Comments - लघु कथा :- गिरगिट - Open Books Online2024-03-28T09:22:18Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A219009&xn_auth=noप्रिय कुमार जी , सस्नेह.
सर…tag:openbooksonline.com,2012-05-05:5170231:Comment:2221582012-05-05T07:11:22.010ZPRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAhttp://openbooksonline.com/profile/PRADEEPKUMARSINGHKUSHWAHA
<p><span>प्रिय कुमार जी , सस्नेह.</span></p>
<div>सराहना ,भावना हेतु आभार </div>
<div>अच्छी अच्छी रचना करो तैयार </div>
<div>मुख्या प्रष्ट पर जाएँ </div>
<div>मनवांछित ग्रुप का बटन दबाएँ</div>
<div>खुल जाये जब वो पन्ना </div>
<div>ऊपर एइड करना न भूलना </div>
<div>आये फिर भी कोई दिक्कत </div>
<div>पूंछने में संकोच न करना. </div>
<div> </div>
<p><span>प्रिय कुमार जी , सस्नेह.</span></p>
<div>सराहना ,भावना हेतु आभार </div>
<div>अच्छी अच्छी रचना करो तैयार </div>
<div>मुख्या प्रष्ट पर जाएँ </div>
<div>मनवांछित ग्रुप का बटन दबाएँ</div>
<div>खुल जाये जब वो पन्ना </div>
<div>ऊपर एइड करना न भूलना </div>
<div>आये फिर भी कोई दिक्कत </div>
<div>पूंछने में संकोच न करना. </div>
<div> </div> सादर प्रणाम कुशवाहा सर
बिलकुल…tag:openbooksonline.com,2012-05-05:5170231:Comment:2221302012-05-05T02:52:57.248Zकुमार गौरव अजीतेन्दुhttp://openbooksonline.com/profile/KumarGauravAjeetendu
<p><span>सादर प्रणाम कुशवाहा </span><span>सर</span></p>
<div>बिलकुल सही कटाक्ष किया आपने इन तथाकथित प्रतिनिधियों पर, बहुत-बहुत बधाई.</div>
<div>सर मैं भी बाल साहित्य ग्रुप ज्वाइन करना चाहता हूँ, क्या करूँ?</div>
<p><span>सादर प्रणाम कुशवाहा </span><span>सर</span></p>
<div>बिलकुल सही कटाक्ष किया आपने इन तथाकथित प्रतिनिधियों पर, बहुत-बहुत बधाई.</div>
<div>सर मैं भी बाल साहित्य ग्रुप ज्वाइन करना चाहता हूँ, क्या करूँ?</div> आदरणीय अशोक जी, सादर अभिवादन …tag:openbooksonline.com,2012-05-03:5170231:Comment:2216222012-05-03T06:51:03.275ZPRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAhttp://openbooksonline.com/profile/PRADEEPKUMARSINGHKUSHWAHA
<p><span>आदरणीय अशोक जी, सादर अभिवादन </span></p>
<div>आपका स्नेह और मार्ग दर्शन बना रहे. धन्यवाद.</div>
<p><span>आदरणीय अशोक जी, सादर अभिवादन </span></p>
<div>आपका स्नेह और मार्ग दर्शन बना रहे. धन्यवाद.</div> आदरणीय प्रदीप जी …tag:openbooksonline.com,2012-05-02:5170231:Comment:2215122012-05-02T17:24:33.322ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooksonline.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय प्रदीप जी <br/> सादर, हकीकत के बहुत करीब और शिक्षाप्रद भी है ये लघुकथा. बधाई.</p>
<p>आदरणीय प्रदीप जी <br/> सादर, हकीकत के बहुत करीब और शिक्षाप्रद भी है ये लघुकथा. बधाई.</p> आदरणीय सौरभ जी (गुरुदेव जी…tag:openbooksonline.com,2012-05-02:5170231:Comment:2214192012-05-02T10:17:04.142ZPRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAhttp://openbooksonline.com/profile/PRADEEPKUMARSINGHKUSHWAHA
<p><span>आदरणीय सौरभ जी (गुरुदेव जी) , सादर अभिवादन. </span></p>
<div>पुरवहु मोर मनोरथ स्वामी. धन्यवाद. </div>
<div> </div>
<p><span>आदरणीय सौरभ जी (गुरुदेव जी) , सादर अभिवादन. </span></p>
<div>पुरवहु मोर मनोरथ स्वामी. धन्यवाद. </div>
<div> </div> जाके पाँव न फटे बिवाई, सो क्य…tag:openbooksonline.com,2012-05-02:5170231:Comment:2211942012-05-02T09:50:22.438ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>जाके पाँव न फटे बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई.. . राधे बाबू या इन जैसे लोग इतने मायोपिक होते हैं कि उन्हें बस कुछ दूर तक की नहीं सूझता, केवल आसन्न लाभ और घिनौनी स्वार्थसाधना के. बहुत ही सही तस्वीर निकाली है आपने, आदरणीय प्रदीपजी. </p>
<p>बचपन में <strong><em>अण्टन चेखोव</em> </strong> की एक नाटिका ’गिरगिट’ जो कि इसी तरह की दोगली नीतियों पर एक सशक्त नाटिका है, के गली-मंचन (Street skit) के क्रम में हम गोहराया करते थे, <em>झटपट रंग बदल लो भाई, झटपट ढंग बदल लो</em>.. </p>
<p>आपकी इस लघुकथा ने…</p>
<p>जाके पाँव न फटे बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई.. . राधे बाबू या इन जैसे लोग इतने मायोपिक होते हैं कि उन्हें बस कुछ दूर तक की नहीं सूझता, केवल आसन्न लाभ और घिनौनी स्वार्थसाधना के. बहुत ही सही तस्वीर निकाली है आपने, आदरणीय प्रदीपजी. </p>
<p>बचपन में <strong><em>अण्टन चेखोव</em> </strong> की एक नाटिका ’गिरगिट’ जो कि इसी तरह की दोगली नीतियों पर एक सशक्त नाटिका है, के गली-मंचन (Street skit) के क्रम में हम गोहराया करते थे, <em>झटपट रंग बदल लो भाई, झटपट ढंग बदल लो</em>.. </p>
<p>आपकी इस लघुकथा ने अनायास उन दिनों की याद ताज़ा करा दी. सादर धन्यवाद.</p>
<p></p> स्नेही महिमा जी, सादर.
दुनिया…tag:openbooksonline.com,2012-05-02:5170231:Comment:2213402012-05-02T09:08:59.273ZPRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAhttp://openbooksonline.com/profile/PRADEEPKUMARSINGHKUSHWAHA
<p><span>स्नेही महिमा जी, सादर.</span></p>
<div>दुनिया का यही दस्तूर है. बिरले मिलेंगे जो इनसे अलग हों. </div>
<div>धन्यवाद. </div>
<p><span>स्नेही महिमा जी, सादर.</span></p>
<div>दुनिया का यही दस्तूर है. बिरले मिलेंगे जो इनसे अलग हों. </div>
<div>धन्यवाद. </div> प्रिय मृदु जी, सस्नेह.
आपकी…tag:openbooksonline.com,2012-05-02:5170231:Comment:2212542012-05-02T09:06:45.309ZPRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAhttp://openbooksonline.com/profile/PRADEEPKUMARSINGHKUSHWAHA
<p><span>प्रिय मृदु जी, सस्नेह. </span></p>
<div>आपकी हार्दिक बधाई दिल से स्वीकार की. आप <span id="6_TRN_2t">bhi अपना नाम <span id="6_TRN_2w">roshan करें. शुभ <span id="6_TRN_2z">kamna. </span></span></span></div>
<p><span>प्रिय मृदु जी, सस्नेह. </span></p>
<div>आपकी हार्दिक बधाई दिल से स्वीकार की. आप <span id="6_TRN_2t">bhi अपना नाम <span id="6_TRN_2w">roshan करें. शुभ <span id="6_TRN_2z">kamna. </span></span></span></div> आदरणीय बागी जी , सादर
आपके…tag:openbooksonline.com,2012-05-02:5170231:Comment:2212532012-05-02T09:04:40.611ZPRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAhttp://openbooksonline.com/profile/PRADEEPKUMARSINGHKUSHWAHA
<p><span>आदरणीय बागी जी , सादर </span></p>
<div>आपके द्वारा की गयी प्रशंशा सर माथे पर. </div>
<div>क्रष्ण और सुदामा की कथा याद आ गयी. </div>
<div>आप अंतर्यामी हैं प्रभु. बहुत बहुत आभार आपका. </div>
<p><span>आदरणीय बागी जी , सादर </span></p>
<div>आपके द्वारा की गयी प्रशंशा सर माथे पर. </div>
<div>क्रष्ण और सुदामा की कथा याद आ गयी. </div>
<div>आप अंतर्यामी हैं प्रभु. बहुत बहुत आभार आपका. </div> आदरणीय प्रदीप सर , सादर प्रणा…tag:openbooksonline.com,2012-05-01:5170231:Comment:2211492012-05-01T17:00:24.116ZMAHIMA SHREEhttp://openbooksonline.com/profile/MAHIMASHREE
<p>आदरणीय प्रदीप सर , सादर प्रणाम ,</p>
<p>आपकी कथा गिरगिट के लिए बहुत -२ बधाई ...सच इंसान अपने लिए तुरंत नियम तोड़ देता है और बदल जाता है ..</p>
<p>बहुत अच्छी प्रस्तुति</p>
<p>आदरणीय प्रदीप सर , सादर प्रणाम ,</p>
<p>आपकी कथा गिरगिट के लिए बहुत -२ बधाई ...सच इंसान अपने लिए तुरंत नियम तोड़ देता है और बदल जाता है ..</p>
<p>बहुत अच्छी प्रस्तुति</p>