Comments - लोग... - Open Books Online2024-03-28T18:02:32Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A1727&xn_auth=noBahut badhiya Vivek jee, aapn…tag:openbooksonline.com,2010-04-16:5170231:Comment:20392010-04-16T03:10:46.039ZSanjay Kumar Singhhttp://openbooksonline.com/profile/SanjayKumarSingh
Bahut badhiya Vivek jee, aapney sahi likha hai Log do hi hotey hai achhey log aur burey log,
Bahut badhiya Vivek jee, aapney sahi likha hai Log do hi hotey hai achhey log aur burey log, Vivek Mishra ji ,
sarbpratham…tag:openbooksonline.com,2010-04-14:5170231:Comment:17872010-04-14T08:11:35.787ZBIJAY PATHAKhttp://openbooksonline.com/profile/BIJAYPATHAK
Vivek Mishra ji ,<br />
sarbpratham badhai itna sunder rachna ke liye, padhte hi samajh me aata hai ki ' hriday ne racha rachna hai'<br />
Bijay Pathak
Vivek Mishra ji ,<br />
sarbpratham badhai itna sunder rachna ke liye, padhte hi samajh me aata hai ki ' hriday ne racha rachna hai'<br />
Bijay Pathak हौसला अफज़ाई का शुक्रिया.. ये…tag:openbooksonline.com,2010-04-14:5170231:Comment:17772010-04-14T03:46:46.777Zविवेक मिश्रhttp://openbooksonline.com/profile/VivekMishra
हौसला अफज़ाई का शुक्रिया.. ये तो आप लोगों का प्रेम है, जो हम लिख लेते हैं, वरना हम कोई प्रोफेशनल लेखक थोड़े ही हैं. ये कविता मैने ट्रेन में सफ़र करते वक़्त शुरू की थी, और अभी कल परसो जाकर ख़त्म हुई. मेरा मानना है कि लोगों को हिंदू-मुसलमान नही, केवल इंसान मानना चाहिए. हम सब एक हैं और हम सबका मालिक भी एक ही है.
हौसला अफज़ाई का शुक्रिया.. ये तो आप लोगों का प्रेम है, जो हम लिख लेते हैं, वरना हम कोई प्रोफेशनल लेखक थोड़े ही हैं. ये कविता मैने ट्रेन में सफ़र करते वक़्त शुरू की थी, और अभी कल परसो जाकर ख़त्म हुई. मेरा मानना है कि लोगों को हिंदू-मुसलमान नही, केवल इंसान मानना चाहिए. हम सब एक हैं और हम सबका मालिक भी एक ही है. बहुत सही विवेक भाई, आप तो गर्…tag:openbooksonline.com,2010-04-13:5170231:Comment:17592010-04-13T18:25:42.759ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooksonline.com/profile/GaneshJee
बहुत सही विवेक भाई, आप तो गर्दा उड़ा दिये है, बिल्कुल सोलह आना सही और 24 केरेट सुध बात लिखी है आपने, दुनिया मे बस दो ही प्रकार के लोग होते है अच्छे और बुरे, अगर यह भेद भाव मिट जाता और दुनिया मे केवल अच्छे लोग ही हो जाते तो क्या कहने, ये दुनिया शायद स्वर्ग से सुंदर बन जाता,
बहुत सही विवेक भाई, आप तो गर्दा उड़ा दिये है, बिल्कुल सोलह आना सही और 24 केरेट सुध बात लिखी है आपने, दुनिया मे बस दो ही प्रकार के लोग होते है अच्छे और बुरे, अगर यह भेद भाव मिट जाता और दुनिया मे केवल अच्छे लोग ही हो जाते तो क्या कहने, ये दुनिया शायद स्वर्ग से सुंदर बन जाता, bahut badhiay rachna baa vive…tag:openbooksonline.com,2010-04-13:5170231:Comment:17352010-04-13T08:10:32.735ZPREETAM TIWARY(PREET)http://openbooksonline.com/profile/preetamkumartiwary
bahut badhiay rachna baa vivek jee....<br />
ये काबा तेरा;<br />
ये शिवाला मेरा,<br />
नींदों में कंधा बाँटते..<br />
ये सरहदों जैसे लोग..<br />
मंदिर की चौखट पे;<br />
होती थी बैठकबाजी,<br />
जाने कब मुसलमाँ बने;<br />
ये मज़हबों जैसे लोग..<br />
dhanybaad vivek bhai ehja post kare khatir...............
bahut badhiay rachna baa vivek jee....<br />
ये काबा तेरा;<br />
ये शिवाला मेरा,<br />
नींदों में कंधा बाँटते..<br />
ये सरहदों जैसे लोग..<br />
मंदिर की चौखट पे;<br />
होती थी बैठकबाजी,<br />
जाने कब मुसलमाँ बने;<br />
ये मज़हबों जैसे लोग..<br />
dhanybaad vivek bhai ehja post kare khatir............... ji sahi kaha ji kewal do prak…tag:openbooksonline.com,2010-04-13:5170231:Comment:17322010-04-13T06:13:57.732Zamithttp://openbooksonline.com/profile/amit
ji sahi kaha ji kewal do prakar ke log hote hai achhe aur bure.....
ji sahi kaha ji kewal do prakar ke log hote hai achhe aur bure..... ये काबा तेरा;
ये शिवाला मेरा,…tag:openbooksonline.com,2010-04-13:5170231:Comment:17312010-04-13T05:56:18.731ZAdminhttp://openbooksonline.com/profile/Admin
ये काबा तेरा;<br />
ये शिवाला मेरा,<br />
नींदों में कंधा बाँटते..<br />
ये सरहदों जैसे लोग..<br />
मंदिर की चौखट पे;<br />
होती थी बैठकबाजी,<br />
जाने कब मुसलमाँ बने;<br />
ये मज़हबों जैसे लोग..<br />
<font color="green">वाह विवेक जी वाह, इस कविता की जीतनी भी तारीफ़ किया जाय वो शायद कम होगी ,फिर आप की एक बेहतरीन रचना हम लोगो के बीच है, आप जो अपने कविता मे उर्दू लफ्जो का पर्योग जिस खूबसूरती से करते है वो तारीफ़ के लायक है,अंत मे जो आप ने कहा की लोग दो ही होते है अच्छे लोग और बुरे लोग, बिलकुल सही कहा है, बहुत बहुत धन्यवाद इस खुबसूरत कविता के…</font>
ये काबा तेरा;<br />
ये शिवाला मेरा,<br />
नींदों में कंधा बाँटते..<br />
ये सरहदों जैसे लोग..<br />
मंदिर की चौखट पे;<br />
होती थी बैठकबाजी,<br />
जाने कब मुसलमाँ बने;<br />
ये मज़हबों जैसे लोग..<br />
<font color="green">वाह विवेक जी वाह, इस कविता की जीतनी भी तारीफ़ किया जाय वो शायद कम होगी ,फिर आप की एक बेहतरीन रचना हम लोगो के बीच है, आप जो अपने कविता मे उर्दू लफ्जो का पर्योग जिस खूबसूरती से करते है वो तारीफ़ के लायक है,अंत मे जो आप ने कहा की लोग दो ही होते है अच्छे लोग और बुरे लोग, बिलकुल सही कहा है, बहुत बहुत धन्यवाद इस खुबसूरत कविता के लिये, आप के अगला पोस्ट का इंतजार बहुत सिद्दत से रहेगा,</font>