Comments - हमने कहीं पे लौट आ बचपन क्या लिख दिया-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर" - Open Books Online2024-03-29T09:52:25Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1058086&xn_auth=noआ. भाई बसंत जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooksonline.com,2021-04-20:5170231:Comment:10592232021-04-20T05:15:36.717Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई बसंत जी, सादर अभिवादन। गजल पर आपकी मनोहारी टिप्पणी से मन हर्षित हुआ । उपस्थिति व सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p>
<p>आ. भाई बसंत जी, सादर अभिवादन। गजल पर आपकी मनोहारी टिप्पणी से मन हर्षित हुआ । उपस्थिति व सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p> आदरणीय धामी जी सादर नमस्कार …tag:openbooksonline.com,2021-04-20:5170231:Comment:10590562021-04-20T04:54:11.207Zबसंत कुमार शर्माhttp://openbooksonline.com/profile/37vrpfxgzfdi8
<p><span>आदरणीय धामी जी सादर नमस्कार </span></p>
<p><span>अद्भुत गजल हुई है आदरणीय </span></p>
<p><span>आनंद आ गया </span></p>
<p><span>आदरणीय धामी जी सादर नमस्कार </span></p>
<p><span>अद्भुत गजल हुई है आदरणीय </span></p>
<p><span>आनंद आ गया </span></p> आ. भाई ब्रिजेश जी, हार्दिक धन…tag:openbooksonline.com,2021-04-17:5170231:Comment:10587332021-04-17T13:27:17.362Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई ब्रिजेश जी, हार्दिक धन्यवाद।</p>
<p>आ. भाई ब्रिजेश जी, हार्दिक धन्यवाद।</p> बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदर…tag:openbooksonline.com,2021-04-16:5170231:Comment:10586152021-04-16T03:30:36.310Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय...</p>
<p>बड़ी ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय...</p> आ. भाई अमीरूद्दीन जी, धन्यवाद।tag:openbooksonline.com,2021-04-15:5170231:Comment:10585782021-04-15T03:10:32.024Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अमीरूद्दीन जी, धन्यवाद।</p>
<p>आ. भाई अमीरूद्दीन जी, धन्यवाद।</p> आ. भाई आज़ी तमाम जी, अभिवादन ।…tag:openbooksonline.com,2021-04-15:5170231:Comment:10585772021-04-15T03:09:54.925Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई आज़ी तमाम जी, अभिवादन । गजल पर उपस्थिति, सराहना व सलाह के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p>
<p>आ. भाई आज़ी तमाम जी, अभिवादन । गजल पर उपस्थिति, सराहना व सलाह के लिए हार्दिक धन्यवाद।</p> //हँसते धनी हैं देख के खुशिया…tag:openbooksonline.com,2021-04-13:5170231:Comment:10584022021-04-13T03:56:51.402Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>//हँसते धनी हैं देख के खुशियाँ कटी फटी//</p>
<p>आपके भावों के अनुसार ये मिसरा फ़िट है। </p>
<p>//हँसते धनी हैं देख के खुशियाँ कटी फटी//</p>
<p>आपके भावों के अनुसार ये मिसरा फ़िट है। </p> बेहतरीन ग़ज़ल है आदरणीय धामी…tag:openbooksonline.com,2021-04-13:5170231:Comment:10582812021-04-13T02:43:32.867ZAazi Tamaamhttp://openbooksonline.com/profile/AaziTamaa
<p>बेहतरीन ग़ज़ल है आदरणीय धामी सर</p>
<p>सादर प्रणाम</p>
<p></p>
<p>गुस्ताखी माफ़ हो मैंने एक लाइन लिक्खी है इससे शायद कुछ और बेहतरीन बन सके देखियेगा</p>
<p></p>
<p>"दुश्मन हर इक गरीब के फ़िर हो गये धनी"</p>
<p>निर्धन के हिस्से ईश ने जीवन क्या लिख दिया</p>
<p></p>
<p>सादर</p>
<p>बेहतरीन ग़ज़ल है आदरणीय धामी सर</p>
<p>सादर प्रणाम</p>
<p></p>
<p>गुस्ताखी माफ़ हो मैंने एक लाइन लिक्खी है इससे शायद कुछ और बेहतरीन बन सके देखियेगा</p>
<p></p>
<p>"दुश्मन हर इक गरीब के फ़िर हो गये धनी"</p>
<p>निर्धन के हिस्से ईश ने जीवन क्या लिख दिया</p>
<p></p>
<p>सादर</p> आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभ…tag:openbooksonline.com,2021-04-13:5170231:Comment:10583962021-04-13T02:22:37.807Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद । </p>
<p>इंगित शेर को इस प्रकार दे खिएगा-</p>
<p>हँसते धनी हैं देख के खुशियाँ कटी फटी</p>
<p>आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और सराहना के लिए हार्दिक धन्यवाद । </p>
<p>इंगित शेर को इस प्रकार दे खिएगा-</p>
<p>हँसते धनी हैं देख के खुशियाँ कटी फटी</p> जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़ि…tag:openbooksonline.com,2021-04-11:5170231:Comment:10583752021-04-11T07:18:03.810Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।</p>
<p>'हँसती हो मौत देख के खुशियों में छेद ये</p>
<p>निर्धन के हिस्से ईश ने जीवन क्या लिख दिया' इस शे'र के ऊला का कथ्य समझ नहीं आया। सादर। </p>
<p>जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।</p>
<p>'हँसती हो मौत देख के खुशियों में छेद ये</p>
<p>निर्धन के हिस्से ईश ने जीवन क्या लिख दिया' इस शे'र के ऊला का कथ्य समझ नहीं आया। सादर। </p>