Comments - मायाजाल - Open Books Online2024-03-28T08:09:52Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A219399&xn_auth=noreally nice...........tag:openbooksonline.com,2012-05-26:5170231:Comment:2293032012-05-26T12:37:39.646ZAjay Singhhttp://openbooksonline.com/profile/ajaysingh
<p>really nice...........</p>
<p>really nice...........</p> स्नेही महिमा जी, मन की उहापोह…tag:openbooksonline.com,2012-05-08:5170231:Comment:2234352012-05-08T14:18:57.924ZSarita Sinhahttp://openbooksonline.com/profile/SaritaSinha
<p><span>स्नेही महिमा जी, मन की उहापोह व अंतर्द्वंद को दर्शाती सफल रचना.....बधाई...मुझे आने में देर हो गयी..sorry</span></p>
<p><span>स्नेही महिमा जी, मन की उहापोह व अंतर्द्वंद को दर्शाती सफल रचना.....बधाई...मुझे आने में देर हो गयी..sorry</span></p> मैंने कही भी नहींखुले रखे हैं…tag:openbooksonline.com,2012-05-07:5170231:Comment:2228432012-05-07T08:22:27.495ZSURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMARhttp://openbooksonline.com/profile/SURENDRAKUMARSHUKLABHRAMAR
<p><span>मैंने कही भी नहीं</span><br/><span>खुले रखे हैं दरवाजे</span><br/><span>डाल रखे हैं दरवाजो पे</span><br/><span>बड़े बड़े ताले</span><br/><span>खो बठी हूँ उनकी चाभियाँ</span><br/><span>नहीं ढूंढने जाती हूँ उन्हें</span><br/><span>सोच रखे हैं कई बहाने</span><br/><span>महिमा जी सुन्दर और गहन भाव लिए रचना ..काश ये ताले टूट जाएँ अँधेरा न छाये सब कुछ सुहाना हो रौशनी बिखरे मानव खुद पर नियंत्रण रखे तो आनंद और आये</span><br/><span>जय श्री राधे</span><br/><span>भ्रमर ५</span></p>
<p><span>मैंने कही भी नहीं</span><br/><span>खुले रखे हैं दरवाजे</span><br/><span>डाल रखे हैं दरवाजो पे</span><br/><span>बड़े बड़े ताले</span><br/><span>खो बठी हूँ उनकी चाभियाँ</span><br/><span>नहीं ढूंढने जाती हूँ उन्हें</span><br/><span>सोच रखे हैं कई बहाने</span><br/><span>महिमा जी सुन्दर और गहन भाव लिए रचना ..काश ये ताले टूट जाएँ अँधेरा न छाये सब कुछ सुहाना हो रौशनी बिखरे मानव खुद पर नियंत्रण रखे तो आनंद और आये</span><br/><span>जय श्री राधे</span><br/><span>भ्रमर ५</span></p> आदरणीय सौरभ सर ,
सादर नमस्कार…tag:openbooksonline.com,2012-05-07:5170231:Comment:2226742012-05-07T07:16:30.220ZMAHIMA SHREEhttp://openbooksonline.com/profile/MAHIMASHREE
आदरणीय सौरभ सर ,<br />
सादर नमस्कार , आपने समय दिया , पढ़ा , आपके सकरात्मक प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ ,<br />
बहुत-२ धन्यवाद
आदरणीय सौरभ सर ,<br />
सादर नमस्कार , आपने समय दिया , पढ़ा , आपके सकरात्मक प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ ,<br />
बहुत-२ धन्यवाद आत्ममुग्धता की विवेचना करती ए…tag:openbooksonline.com,2012-05-05:5170231:Comment:2222632012-05-05T15:32:38.389ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आत्ममुग्धता की विवेचना करती एक सशक्त रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई, महिमा जी.</p>
<p></p>
<p>आत्ममुग्धता की विवेचना करती एक सशक्त रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई, महिमा जी.</p>
<p></p> वाहिद जी नमस्कार ,
आपके बहुमू…tag:openbooksonline.com,2012-05-05:5170231:Comment:2221612012-05-05T09:18:29.845ZMAHIMA SHREEhttp://openbooksonline.com/profile/MAHIMASHREE
वाहिद जी नमस्कार ,<br />
आपके बहुमूल्य प्रतिक्रया के लिए तहे दिल से आभारी हूँ . बहुत -२ धन्यवाद आपका
वाहिद जी नमस्कार ,<br />
आपके बहुमूल्य प्रतिक्रया के लिए तहे दिल से आभारी हूँ . बहुत -२ धन्यवाद आपका आपका मायाजाल है तो यथार्थपरक…tag:openbooksonline.com,2012-05-05:5170231:Comment:2219742012-05-05T07:07:42.870Zसंदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'http://openbooksonline.com/profile/SandeipDwivediWahidKashiwasi
<p>आपका मायाजाल है तो यथार्थपरक क्यूंकि हम सभी अपने अंदर कुछ ऐसे नियम बना लिए हैं ऐसी धारणाएं पाल ली हैं कि उन्हीं में बंधे रह जाते हैं| फिर भी इसमें रहस्यवाद की पूरी झलक मिल रही है| उत्कृष्ट काव्य की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें महिमा जी!</p>
<p>आपका मायाजाल है तो यथार्थपरक क्यूंकि हम सभी अपने अंदर कुछ ऐसे नियम बना लिए हैं ऐसी धारणाएं पाल ली हैं कि उन्हीं में बंधे रह जाते हैं| फिर भी इसमें रहस्यवाद की पूरी झलक मिल रही है| उत्कृष्ट काव्य की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें महिमा जी!</p> आदरणीय अविनाश जी , कविता को प…tag:openbooksonline.com,2012-05-05:5170231:Comment:2221542012-05-05T06:52:01.962ZMAHIMA SHREEhttp://openbooksonline.com/profile/MAHIMASHREE
आदरणीय अविनाश जी , कविता को पसंद करने के लिए आभारी हूँ<br />
बहुत-२ धन्यवाद आपका /
आदरणीय अविनाश जी , कविता को पसंद करने के लिए आभारी हूँ<br />
बहुत-२ धन्यवाद आपका / मैंने कही भी नहीं
खुले रखे ह…tag:openbooksonline.com,2012-05-04:5170231:Comment:2217792012-05-04T05:05:11.532ZAVINASH S BAGDEhttp://openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p><span class="font-size-4">मैंने कही भी नहीं</span></p>
<p><span class="font-size-4">खुले रखे हैं दरवाजे</span></p>
<p><span class="font-size-4">डाल रखे हैं दरवाजो पे</span></p>
<p><span class="font-size-4">बड़े बड़े ताले</span></p>
<p><span class="font-size-4">खो <strong>बैठी</strong> हूँ उनकी चाभियाँ</span></p>
<p><span class="font-size-4">नहीं <strong>ढूंढने</strong> जाती हूँ उन्हें</span></p>
<p><span class="font-size-4"><br></br></span></p>
<p><span class="font-size-4">sach…</span></p>
<p><span class="font-size-4">मैंने कही भी नहीं</span></p>
<p><span class="font-size-4">खुले रखे हैं दरवाजे</span></p>
<p><span class="font-size-4">डाल रखे हैं दरवाजो पे</span></p>
<p><span class="font-size-4">बड़े बड़े ताले</span></p>
<p><span class="font-size-4">खो <strong>बैठी</strong> हूँ उनकी चाभियाँ</span></p>
<p><span class="font-size-4">नहीं <strong>ढूंढने</strong> जाती हूँ उन्हें</span></p>
<p><span class="font-size-4"><br/></span></p>
<p><span class="font-size-4">sach me..</span></p>
<p><span class="font-size-4">सच है या</span></p>
<p><span class="font-size-4">है कोई मायाजाल ...wah! Maheema ji.</span></p> आदरणीय लक्ष्मण सर , नमस्कार
स…tag:openbooksonline.com,2012-05-03:5170231:Comment:2217402012-05-03T09:37:53.428ZMAHIMA SHREEhttp://openbooksonline.com/profile/MAHIMASHREE
आदरणीय लक्ष्मण सर , नमस्कार<br />
सहमत हूँ आपसे अगर हम अपने संकुचित दायरे से बाहर निकल आने में सफल हो जाए तो देव तुल्य हो जायेगे .<br />
आपका हार्दिक धन्यवाद .. स्नेह बनाये रखे
आदरणीय लक्ष्मण सर , नमस्कार<br />
सहमत हूँ आपसे अगर हम अपने संकुचित दायरे से बाहर निकल आने में सफल हो जाए तो देव तुल्य हो जायेगे .<br />
आपका हार्दिक धन्यवाद .. स्नेह बनाये रखे