Comments - अहसास की ग़ज़ल : मनोज अहसास - Open Books Online2024-03-29T10:48:49Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1067480&xn_auth=noआदरणीय समर कबीर साहब आपके मार…tag:openbooksonline.com,2021-09-07:5170231:Comment:10681072021-09-07T04:50:09.099Zमनोज अहसासhttp://openbooksonline.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p>आदरणीय समर कबीर साहब आपके मार्गदर्शन से सुधार करता हूँ </p>
<p>सादर आभार</p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहब आपके मार्गदर्शन से सुधार करता हूँ </p>
<p>सादर आभार</p> जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल…tag:openbooksonline.com,2021-09-06:5170231:Comment:10677742021-09-06T01:23:11.649ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'बिन मेरे जब दिल तुम्हारा जीने के काबिल हुआ।</span><br></br><span>देख ले मझधार ही मेरे लिए साहिल हुआ'</span></p>
<p><span>मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, सुधार का प्रयास करें ।</span></p>
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<p><span>'उसको <strong>जाया</strong> कर दिया है जो हमें हासिल हुआ'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में आपको 'ज़ाया' और 'जाया' के अर्थ में कुछ अंतर नहीं लगता? आख़िर सहीह शब्द लिखना कब…</span></p>
<p>जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p></p>
<p><span>'बिन मेरे जब दिल तुम्हारा जीने के काबिल हुआ।</span><br/><span>देख ले मझधार ही मेरे लिए साहिल हुआ'</span></p>
<p><span>मतले के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है, सुधार का प्रयास करें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>'उसको <strong>जाया</strong> कर दिया है जो हमें हासिल हुआ'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में आपको 'ज़ाया' और 'जाया' के अर्थ में कुछ अंतर नहीं लगता? आख़िर सहीह शब्द लिखना कब सीखेंगे?</span></p>
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<p><span>'सामने आकर खड़ी हो जाती हैं सूरत कईं'</span></p>
<p><span>इस मिसरे का शिल्प कमज़ोर है, यूँ कर लें:-</span></p>
<p><span>'सामने आकर खड़ी होती हैं कितनी सूरतें'</span></p>
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<p><span>'तू मेरी ग़ज़लों में लगभग हर दफा शामिल हुआ'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'दफा' शब्द ग़लत है, सहीह शब्द है "दफ़'अ:" इसे 21 और 22 दोनों वज़्न पर ले सकते हैं, सुधार का प्रयास करें ।</span></p>
<p></p>
<p><span>ग़ज़ल में कई शब्द नुक़्तों के बग़ैर ग़ज़ल को मुँह चिढ़ाते लग रहे हैं ।</span></p>
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<p></p> आदाब, मनोज अहसास साहब, मतला,…tag:openbooksonline.com,2021-09-04:5170231:Comment:10676802021-09-04T06:40:55.983ZChetan Prakashhttp://openbooksonline.com/profile/ChetanPrakash68
<p>आदाब, मनोज अहसास साहब, मतला, मुझे रब्त का अभाव लगा! वक़्त भी आपने ग़ज़ल को क़म दिया है, आप स्वयं बेहतर कर सकते हैं, ऐसा प्रतीत हुआ! देखिए गा! </p>
<p>आदाब, मनोज अहसास साहब, मतला, मुझे रब्त का अभाव लगा! वक़्त भी आपने ग़ज़ल को क़म दिया है, आप स्वयं बेहतर कर सकते हैं, ऐसा प्रतीत हुआ! देखिए गा! </p>