Comments - जो इजाजत हो - Open Books Online2024-03-28T21:54:41Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1069756&xn_auth=noआदरणीय श्री सौरभ पांडे सर प्र…tag:openbooksonline.com,2021-11-08:5170231:Comment:10729522021-11-08T02:05:38.046Zआशीष यादवhttp://openbooksonline.com/profile/Ashishyadav
<p>आदरणीय श्री सौरभ पांडे सर प्रणाम। </p>
<p>मैं हमेशा आप जैसे गुरुजनों से सीखने के लिए उत्साहित रहता हूं। </p>
<p>इस रचना पर आपकी टिप्पणी पाकर मन बहुत प्रसन्न हुआ है।</p>
<p>आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।</p>
<p>आदरणीय श्री सौरभ पांडे सर प्रणाम। </p>
<p>मैं हमेशा आप जैसे गुरुजनों से सीखने के लिए उत्साहित रहता हूं। </p>
<p>इस रचना पर आपकी टिप्पणी पाकर मन बहुत प्रसन्न हुआ है।</p>
<p>आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।</p> अवश्य, यह मुफाईलुन ही है. …tag:openbooksonline.com,2021-10-06:5170231:Comment:10706572021-10-06T13:36:01.456ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p></p>
<p>अवश्य, यह मुफाईलुन ही है. </p>
<p></p>
<p>(डबल e) </p>
<p>:-))</p>
<p></p>
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<p>अवश्य, यह मुफाईलुन ही है. </p>
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<p>(डबल e) </p>
<p>:-))</p>
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<p></p> //गौर से मिसरों को देखा तो यह…tag:openbooksonline.com,2021-10-06:5170231:Comment:10704782021-10-06T12:19:34.519ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p><span>//गौर से मिसरों को देखा तो यह मुफाइलुन की चार आवृतियों पर सधी ग़ज़ल है//</span></p>
<p><span>जी, 'मफाइलुन' नहीं "मुफ़ाईलुन"1222 :-)))</span></p>
<p><span>//गौर से मिसरों को देखा तो यह मुफाइलुन की चार आवृतियों पर सधी ग़ज़ल है//</span></p>
<p><span>जी, 'मफाइलुन' नहीं "मुफ़ाईलुन"1222 :-)))</span></p> इस ग़ज़ल के विन्यास को देख कर ए…tag:openbooksonline.com,2021-10-06:5170231:Comment:10704002021-10-06T11:57:26.696ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>इस ग़ज़ल के विन्यास को देख कर एकबारगी चकरा ही गया था, भाई अशीष जी. </p>
<p>फिर गौर से मिसरों को देखा तो यह मुफाइलुन की चार आवृतियों पर सधी ग़ज़ल है. </p>
<p></p>
<p>इस प्रयास पर सार्थक चर्चा हो चुकी है जिसके मानी है कि यह प्रस्तति कुछ और समय चाहती है. </p>
<p></p>
<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p>
<p>इस ग़ज़ल के विन्यास को देख कर एकबारगी चकरा ही गया था, भाई अशीष जी. </p>
<p>फिर गौर से मिसरों को देखा तो यह मुफाइलुन की चार आवृतियों पर सधी ग़ज़ल है. </p>
<p></p>
<p>इस प्रयास पर सार्थक चर्चा हो चुकी है जिसके मानी है कि यह प्रस्तति कुछ और समय चाहती है. </p>
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<p>शुभातिशुभ</p>
<p></p> आदरणीय श्री अमीरुद्दीन 'अमीर'…tag:openbooksonline.com,2021-09-29:5170231:Comment:10703152021-09-29T18:15:52.435Zआशीष यादवhttp://openbooksonline.com/profile/Ashishyadav
<p>आदरणीय श्री अमीरुद्दीन 'अमीर' सर प्रणाम। </p>
<p>आपकी टिप्पणी हमेशा उत्साह बढ़ाने का कार्य करती है। एवं मैं स्वयं को धन्य पाता हूँ। </p>
<p>मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह पर गौर फरमाते हुए मैंने मूल रचना में सुधार की कोशिश की है एवं कुछ सुझाव ज्यों का त्यों कर लिया है। </p>
<p>सादर</p>
<p>आदरणीय श्री अमीरुद्दीन 'अमीर' सर प्रणाम। </p>
<p>आपकी टिप्पणी हमेशा उत्साह बढ़ाने का कार्य करती है। एवं मैं स्वयं को धन्य पाता हूँ। </p>
<p>मोहतरम समर कबीर साहब की इस्लाह पर गौर फरमाते हुए मैंने मूल रचना में सुधार की कोशिश की है एवं कुछ सुझाव ज्यों का त्यों कर लिया है। </p>
<p>सादर</p> आदरणीय श्री समर कबीर साहब प्र…tag:openbooksonline.com,2021-09-29:5170231:Comment:10701882021-09-29T18:09:37.455Zआशीष यादवhttp://openbooksonline.com/profile/Ashishyadav
<p>आदरणीय श्री समर कबीर साहब प्रणाम। </p>
<p>आपका मार्गदर्शन हमेशा से ही सुखद अनुभूति रहा है। </p>
<p>कई छोटी छोटी चीजें जो हम गलत कर जाते हैं या उन पर हमारा ध्यान नहीं जाता या हम जल्दबाजी कर जाते हैं तब आपकी सीख मसाल की तरह होती है। </p>
<p>आपका सुझाव ग्रहणीय है। </p>
<p>अन्य रचनाओं पर भी मार्गदर्शन की अपेक्षा रहेगी। </p>
<p></p>
<p>आदरणीय श्री समर कबीर साहब प्रणाम। </p>
<p>आपका मार्गदर्शन हमेशा से ही सुखद अनुभूति रहा है। </p>
<p>कई छोटी छोटी चीजें जो हम गलत कर जाते हैं या उन पर हमारा ध्यान नहीं जाता या हम जल्दबाजी कर जाते हैं तब आपकी सीख मसाल की तरह होती है। </p>
<p>आपका सुझाव ग्रहणीय है। </p>
<p>अन्य रचनाओं पर भी मार्गदर्शन की अपेक्षा रहेगी। </p>
<p></p> जनाब आशीष यादव जी आदाब, ग़ज़ल…tag:openbooksonline.com,2021-09-28:5170231:Comment:10701602021-09-28T12:36:58.510Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब आशीष यादव जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें। मुहतरम समर कबीर साहिब ने मुकम्मल इस्लाह कर दी है ग़ौर कीजियेगा। सादर।</p>
<p>जनाब आशीष यादव जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें। मुहतरम समर कबीर साहिब ने मुकम्मल इस्लाह कर दी है ग़ौर कीजियेगा। सादर।</p> जनाब आशीष यादव जी आदाब ,ग़ज़ल…tag:openbooksonline.com,2021-09-28:5170231:Comment:10699712021-09-28T10:36:39.042ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब आशीष यादव जी आदाब ,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I </p>
<p></p>
<p>आपने ग़ज़ल के अरकान ग़लत लिखे हैं, इसके दुरुस्त अरकान यूँ हैं :-</p>
<p>१२२२ १२२२ १२२२ १२२२</p>
<p>अगर उचित लगे तो रदीफ़ में "जो" की जगह "गर" कर लें, हालाँकि अगर और जो के अर्थ समान ही हैं I </p>
<p></p>
<p></p>
<p><span>'बहुत नायाब दौलत है तुम्हारे हुस्न की दौलत </span></p>
<p><span>तुम्हारा हुस्न तुमसे ही चुरा लूँ जो इजाजत हो </span><span>'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'चूम डालूँ ' शब्द का वाक्य विन्यास…</span></p>
<p>जनाब आशीष यादव जी आदाब ,ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें I </p>
<p></p>
<p>आपने ग़ज़ल के अरकान ग़लत लिखे हैं, इसके दुरुस्त अरकान यूँ हैं :-</p>
<p>१२२२ १२२२ १२२२ १२२२</p>
<p>अगर उचित लगे तो रदीफ़ में "जो" की जगह "गर" कर लें, हालाँकि अगर और जो के अर्थ समान ही हैं I </p>
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<p><span>'बहुत नायाब दौलत है तुम्हारे हुस्न की दौलत </span></p>
<p><span>तुम्हारा हुस्न तुमसे ही चुरा लूँ जो इजाजत हो </span><span>'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'चूम डालूँ ' शब्द का वाक्य विन्यास ठीक नहीं है , बदलने का प्रयास करें I </span></p>
<p></p>
<p><span>'बहुत नायाब दौलत है तुम्हारे हुस्न की दौलत </span></p>
<p><span>तुम्हारा हुस्न तुमसे ही चुरा लूँ जो इजाजत हो '</span></p>
<p><span>इस शे'र के ऊला मिसरे में 'दौलत' शब्द दो बार खटकता है, और ऊला और सानी दोनों मिसरों में 'हुस्न' शब्द दो बार खटकता है, उचित लगे तो इस शे'र को यूँ कहें :-</span></p>
<p><span>'बहुत नायाब दौलत है तुम्हारे हुस्न की जानम </span></p>
<p><span>इसे आँखों से मैं अपनी चुरालूँ गर इजाज़त हो '</span></p>
<p></p>
<p><span>'इन्हें मैं जाम समझूँ पी लूँ पा लूँ जो इजाजत हो'</span></p>
<p><span>इस मिसरे के वाक्य विन्यास पर ग़ौर करें i </span></p>
<p><span> </span></p>
<p><span>'वही सुंदर तरासा जिस्म जो एक बार देखा था'</span></p>
<p><span>इस मिसरे में 'तरासा' को "तराशा" और 'एक ' को "इक" क्र लें</span></p>
<p></p>
<p><span>'कई नगमे तुम्हारी याद में लिक्खा किया मैंने'</span></p>
<p><span>इस मिसरे का शिल्प ठीक नहीं, उचित लगे तो यूँ कहें:-</span></p>
<p><span>'कई नग़मे तुम्हारी याद में लिक्खे हैं जो मैंने '</span></p>
<p></p>
<p><span> </span></p>
<p></p>