Comments - ग़ज़ल नूर की- कहीं से उड़ के परिन्दे कहीं पे उतरे हैं - Open Books Online2024-03-28T13:18:21Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1075356&xn_auth=noआभार आ. बृजेश जी tag:openbooksonline.com,2021-12-31:5170231:Comment:10763402021-12-31T05:36:00.872ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आभार आ. बृजेश जी </p>
<p>आभार आ. बृजेश जी </p> बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आद…tag:openbooksonline.com,2021-12-30:5170231:Comment:10760042021-12-30T05:53:41.481Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय नीलेश जी...हरेक शे'र बेमिशाल</p>
<p>और मतला</p>
<p><span>कहीं से उड़ के परिन्दे कहीं पे उतरे हैं </span><br/><span>ख़ुदा से हो के ख़फ़ा हम ज़मीं पे उतरे हैं...जबरजस्त</span></p>
<p>बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल कही है आदरणीय नीलेश जी...हरेक शे'र बेमिशाल</p>
<p>और मतला</p>
<p><span>कहीं से उड़ के परिन्दे कहीं पे उतरे हैं </span><br/><span>ख़ुदा से हो के ख़फ़ा हम ज़मीं पे उतरे हैं...जबरजस्त</span></p> आभार आ. समर सर tag:openbooksonline.com,2021-12-27:5170231:Comment:10753942021-12-27T02:23:23.078ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आभार आ. समर सर </p>
<p>आभार आ. समर सर </p> जनाब निलेश 'नूर' जी आदाब, अच्…tag:openbooksonline.com,2021-12-26:5170231:Comment:10754682021-12-26T13:38:11.823ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब निलेश 'नूर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p>
<p>जनाब निलेश 'नूर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।</p> आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,//आपक…tag:openbooksonline.com,2021-12-24:5170231:Comment:10752842021-12-24T17:13:25.257ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,<br></br>//<span>आपकी ग़ज़ल पर मैंने कोई इस्लाह देने की जसारत नहीं की है, पाठक के रूप में एक सवाल आपसे किया है, जिस पर आप नाराज़ हो गये।//<br></br></span>मेरी किस बात से आपको लगा कि मैं नाराज़ हो गया हूँ??<br></br>आप ही टिप्पणी करें, कोई जवाब दे तो आप ही तय कर लें कि कोई नाराज़ है या नहीं..<br></br>मैंने सिर्फ आपके जवाब में तीन बातें कही और वो तीनों बातें पूर्णत: ठीक हैं..<br></br>आप मेरे जवाब से इतने कुढ़ गये कि फिर बिना मांगे सलाह देने लगे कि मेरा आचरण कैसा हो..<br></br>मुझे न मीठे का शौक है…</p>
<p>आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,<br/>//<span>आपकी ग़ज़ल पर मैंने कोई इस्लाह देने की जसारत नहीं की है, पाठक के रूप में एक सवाल आपसे किया है, जिस पर आप नाराज़ हो गये।//<br/></span>मेरी किस बात से आपको लगा कि मैं नाराज़ हो गया हूँ??<br/>आप ही टिप्पणी करें, कोई जवाब दे तो आप ही तय कर लें कि कोई नाराज़ है या नहीं..<br/>मैंने सिर्फ आपके जवाब में तीन बातें कही और वो तीनों बातें पूर्णत: ठीक हैं..<br/>आप मेरे जवाब से इतने कुढ़ गये कि फिर बिना मांगे सलाह देने लगे कि मेरा आचरण कैसा हो..<br/>मुझे न मीठे का शौक है न कसैले से परहेज़... अलबत्ता कोई यूँ ही कुछ भी कहने भर को कहता रहे तो दांत खट्टे ज़रूर कर देता हूँ ..<br/>आपने कह दिया रुख//// क्या मतलब बनता है वहां रुख का??? मैं क्यूँ मानूँ कि धरती ख़ुदा कि है///<br/>आप अपने ऊटपटांग ख़याल थोपें और फिर जब जवाब जी हुजुरी में न हो तो आचरण पर भाषण दें?? <br/>ये अदबी भोंडा पन है.. और मैं नो नोंसेंस आदमी हूँ ... <br/>सनद रहे <br/>नमस्ते <br/><br/><br/></p> तीन बातें!
//1) तख़य्युल पर इस…tag:openbooksonline.com,2021-12-24:5170231:Comment:10752822021-12-24T05:26:43.599Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>तीन बातें!</p>
<p>//1) तख़य्युल पर इस्लाह न हो।</p>
<p>2) यह आपकी मान्यता है कि ज़मीन भी ख़ुदा की है, मैं तो आसमान भी अपना ही मानता हूँ।</p>
<p>3) कोपभवन चाहे राजा का हो उस पर अधिकार रानियों का होता है। </p>
<p>रही बात रुख़ की ,,, तो कतई नहीं, ढब को रुख़ कर के बेढ़ब नहीं करूँगा।//</p>
<p>आ. निलेश नूर साहिब, आपकी ग़ज़ल पर मैंने एक पाठक के तौर पर टिप्पणी की थी, और ग़ज़ल अच्छी लगी तो उस पर पसंदगी का इज़हार भी किया।</p>
<p>आपकी ग़ज़ल पर मैंने कोई इस्लाह देने की जसारत नहीं की है, पाठक के रूप में एक…</p>
<p>तीन बातें!</p>
<p>//1) तख़य्युल पर इस्लाह न हो।</p>
<p>2) यह आपकी मान्यता है कि ज़मीन भी ख़ुदा की है, मैं तो आसमान भी अपना ही मानता हूँ।</p>
<p>3) कोपभवन चाहे राजा का हो उस पर अधिकार रानियों का होता है। </p>
<p>रही बात रुख़ की ,,, तो कतई नहीं, ढब को रुख़ कर के बेढ़ब नहीं करूँगा।//</p>
<p>आ. निलेश नूर साहिब, आपकी ग़ज़ल पर मैंने एक पाठक के तौर पर टिप्पणी की थी, और ग़ज़ल अच्छी लगी तो उस पर पसंदगी का इज़हार भी किया।</p>
<p>आपकी ग़ज़ल पर मैंने कोई इस्लाह देने की जसारत नहीं की है, पाठक के रूप में एक सवाल आपसे किया है, जिस पर आप नाराज़ हो गये।</p>
<p>मैंने ढब को रुख़ करने के लिए भी नहीं कहा मह्ज़ अपना नज़रिया पेश किया था, जिस से सहमत होना या असहमत होना आपका निर्णय है। </p>
<p>एक बात कहूँगा कि सिर्फ़ मीठा खाने से कई बीमारियां जकड़ सकती हैं, कभी-कभी कुछ कसैला न चाहते हुए भी निगल लेना चाहिए। अपने पाठकों या फॉलोवर्स को झिड़कना या उनसे नाराज़ आप जैसे दानिशवरों को शोभा नहीं देता है। शुभ-शुभ। </p>
<p></p>
<p></p> धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर सा…tag:openbooksonline.com,2021-12-23:5170231:Comment:10753682021-12-23T17:17:11.304ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,</p>
<p>तीन बातें!</p>
<p>1) तख़य्युल पर इस्लाह न हो।</p>
<p>2) यह आपकी मान्यता है कि ज़मीन भी ख़ुदा की है, मैं तो आसमान भी अपना ही मानता हूँ।</p>
<p>3) कोपभवन चाहे राजा का हो उस पर अधिकार रानियों का होता है। </p>
<p>रही बात रुख़ की ,,, तो कतई नहीं, ढब को रुख़ कर के बेढ़ब नहीं करूँगा।</p>
<p>सादर</p>
<p></p>
<p>धन्यवाद आ. अमीरुद्दीन अमीर साहब,</p>
<p>तीन बातें!</p>
<p>1) तख़य्युल पर इस्लाह न हो।</p>
<p>2) यह आपकी मान्यता है कि ज़मीन भी ख़ुदा की है, मैं तो आसमान भी अपना ही मानता हूँ।</p>
<p>3) कोपभवन चाहे राजा का हो उस पर अधिकार रानियों का होता है। </p>
<p>रही बात रुख़ की ,,, तो कतई नहीं, ढब को रुख़ कर के बेढ़ब नहीं करूँगा।</p>
<p>सादर</p>
<p></p> धन्यवाद आ. लक्ष्मण जीtag:openbooksonline.com,2021-12-23:5170231:Comment:10754392021-12-23T17:12:22.836ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी</p>
<p>धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी</p> आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदा…tag:openbooksonline.com,2021-12-23:5170231:Comment:10753662021-12-23T15:38:42.004Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।</p>
<p>"<strong>ख़ुदा से हो के ख़फ़ा</strong> हम ज़मीं पे उतरे हैं." इस मिसरे पर नज़र् ए सानी फ़रमाएं, ज़मीं भी ख़ुदा की ही कायनात का हिस्सा है।</p>
<p>''तुम्हारे <strong>ढब</strong> से मिली" "<span>तुम्हारे <strong>रुख़</strong> से मिली" सादर। </span></p>
<p>आदरणीय निलेश शेवगाँवकर जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल हुई है मुबारकबाद पेश करता हूँ।</p>
<p>"<strong>ख़ुदा से हो के ख़फ़ा</strong> हम ज़मीं पे उतरे हैं." इस मिसरे पर नज़र् ए सानी फ़रमाएं, ज़मीं भी ख़ुदा की ही कायनात का हिस्सा है।</p>
<p>''तुम्हारे <strong>ढब</strong> से मिली" "<span>तुम्हारे <strong>रुख़</strong> से मिली" सादर। </span></p> आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन…tag:openbooksonline.com,2021-12-23:5170231:Comment:10753642021-12-23T08:45:34.224Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई.</p>
<p>आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है । हार्दिक बधाई.</p>