Comments - चक्रव्यूह (कहानी) - Open Books Online2024-03-28T13:02:08Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A214621&xn_auth=noइस देश में करोड़ों लोग इसी तरह…tag:openbooksonline.com,2013-07-23:5170231:Comment:4010782013-07-23T13:38:34.873Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttp://openbooksonline.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p>इस देश में करोड़ों लोग इसी तरह का जीवन व्यतीत कर रहे है, और इस चक्रव्यूह से निकल नहीं पा रहे है है | </p>
<p>ऐसे लोगो की स्त्याकहानी को उजागर करती सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया महिमा श्री जी </p>
<p>इस देश में करोड़ों लोग इसी तरह का जीवन व्यतीत कर रहे है, और इस चक्रव्यूह से निकल नहीं पा रहे है है | </p>
<p>ऐसे लोगो की स्त्याकहानी को उजागर करती सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई आदरणीया महिमा श्री जी </p> 'वो कभी आसमान की और देखता तो…tag:openbooksonline.com,2013-07-23:5170231:Comment:4013212013-07-23T08:36:33.397Zपीयूष द्विवेदी भारतhttp://openbooksonline.com/profile/2ixxsuhjha9i0
<p>'<span id="43_TRN_4b">वो कभी आसमान की और देखता तो कभी हाथ में पकडे उन ८० रुपयों को.</span> <span id="43_TRN_4b">और फिर सहसा ही उसके पाँव कलाली की दूकान की तरफ मुड पड़े. जहाँ उसको मिलेगी</span> <span id="43_TRN_4b">उसके हर दुःख की दवा</span><span id="43_TRN_4b">. वहां बैठ कर वो सूखी मछली के साथ पिएगा देसी ठर्रा और वादा करेगा अपने आप से कि कल फिर <span id="6_TRN_ht">काम</span> पर जाना है, पैसे जमा करने है और घर वालों की हरेक इच्छा पूरी करनी है. खैर, अभी तो हफ्ते दो हफ्ते का काम बाकी है कुछ न…</span></p>
<p>'<span id="43_TRN_4b">वो कभी आसमान की और देखता तो कभी हाथ में पकडे उन ८० रुपयों को.</span> <span id="43_TRN_4b">और फिर सहसा ही उसके पाँव कलाली की दूकान की तरफ मुड पड़े. जहाँ उसको मिलेगी</span> <span id="43_TRN_4b">उसके हर दुःख की दवा</span><span id="43_TRN_4b">. वहां बैठ कर वो सूखी मछली के साथ पिएगा देसी ठर्रा और वादा करेगा अपने आप से कि कल फिर <span id="6_TRN_ht">काम</span> पर जाना है, पैसे जमा करने है और घर वालों की हरेक इच्छा पूरी करनी है. खैर, अभी तो हफ्ते दो हफ्ते का काम बाकी है कुछ न कुछ तो कर ही लेगा वो.</span> '' इन पारिभाषिक लाइनों में कहानी का सम्पूर्ण सार-तत्व सन्निहित है और इन्ही में इस कहानी के शीर्षक की सार्थकता भी है ! बहुत सुन्दर भाव ! बधाई, महिमा जी !</p>
<p>हाँ ये भी कि वाक्य-गठन पर थोड़ी और मेहनत हो सकती थी !</p> परमआदरणीय योगराज सर .. आपका ह…tag:openbooksonline.com,2012-05-26:5170231:Comment:2295792012-05-26T18:04:14.790ZMAHIMA SHREEhttp://openbooksonline.com/profile/MAHIMASHREE
<p>परमआदरणीय योगराज सर .. आपका ह्रदय से धन्यवाद . सर क्या कहू आपने कह दिया आशीर्वाद मिल गया / सर शीर्षक कहानी के साथ न्याय इसलिय कर रहा है क्योंकि इसके न्यायधीश तो आप ही हैं :) </p>
<p>परमआदरणीय योगराज सर .. आपका ह्रदय से धन्यवाद . सर क्या कहू आपने कह दिया आशीर्वाद मिल गया / सर शीर्षक कहानी के साथ न्याय इसलिय कर रहा है क्योंकि इसके न्यायधीश तो आप ही हैं :) </p> आदरणीया रेखा जी , आदरणीय नगाइ…tag:openbooksonline.com,2012-05-26:5170231:Comment:2293802012-05-26T17:58:18.618ZMAHIMA SHREEhttp://openbooksonline.com/profile/MAHIMASHREE
<p>आदरणीया रेखा जी , आदरणीय नगाइच जी आप दोनों का ह्रदय से धन्यवाद /</p>
<p>आदरणीया रेखा जी , आदरणीय नगाइच जी आप दोनों का ह्रदय से धन्यवाद /</p> कहानी अपने शीर्षक से पूर्ण न्…tag:openbooksonline.com,2012-05-24:5170231:Comment:2289392012-05-24T11:20:04.239Zयोगराज प्रभाकरhttp://openbooksonline.com/profile/YograjPrabhakar
<p>कहानी अपने शीर्षक से पूर्ण न्याय कर रही है, कथ्य और शिल्प में थोड़ी और कसावट हो जाये तो बात ही बन जाये। मेरी बधाई स्वीकार करें महिमा जी।</p>
<p>कहानी अपने शीर्षक से पूर्ण न्याय कर रही है, कथ्य और शिल्प में थोड़ी और कसावट हो जाये तो बात ही बन जाये। मेरी बधाई स्वीकार करें महिमा जी।</p> Mahima ji ,bahut badhiya kaha…tag:openbooksonline.com,2012-05-20:5170231:Comment:2278272012-05-20T06:23:12.118ZRekha Joshihttp://openbooksonline.com/profile/RekhaJoshi
<p>Mahima ji ,bahut badhiya kahaani ,badhaai </p>
<p>Mahima ji ,bahut badhiya kahaani ,badhaai </p> Sunder lekhan, saralta, saras…tag:openbooksonline.com,2012-05-19:5170231:Comment:2273642012-05-19T15:53:38.248ZD.K.Nagaich 'Roshan'http://openbooksonline.com/profile/DKNagaich
<p>Sunder lekhan, saralta, sarasta, sahajta aur dhaarapravaah... bahut hi rochak bana gaya kahani ko... bahut bahut badhayee Mahima Shree sahiba...</p>
<p>Sunder lekhan, saralta, sarasta, sahajta aur dhaarapravaah... bahut hi rochak bana gaya kahani ko... bahut bahut badhayee Mahima Shree sahiba...</p> अजय जी , नमस्कार .. आपकी आभार…tag:openbooksonline.com,2012-05-19:5170231:Comment:2274422012-05-19T15:45:47.170ZMAHIMA SHREEhttp://openbooksonline.com/profile/MAHIMASHREE
<p>अजय जी , नमस्कार .. आपकी आभारी हूँ</p>
<p>अजय जी , नमस्कार .. आपकी आभारी हूँ</p> आदरणीय योगी जी ..नमस्कार आपके…tag:openbooksonline.com,2012-05-19:5170231:Comment:2273612012-05-19T15:44:52.134ZMAHIMA SHREEhttp://openbooksonline.com/profile/MAHIMASHREE
<p>आदरणीय योगी जी ..नमस्कार आपके विस्तृत अनमोल प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ / उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद</p>
<p>आदरणीय योगी जी ..नमस्कार आपके विस्तृत अनमोल प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ / उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद</p> वो कभी आसमान की और देखता तो क…tag:openbooksonline.com,2012-05-19:5170231:Comment:2273072012-05-19T10:48:58.541ZYogi Saraswathttp://openbooksonline.com/profile/YogendraKumarSaraswat
<p><span id="43_TRN_4b">वो कभी आसमान की और देखता तो कभी हाथ में पकडे उन ८० रुपयों को.</span> <span id="43_TRN_4b">और फिर सहसा ही उसके पाँव कलाली की दूकान की तरफ मुड पड़े. जहाँ उसको मिलेगी</span> <span id="43_TRN_4b">उसके हर दुःख की दवा</span><span id="43_TRN_4b">. वहां बैठ कर वो सूखी मछली के साथ पिएगा देसी ठर्रा और वादा करेगा अपने आप से कि कल फिर <span id="6_TRN_ht">काम</span> पर जाना है, पैसे जमा करने है और घर वालों की हरेक इच्छा पूरी करनी है. खैर, अभी तो हफ्ते दो हफ्ते का काम बाकी है कुछ न कुछ…</span></p>
<p><span id="43_TRN_4b">वो कभी आसमान की और देखता तो कभी हाथ में पकडे उन ८० रुपयों को.</span> <span id="43_TRN_4b">और फिर सहसा ही उसके पाँव कलाली की दूकान की तरफ मुड पड़े. जहाँ उसको मिलेगी</span> <span id="43_TRN_4b">उसके हर दुःख की दवा</span><span id="43_TRN_4b">. वहां बैठ कर वो सूखी मछली के साथ पिएगा देसी ठर्रा और वादा करेगा अपने आप से कि कल फिर <span id="6_TRN_ht">काम</span> पर जाना है, पैसे जमा करने है और घर वालों की हरेक इच्छा पूरी करनी है. खैर, अभी तो हफ्ते दो हफ्ते का काम बाकी है कुछ न कुछ तो कर ही लेगा वो.</span></p>
<p><span>ये उसकी मजबूरी है या उसका शौक ? मैं नहीं जानता लेकिन बार का खुद से किया वादा अगर टूटने लगता है तो अपना ही वजूद ख़त्म हो जाता है ! दूसरे से किया वादा टूटे तो दर्द होता है किन्तु खुद से किया हुआ वादा टूटता है तो बहुत कुछ ख़त्म सा हो जाता है ! बढ़िया कहानी , महिमा जी !</span></p>