Comments - सीधा लड़का - Open Books Online2024-03-29T09:43:08Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A208260&xn_auth=noसच कहूँ तो मैंने इस नजरिये से…tag:openbooksonline.com,2012-04-13:5170231:Comment:2137782012-04-13T12:17:09.556Zराकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'http://openbooksonline.com/profile/RakeshTripathi667
<p>सच कहूँ तो मैंने इस नजरिये से लिखा था की लड़का उस्ताद था एकदम, ऑब्जेक्टिव! चाहे कोई भी मैदान हो, चुपचाप अपना काम कर जाता था :)</p>
<p>सच कहूँ तो मैंने इस नजरिये से लिखा था की लड़का उस्ताद था एकदम, ऑब्जेक्टिव! चाहे कोई भी मैदान हो, चुपचाप अपना काम कर जाता था :)</p> हा.........हा................…tag:openbooksonline.com,2012-04-13:5170231:Comment:2140292012-04-13T11:20:58.266ZShubhranshu Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/ShubhranshuPandey
<p>हा.........हा................हा.........भाई दहेज और प्रेम विवाह तो दिख ही रहा था...कुछ ऎसा भी था वो भी साथ साथ ही दीख रहा था......</p>
<p>हा.........हा................हा.........भाई दहेज और प्रेम विवाह तो दिख ही रहा था...कुछ ऎसा भी था वो भी साथ साथ ही दीख रहा था......</p> भाई शुभ्रांशु जी, सादर! आपने…tag:openbooksonline.com,2012-04-12:5170231:Comment:2136352012-04-12T05:19:01.297Zराकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'http://openbooksonline.com/profile/RakeshTripathi667
<p>भाई शुभ्रांशु जी, सादर! आपने कहानी को एक नए नजरिये से देखा है, वह मजा आ गया :)</p>
<p>भाई शुभ्रांशु जी, सादर! आपने कहानी को एक नए नजरिये से देखा है, वह मजा आ गया :)</p> सीधा लडका था...पिता की बात मा…tag:openbooksonline.com,2012-04-11:5170231:Comment:2135082012-04-11T14:37:44.983ZShubhranshu Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/ShubhranshuPandey
<p>सीधा लडका था...पिता की बात माना और IAS हो गया......एक उदाहरण् ही है उन सभी प्रेम में पडने वाले लोगों से...पहले कुछ करो फ़िर प्रेम करो.....</p>
<p>सीधा लडका था...पिता की बात माना और IAS हो गया......एक उदाहरण् ही है उन सभी प्रेम में पडने वाले लोगों से...पहले कुछ करो फ़िर प्रेम करो.....</p> अश्विनी भाई, सुप्रभात. कहानी…tag:openbooksonline.com,2012-04-06:5170231:Comment:2099922012-04-06T02:36:28.295Zराकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'http://openbooksonline.com/profile/RakeshTripathi667
<p>अश्विनी भाई, सुप्रभात. कहानी मनोरंजन के लिए ही लिखी थी, आपको आनंद आया तो हमें बहुत ख़ुशी हुयी. धन्यवाद.</p>
<p>अश्विनी भाई, सुप्रभात. कहानी मनोरंजन के लिए ही लिखी थी, आपको आनंद आया तो हमें बहुत ख़ुशी हुयी. धन्यवाद.</p> भाई राकेश जी आपकी कथा सीधा लड़…tag:openbooksonline.com,2012-04-05:5170231:Comment:2099742012-04-05T18:27:22.753Zअश्विनी कुमारhttp://openbooksonline.com/profile/0ebe0p3dse0e4
<p>भाई राकेश जी आपकी कथा सीधा लड़का भाई वास्तव मे सीधा लड़का ही था जो सीधा घर ही गया सीधा जो था ,,पता नही क्यों इस सीधे लड़के पर इतनी देर बाद दृष्टि पड़ी ....सादर मनोरंजक कथा के लिए हार्दिक आभार</p>
<p>भाई राकेश जी आपकी कथा सीधा लड़का भाई वास्तव मे सीधा लड़का ही था जो सीधा घर ही गया सीधा जो था ,,पता नही क्यों इस सीधे लड़के पर इतनी देर बाद दृष्टि पड़ी ....सादर मनोरंजक कथा के लिए हार्दिक आभार</p> आदरणीय अविनाश जी, सादर! प्रत्…tag:openbooksonline.com,2012-04-03:5170231:Comment:2090682012-04-03T17:02:10.598Zराकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'http://openbooksonline.com/profile/RakeshTripathi667
<p>आदरणीय अविनाश जी, सादर! प्रत्साहन हेतु धन्यवाद. नहीं वो सार नहीं है, वो व्यंग्य है की कुछ लोग अपनी अधूरी इक्षाएं जिंदगी भर नहीं छोड़ पाते :)</p>
<p>आदरणीय अविनाश जी, सादर! प्रत्साहन हेतु धन्यवाद. नहीं वो सार नहीं है, वो व्यंग्य है की कुछ लोग अपनी अधूरी इक्षाएं जिंदगी भर नहीं छोड़ पाते :)</p> बहुत संपन्न होने के बाद भी चा…tag:openbooksonline.com,2012-04-03:5170231:Comment:2089672012-04-03T14:04:51.901ZAVINASH S BAGDEhttp://openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p><span>बहुत संपन्न होने के बाद भी चाचा जी को दहेज़ न मिल पाने की खलिश आज भी कभी कभी सताती है....kya yahi sar hai!!!</span></p>
<p><span>very nice story <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/RakeshTripathi667">राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'</a><a class="nolink"> ji.</a></span></p>
<p><span>बहुत संपन्न होने के बाद भी चाचा जी को दहेज़ न मिल पाने की खलिश आज भी कभी कभी सताती है....kya yahi sar hai!!!</span></p>
<p><span>very nice story <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/RakeshTripathi667">राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'</a><a class="nolink"> ji.</a></span></p> आदरणीय मीनू जी, एवं श्री वाहि…tag:openbooksonline.com,2012-04-03:5170231:Comment:2087282012-04-03T10:41:35.213Zराकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी'http://openbooksonline.com/profile/RakeshTripathi667
<p>आदरणीय मीनू जी, एवं श्री वाहिद जी, सादर नमस्कार. इस रचना ने आप लोगो का मनोरंजन किया, लिखना सफल रहा. मीनू जी, बच्चे चुप के शायद माँ के दर से ही कोई काम करते हैं, जैसा की श्रद्धेय राजेश कुमारी जी ने कहा की अगर पैरेंट्स ने एक दोस्त की तरह बात की होती तो स्थिति दूसरी होती.</p>
<p>आदरणीय मीनू जी, एवं श्री वाहिद जी, सादर नमस्कार. इस रचना ने आप लोगो का मनोरंजन किया, लिखना सफल रहा. मीनू जी, बच्चे चुप के शायद माँ के दर से ही कोई काम करते हैं, जैसा की श्रद्धेय राजेश कुमारी जी ने कहा की अगर पैरेंट्स ने एक दोस्त की तरह बात की होती तो स्थिति दूसरी होती.</p> राकेश जी
कहानी अच्छी लगी,पर म…tag:openbooksonline.com,2012-04-03:5170231:Comment:2085892012-04-03T07:59:06.774Zminu jhahttp://openbooksonline.com/profile/minujha
<p>राकेश जी</p>
<p>कहानी अच्छी लगी,पर माता पिता की सहमति होती</p>
<p>तो और अच्छा होता,बधाई</p>
<p>राकेश जी</p>
<p>कहानी अच्छी लगी,पर माता पिता की सहमति होती</p>
<p>तो और अच्छा होता,बधाई</p>