Comments - लावणी छन्द,संपूर्ण वर्णमाला पर प्रेम सगाई - Open Books Online2024-03-28T12:29:06Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1060989&xn_auth=noशुचिताजी,
सादर वन्दे. सुदीर्घ…tag:openbooksonline.com,2023-02-10:5170231:Comment:10986412023-02-10T05:24:03.469Zडा॰ सुरेन्द्र कुमार वर्माhttp://openbooksonline.com/profile/3jyzkevjttpzy
<p>शुचिताजी,</p>
<p>सादर वन्दे. सुदीर्घ अन्तराल उपरान्त OBO पर आया, इस सुन्दर रचना पर विलम्ब से ही सही, बधाई, "षधा" मेरे लिए नया ज्ञानवर्धक शब्द है.</p>
<p>मुझे लगता है, "<span>टसक उठी मीठी हिय में" के स्थान पर "टीस उठी मीठी हिय में" अधिक उपयुक्त होता. कृपया अन्यथा न लें, मात्र मेरा विचार प्रकट किया.</span></p>
<p>शुचिताजी,</p>
<p>सादर वन्दे. सुदीर्घ अन्तराल उपरान्त OBO पर आया, इस सुन्दर रचना पर विलम्ब से ही सही, बधाई, "षधा" मेरे लिए नया ज्ञानवर्धक शब्द है.</p>
<p>मुझे लगता है, "<span>टसक उठी मीठी हिय में" के स्थान पर "टीस उठी मीठी हिय में" अधिक उपयुक्त होता. कृपया अन्यथा न लें, मात्र मेरा विचार प्रकट किया.</span></p> युं तो आपके नाम के साथ् आपके…tag:openbooksonline.com,2021-11-09:5170231:Comment:10731402021-11-09T14:40:43.137ZDR ARUN KUMAR SHASTRIhttp://openbooksonline.com/profile/DRARUNKUMARSHASTRI
<p>युं तो आपके नाम के साथ् आपके साथी का नाम जुड़ा होने से सामाजिक रुप से आप सम्पूर्ण ही जान पड्ती है कोई कमी भी नही फिर भी न जाने मेरा भ्रम ही हो आपकी रचना में आप अपने स्वभाव को छुपा नही पाई , कुछ न कुछ किसी कोने में कुछ दवा हुआ सा लगा मुझे -<br/>इन्सान जो अपने जीवन में महसूस करता है उसकी छाया उसकी अभिव्यक्ति में उतर ही आती है अन्जाने - <br/><br/></p>
<p>रहना है अब साथ सदा ही,<br/>लगन लगी मन में भारी,<br/>वल्लभ की मैं बनूं वल्लभा,<br/>'शुचि' प्रभु की है आभारी।<br/><br/><br/></p>
<p>युं तो आपके नाम के साथ् आपके साथी का नाम जुड़ा होने से सामाजिक रुप से आप सम्पूर्ण ही जान पड्ती है कोई कमी भी नही फिर भी न जाने मेरा भ्रम ही हो आपकी रचना में आप अपने स्वभाव को छुपा नही पाई , कुछ न कुछ किसी कोने में कुछ दवा हुआ सा लगा मुझे -<br/>इन्सान जो अपने जीवन में महसूस करता है उसकी छाया उसकी अभिव्यक्ति में उतर ही आती है अन्जाने - <br/><br/></p>
<p>रहना है अब साथ सदा ही,<br/>लगन लगी मन में भारी,<br/>वल्लभ की मैं बनूं वल्लभा,<br/>'शुचि' प्रभु की है आभारी।<br/><br/><br/></p> शृंगार रस का अनुभूत प्रयोग हु…tag:openbooksonline.com,2021-11-09:5170231:Comment:10731372021-11-09T14:32:34.448ZDR ARUN KUMAR SHASTRIhttp://openbooksonline.com/profile/DRARUNKUMARSHASTRI
<p>शृंगार रस का अनुभूत प्रयोग हुआ है इस रचना के म|ध्यम से शुचिता जी , एक लय है इस रचना में साथ् ही पढ़ते पढ़ते गुनगुनाने का मन करता है हाँ एक बात और एक छवि उभरती है अपने प्रियतम की जो इस रचना की सबसे खूब्सूरत पह्लू है शुचिता जी , बधाई स्वीकार किजिये </p>
<p>शृंगार रस का अनुभूत प्रयोग हुआ है इस रचना के म|ध्यम से शुचिता जी , एक लय है इस रचना में साथ् ही पढ़ते पढ़ते गुनगुनाने का मन करता है हाँ एक बात और एक छवि उभरती है अपने प्रियतम की जो इस रचना की सबसे खूब्सूरत पह्लू है शुचिता जी , बधाई स्वीकार किजिये </p> आदरणीय सौरभ पांडेय जी, उत्साह…tag:openbooksonline.com,2021-06-16:5170231:Comment:10615632021-06-16T02:01:04.484Zशुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"http://openbooksonline.com/profile/suchisandeepagarwaal
<p>आदरणीय सौरभ पांडेय जी, उत्साहवर्ध एवं सुझाव हेतु आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ।</p>
<p>आदरणीय सौरभ पांडेय जी, उत्साहवर्ध एवं सुझाव हेतु आपका हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ।</p> आ. शुचिता बहन, रचना अच्छी हुई…tag:openbooksonline.com,2021-06-11:5170231:Comment:10613892021-06-11T08:13:41.462Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. शुचिता बहन, रचना अच्छी हुई है । हार्दिक बधाई । छंद विषयक आ. सौरभ जी की बात का संज्ञान अवश्य लें । सादर..</p>
<p>आ. शुचिता बहन, रचना अच्छी हुई है । हार्दिक बधाई । छंद विषयक आ. सौरभ जी की बात का संज्ञान अवश्य लें । सादर..</p> आदरणीया शुचिता जी, वर्णमाला क…tag:openbooksonline.com,2021-06-10:5170231:Comment:10613862021-06-10T18:53:02.545ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीया शुचिता जी, वर्णमाला को साधते हुए कथ्य की समरचना अपने आप में छंद परंंपरा का निर्वहन ही है. आपका यह एक श्लाघनीय प्रयास है. </p>
<p>हार्दिक बधाई !</p>
<p></p>
<p>यह अवश्य है कि मात्रिका के निर्वहन प्रति भी सचेत रहना था. यह भी अभ्यास से संयत हो जाएगा. </p>
<p>शुभातिशुभ </p>
<p>आदरणीया शुचिता जी, वर्णमाला को साधते हुए कथ्य की समरचना अपने आप में छंद परंंपरा का निर्वहन ही है. आपका यह एक श्लाघनीय प्रयास है. </p>
<p>हार्दिक बधाई !</p>
<p></p>
<p>यह अवश्य है कि मात्रिका के निर्वहन प्रति भी सचेत रहना था. यह भी अभ्यास से संयत हो जाएगा. </p>
<p>शुभातिशुभ </p> प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार…tag:openbooksonline.com,2021-06-10:5170231:Comment:10616122021-06-10T16:13:16.755Zशुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"http://openbooksonline.com/profile/suchisandeepagarwaal
<p>प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय बासुदेव भैया।</p>
<p>प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार आदरणीय बासुदेव भैया।</p> शुचि बहन यह अनूठा प्रयोग करते…tag:openbooksonline.com,2021-06-10:5170231:Comment:10615262021-06-10T12:50:19.772Zबासुदेव अग्रवाल 'नमन'http://openbooksonline.com/profile/Basudeo
<p>शुचि बहन यह अनूठा प्रयोग करते हुए इस सुंदर छंद बद्ध सृजन की बहुत बहुत बधाई।</p>
<p>शुचि बहन यह अनूठा प्रयोग करते हुए इस सुंदर छंद बद्ध सृजन की बहुत बहुत बधाई।</p> अतिशय आभार आशीष यादव जी।tag:openbooksonline.com,2021-06-02:5170231:Comment:10612462021-06-02T02:23:05.057Zशुचिता अग्रवाल "शुचिसंदीप"http://openbooksonline.com/profile/suchisandeepagarwaal
<p>अतिशय आभार आशीष यादव जी।</p>
<p>अतिशय आभार आशीष यादव जी।</p> बहुत सुंदर। tag:openbooksonline.com,2021-06-01:5170231:Comment:10612442021-06-01T17:42:37.513Zआशीष यादवhttp://openbooksonline.com/profile/Ashishyadav
<p>बहुत सुंदर। </p>
<p>बहुत सुंदर। </p>