Comments - अहसास की ग़ज़ल::; मनोज अहसास - Open Books Online2024-03-29T13:27:44Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1083815&xn_auth=noआ. भाई मनोज जी, सादर अभिवादन।…tag:openbooksonline.com,2022-05-17:5170231:Comment:10837552022-05-17T02:51:17.293Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई मनोज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। भाई समर जी का सुझाव उत्तम है । मिसरे और निखर गये है। शेष इंगितों में भी बदलाव का प्रयास करें। सादर...</p>
<p>आ. भाई मनोज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। भाई समर जी का सुझाव उत्तम है । मिसरे और निखर गये है। शेष इंगितों में भी बदलाव का प्रयास करें। सादर...</p> आदरणीय समर कबीर साहब सादर प्र…tag:openbooksonline.com,2022-05-16:5170231:Comment:10840262022-05-16T14:42:38.119Zमनोज अहसासhttp://openbooksonline.com/profile/ManojkumarAhsaas
<p>आदरणीय समर कबीर साहब सादर प्रणाम आपकी बहुमूल्य इस्लाह से ग़ज़ल लाभान्वित हुई है आप सदैव यूं ही आशीर्वाद बनाए रखें आपका बहुत-बहुत आभार</p>
<p>सादर</p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहब सादर प्रणाम आपकी बहुमूल्य इस्लाह से ग़ज़ल लाभान्वित हुई है आप सदैव यूं ही आशीर्वाद बनाए रखें आपका बहुत-बहुत आभार</p>
<p>सादर</p> जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल…tag:openbooksonline.com,2022-05-14:5170231:Comment:10838402022-05-14T11:01:14.354ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
<p>जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I </p>
<p></p>
<p><span>'पास तेरे रहने का हासिल नहीं है वक़्त पर'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को उचित लगे तो यूँ कहें :-</span></p>
<p><span>'वक़्त तेरे पास रहने का नहीं हासिल मगर '</span></p>
<p></p>
<p><span>'याद आ जाता है मुझको तब तेरी बाहों का हार'-- इस मिसरे में बाहों को 'बाँहों ' कर लें I </span></p>
<p></p>
<p><span>'हर घड़ी तेरी कमी महसूस होती है यहाँ,<br></br>ये पराया शहर मुझको तोड़ता है बार बार'</span></p>
<p><span>इस…</span></p>
<p>जनाब मनोज अहसास जी आदाब, ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है, बधाई स्वीकार करें I </p>
<p></p>
<p><span>'पास तेरे रहने का हासिल नहीं है वक़्त पर'</span></p>
<p><span>इस मिसरे को उचित लगे तो यूँ कहें :-</span></p>
<p><span>'वक़्त तेरे पास रहने का नहीं हासिल मगर '</span></p>
<p></p>
<p><span>'याद आ जाता है मुझको तब तेरी बाहों का हार'-- इस मिसरे में बाहों को 'बाँहों ' कर लें I </span></p>
<p></p>
<p><span>'हर घड़ी तेरी कमी महसूस होती है यहाँ,<br/>ये पराया शहर मुझको तोड़ता है बार बार'</span></p>
<p><span>इस शे`र को उचित लगे तो यूँ कहें :-</span></p>
<p></p>
<p><span>'हर घड़ी तेरी कमी महसूस होती है मुझे <br/>जब पराया शह्र मुझको तोड़ता है बार बार'</span></p>
<p></p>
<p><span>'फासले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था<br/>है सफर इक रात का बस पर लगे सागर के पार'--इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है ' देखिये I </span></p>
<p></p>
<p><span>'ज़िन्दगी का कर्ज़ सारा कर नहीं पाया अदा,<br/>इसलिए लिक्खा गया है ज़िन्दगी में इंतज़ार'-- इस शे`र के दोनों मिसरों में रब्त नहीं है , देखिएगा I </span></p>
<p></p>
<p><span>'नाम पर लिक्खी है तेरे आज ये पहली ग़ज़ल,<br/>प्यार तुम पर आ रहा है आज मुझको बेशुमार।'---इस शे`र में शुतर गुरबा दोष है, आप इतने समय से ग़ज़ल कह रहे हैं इस ऐब को नहीं होना चाहिए आपकी ग़ज़ल में I </span></p>
<p></p>