Comments - ग़ज़ल-अलग है - Open Books Online2024-03-29T15:30:45Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1087642&xn_auth=noआ. भाई ब्रिजेश जी, सादर अभिवा…tag:openbooksonline.com,2022-08-19:5170231:Comment:10877952022-08-19T10:35:20.669Zलक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'http://openbooksonline.com/profile/laxmandhami
<p>आ. भाई ब्रिजेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुन्दर इजल हुई है। हार्दिक बधाई।</p>
<p>आ. भाई ब्रिजेश जी, सादर अभिवादन। बहुत सुन्दर इजल हुई है। हार्दिक बधाई।</p> आदरणीय अवनीश जी सादर धन्यवादtag:openbooksonline.com,2022-08-11:5170231:Comment:10876902022-08-11T11:00:13.070Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>आदरणीय अवनीश जी सादर धन्यवाद</p>
<p>आदरणीय अवनीश जी सादर धन्यवाद</p> आदरणीय अमीरुद्दीन जी सुधार कि…tag:openbooksonline.com,2022-08-11:5170231:Comment:10877542022-08-11T10:59:44.251Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन जी सुधार किए हैं...हाँ मआनी के लिए कुछ उचित अभी कर नहीं पाया...लेकिन उसमें भी सुधार हो सकता है।</p>
<p>एक बार फिर आपका हार्दिक धन्यवाद</p>
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन जी सुधार किए हैं...हाँ मआनी के लिए कुछ उचित अभी कर नहीं पाया...लेकिन उसमें भी सुधार हो सकता है।</p>
<p>एक बार फिर आपका हार्दिक धन्यवाद</p> सुन्दर सृजन। हार्दिक शुभकामना…tag:openbooksonline.com,2022-08-09:5170231:Comment:10874872022-08-09T17:49:51.884ZAwanish Dhar Dvivedihttp://openbooksonline.com/profile/AwanishDharDvivedi
सुन्दर सृजन। हार्दिक शुभकामनायें।
सुन्दर सृजन। हार्दिक शुभकामनायें। //मैंने भी "ज़िन्दगी का" शब्द…tag:openbooksonline.com,2022-08-09:5170231:Comment:10877322022-08-09T12:09:54.935Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>//मैंने भी "ज़िन्दगी का" शब्द लिया है ..."ज़िन्दगी के" नहीं...थोड़ा सा और प्रकाश डालें क्या "ज़िन्दगी का" लेना उचित नहीं है??//</p>
<p>आदरणीय ब्रज जी , मानी=<strong>अर्थ</strong> (एकवचन), मआनी= <strong>अनेकार्थ</strong> (बहुवचन)</p>
<p>अब आप ख़ुद फ़ैसला कर लें। </p>
<p>1. यहाँ ज़िन्दगी का <strong>मआनी</strong> (अनेकार्थ) अलग <strong>है</strong>, (व्याकरण की दृष्टि से ग़लत वाक्य विन्यास) </p>
<p>2. यहाँ ज़िन्दगी का मानी (अर्थ) अलग है, (बह्र से ख़ारिज) </p>
<p>3. यहाँ ज़िन्दगी के मआनी (अनेकार्थ)…</p>
<p>//मैंने भी "ज़िन्दगी का" शब्द लिया है ..."ज़िन्दगी के" नहीं...थोड़ा सा और प्रकाश डालें क्या "ज़िन्दगी का" लेना उचित नहीं है??//</p>
<p>आदरणीय ब्रज जी , मानी=<strong>अर्थ</strong> (एकवचन), मआनी= <strong>अनेकार्थ</strong> (बहुवचन)</p>
<p>अब आप ख़ुद फ़ैसला कर लें। </p>
<p>1. यहाँ ज़िन्दगी का <strong>मआनी</strong> (अनेकार्थ) अलग <strong>है</strong>, (व्याकरण की दृष्टि से ग़लत वाक्य विन्यास) </p>
<p>2. यहाँ ज़िन्दगी का मानी (अर्थ) अलग है, (बह्र से ख़ारिज) </p>
<p>3. यहाँ ज़िन्दगी के मआनी (अनेकार्थ) <strong>अलग हैं</strong> (रदीफ़ बदल रही है) </p>
<p></p>
<p></p> आदरणीय अमीरुद्दीन जी मैंने भी…tag:openbooksonline.com,2022-08-09:5170231:Comment:10875492022-08-09T06:19:42.912Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन जी मैंने भी "ज़िन्दगी का" शब्द लिया है ..."ज़िन्दगी के" नहीं...थोड़ा सा और प्रकाश डालें क्या "ज़िन्दगी का" लेना उचित नहीं है??</p>
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन जी मैंने भी "ज़िन्दगी का" शब्द लिया है ..."ज़िन्दगी के" नहीं...थोड़ा सा और प्रकाश डालें क्या "ज़िन्दगी का" लेना उचित नहीं है??</p> जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी,
//…tag:openbooksonline.com,2022-08-07:5170231:Comment:10874862022-08-07T16:34:14.974Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी, </p>
<p>//फसाना पूर्णरूप से काल्पनिक हो सकता है लेकिन कहानी कई बार सत्य भी होती है...//</p>
<p>जनाब, फ़साना और कहानी पर्यायवाची शब्द हैं, कहानी सच्ची भी हो सकती है मगर उसे सच्ची कहानी या सत्यकथा कहेंगे। </p>
<p>//मआनी शब्द बहुवचन है परंतु शहरयार की ग़ज़ल का शेर देखिए</p>
<p>कहते हैं मेरे हक़ में सुख़नफ़ह्म बस इतना</p>
<p>शे'रों में जो <strong>ख़ूबी है</strong> मआनी से <strong>नहीं है</strong>। एकवचन लिया गया है// </p>
<p>जी नहीं, एकवचन नहीं लिया गया है ग़ौर फ़रमाएं,…</p>
<p>जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी, </p>
<p>//फसाना पूर्णरूप से काल्पनिक हो सकता है लेकिन कहानी कई बार सत्य भी होती है...//</p>
<p>जनाब, फ़साना और कहानी पर्यायवाची शब्द हैं, कहानी सच्ची भी हो सकती है मगर उसे सच्ची कहानी या सत्यकथा कहेंगे। </p>
<p>//मआनी शब्द बहुवचन है परंतु शहरयार की ग़ज़ल का शेर देखिए</p>
<p>कहते हैं मेरे हक़ में सुख़नफ़ह्म बस इतना</p>
<p>शे'रों में जो <strong>ख़ूबी है</strong> मआनी से <strong>नहीं है</strong>। एकवचन लिया गया है// </p>
<p>जी नहीं, एकवचन नहीं लिया गया है ग़ौर फ़रमाएं, शहरयार यहाँ 'शे'रों की ख़ूूबी' (एकवचन) का ज़िक्र कर रहे हैं, इसलिये यहाँ <strong>'</strong>नहीं <strong>है' </strong>आ रहा है। </p>
<p></p>
<p>//महमूद अयाज़ की ग़ज़ल का मतला भी देखें</p>
<p>लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो...यहां भी एकवचन ही लग रहा है//</p>
<p>ऐसा नहीं है, यहाँ भी बहुवचन ही लिया गया है। </p>
<p>... और आप तो मानते भी हैं और जानते भी हैं कि 'मआनी' शब्द बहुवचन है तो फिर मसला ही कोई नहीं है। सादर। </p>
<p></p> आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी ग़ज़ल…tag:openbooksonline.com,2022-08-07:5170231:Comment:10875472022-08-07T09:38:23.446Zबृजेश कुमार 'ब्रज'http://openbooksonline.com/profile/brijeshkumar
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी ग़ज़ल की विस्तृत समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आपका...फसाना और कहानी में थोड़ा अन्तर होना चाहिए... फसाना पूर्णरूप से काल्पनिक हो सकता है लेकिन कहानी कई बार सत्य भी होती है...इसलिए फसाना और कहानी अलग अलग लिया है...हालांकि आपका सुझाव "हक़ीक़त" भी बहुत उम्दा है...</p>
<p>ये गरमी की बारिश सुकूँ है अगरचे</p>
<p>मग़र आँख से बहता पानी अलग है.... मिसरों में रब्त का अभाव है, कहन स्पष्ट नहीं है। </p>
<p>कहन स्पष्ट है आदरणीय... जहाँ तन और मन दोनों व्यथित हैं वहाँ बाहरी बारिश से तन को…</p>
<p>आदरणीय अमीरुद्दीन अमीर जी ग़ज़ल की विस्तृत समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आपका...फसाना और कहानी में थोड़ा अन्तर होना चाहिए... फसाना पूर्णरूप से काल्पनिक हो सकता है लेकिन कहानी कई बार सत्य भी होती है...इसलिए फसाना और कहानी अलग अलग लिया है...हालांकि आपका सुझाव "हक़ीक़त" भी बहुत उम्दा है...</p>
<p>ये गरमी की बारिश सुकूँ है अगरचे</p>
<p>मग़र आँख से बहता पानी अलग है.... मिसरों में रब्त का अभाव है, कहन स्पष्ट नहीं है। </p>
<p>कहन स्पष्ट है आदरणीय... जहाँ तन और मन दोनों व्यथित हैं वहाँ बाहरी बारिश से तन को सुकूँ मिल जाता है लेकिन अंतस की व्यथा से आँखों की बारिश होती है लेकिन वो और अधिक पीड़ादायी है।</p>
<p>है खानाबदोशों की ख़ामोश बस्ती</p>
<p>यहाँ ज़िन्दगी का मआनी अलग है.... 'मआनी' शब्द बहुवचन है, रदीफ़ हैं हो रही है। </p>
<p>मियां शायरी को ज़रा मांजियेगा</p>
<p>मआनी शब्द बहुवचन है परंतु शहरयार की ग़ज़ल का शेर देखिए</p>
<p><span>कहते हैं मेरे हक़ में सुख़नफ़ह्म बस इतना</span><br/><span>शे'रों में जो ख़ूबी है मआनी से नहीं है। एकवचन लिया गया है इसके अलावा</span></p>
<p><span>महमूद अयाज़ की ग़ज़ल का मतला भी देखें</span></p>
<p><span>लफ़्ज़ ओ मंज़र में मआनी को टटोला न करो...यहां भी एकवचन ही लग रहा<br/>होश वाले हो तो हर बात को समझा न करो</span></p>
<p><span>हाँ उला मैंने गलत ले लिया इसमें सुधार करता हूँ</span></p>
<p>बाकी शेर भी सुधारने योग्य हैं...आपका बहुत बहुत शुक्रिया</p> पुनश्च:
//पढ़ो गौर से जल्दबाजी…tag:openbooksonline.com,2022-08-06:5170231:Comment:10874832022-08-06T16:22:51.177Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p><u>पुनश्च:</u></p>
<p>//पढ़ो गौर से जल्दबाजी न कीजे... कीजै के साथ 'पढ़ो' नहीं 'पढ़ें' चलेगा।//</p>
<p><span style="text-decoration: underline;">भूल सुधार :</span></p>
<p><strong>कीजै के साथ 'पढ़ो' नहीं 'पढ़िये' चलेगा।</strong></p>
<p></p>
<p></p>
<p><u>पुनश्च:</u></p>
<p>//पढ़ो गौर से जल्दबाजी न कीजे... कीजै के साथ 'पढ़ो' नहीं 'पढ़ें' चलेगा।//</p>
<p><span style="text-decoration: underline;">भूल सुधार :</span></p>
<p><strong>कीजै के साथ 'पढ़ो' नहीं 'पढ़िये' चलेगा।</strong></p>
<p></p>
<p></p> जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब…tag:openbooksonline.com,2022-08-06:5170231:Comment:10875442022-08-06T11:46:40.204Zअमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवीhttp://openbooksonline.com/profile/0q7lh6g5bl2lz
<p>जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, ख़ूबसूरत ख़याल के साथ ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।</p>
<p></p>
<p>फ़साना जुदा था कहानी अलग है.... जनाब फ़साना और कहानी एक ही बात है। </p>
<p>सुनो ख़्वाब से ज़िंदगानी अलग है.... ऊला यूँ कर सकते हैं - हक़ीक़त जुदा थी... </p>
<p>ये गरमी की बारिश सुकूँ है अगरचे</p>
<p>मग़र आँख से बहता पानी अलग है.... मिसरों में रब्त का अभाव है, कहन स्पष्ट नहीं है। </p>
<p>है खानाबदोशों की ख़ामोश बस्ती</p>
<p>यहाँ ज़िन्दगी का मआनी अलग है.... 'मआनी' शब्द बहुवचन है, रदीफ़ हैं…</p>
<p>जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, ख़ूबसूरत ख़याल के साथ ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें।</p>
<p></p>
<p>फ़साना जुदा था कहानी अलग है.... जनाब फ़साना और कहानी एक ही बात है। </p>
<p>सुनो ख़्वाब से ज़िंदगानी अलग है.... ऊला यूँ कर सकते हैं - हक़ीक़त जुदा थी... </p>
<p>ये गरमी की बारिश सुकूँ है अगरचे</p>
<p>मग़र आँख से बहता पानी अलग है.... मिसरों में रब्त का अभाव है, कहन स्पष्ट नहीं है। </p>
<p>है खानाबदोशों की ख़ामोश बस्ती</p>
<p>यहाँ ज़िन्दगी का मआनी अलग है.... 'मआनी' शब्द बहुवचन है, रदीफ़ हैं हो रही है। </p>
<p>मियां शायरी को ज़रा मांजियेगा</p>
<p>उला कुछ कहे और सानी अलग है... उला नहीं 'ऊला'.. यूँ कर सकते हैं- कहे ऊला कुछ और.. </p>
<p>पढ़ो गौर से जल्दबाजी न कीजे..... कीजै के साथ 'पढ़ो' नहीं 'पढ़ें' चलेगा। </p>
<p>ग़ज़ल की मधुरता रवानी अलग है</p>
<p></p>
<p>शग़ल तो नहीं 'ब्रज' फ़क़त याद करना.... भाव स्पष्ट नहीं हुआ। </p>
<p>तसव्वुर तेरा शादमानी अलग है.... ऊला यूँ कर सकते हैं - 'मैं यादें सभी की संजोता नहीं 'ब्रज'.... शुभ-शुभ।</p>