01-22T13:52:43.303Zसालिक गणवीरhttp://openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p><span>आदरणीय भाई </span><span> </span><a rel="nofollow" href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a><span> जी</span><br/><span>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार.</span></p>
<p><span>आदरणीय भाई </span><span> </span><a rel="nofollow" href="http://www.openbooksonline.com/profile/laxmandhami" class="fn url">लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'</a><span> जी</span><br/><span>ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक आभार.</span></p> आदरणीय Samar kabeer साहिब आदा…tag:openbooksonline.com,2021-01-22:5170231:Comment:10428442021-01-22T13:38:05.699Zसालिक गणवीरhttp://openbooksonline.com/profile/SalikGanvir
<p>आदरणीय<span> </span><a href="http://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a> साहिब <br/>आदाब <br/>मुहतरम ये ग़ज़ल आपकी इस्लाह की मुंतज़िर है. ओ बी ओ पर कल ही अप्रूवल मिला है।</p>
<p>आदरणीय<span> </span><a href="http://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer" class="fn url">Samar kabeer</a> साहिब <br/>आदाब <br/>मुहतरम ये ग़ज़ल आपकी इस्लाह की मुंतज़िर है. ओ बी ओ पर कल ही अप्रूवल मिला है।</p> इस ग़ज़ल पर शायद मैं पहले टिप्प…tag:openbooksonline.com,2021-01-22:5170231:Comment:10427792021-01-22T12:25:35.600ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>इस ग़ज़ल पर शायद मैं पहले टिप्पणी कर चुका हूँ, लेकिन वो नज़र नहीं आ रही है?</p>
<p>इस ग़ज़ल पर शायद मैं पहले टिप्पणी कर चुका हूँ, लेकिन वो नज़र नहीं आ रही है?</p> आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अ…tag:openbooksonline.com,2021-01-21:5170231:Comment:10427412021-01-21T13:52:17.495Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>
<p>आ. भाई सालिक गणवीर जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई ।</p>