Comments - गज़ल:खुदाई जिनको - Open Books Online2024-03-29T13:32:24Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A22885&xn_auth=noबिना लंगर सफर को निकली कश्ती…tag:openbooksonline.com,2010-10-01:5170231:Comment:239102010-10-01T11:06:41.910ZPREETAM TIWARY(PREET)http://openbooksonline.com/profile/preetamkumartiwary
बिना लंगर सफर को निकली कश्ती ,<br />
भंवर में आज खुद को पा रही है.<br />
<br />
अरुण जी नमस्कार...अच्छी रचना है....खूबसूरती से साथ कही गयी एक एक शेर मुझे पसंद आया...वाकई ज़ोरदार रचना है.....
बिना लंगर सफर को निकली कश्ती ,<br />
भंवर में आज खुद को पा रही है.<br />
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अरुण जी नमस्कार...अच्छी रचना है....खूबसूरती से साथ कही गयी एक एक शेर मुझे पसंद आया...वाकई ज़ोरदार रचना है..... Ishq mohabbat se nikal kar aa…tag:openbooksonline.com,2010-09-27:5170231:Comment:232922010-09-27T23:19:46.292Zआशीष यादवhttp://openbooksonline.com/profile/Ashishyadav
Ishq mohabbat se nikal kar aaj ki duniya par yah khubsurat ghazal h. Dhanyawad swikar kare.
Ishq mohabbat se nikal kar aaj ki duniya par yah khubsurat ghazal h. Dhanyawad swikar kare. पूजा जी और बागी जी को धन्यवाद…tag:openbooksonline.com,2010-09-27:5170231:Comment:232342010-09-27T09:33:27.234ZAbhinav Arunhttp://openbooksonline.com/profile/ArunKumarPandeyAbhinav
पूजा जी और बागी जी को धन्यवाद ! अपने पढ़ा और टिप्पणी भी की .इससे यकीनन हौसला बढ़ता है .
पूजा जी और बागी जी को धन्यवाद ! अपने पढ़ा और टिप्पणी भी की .इससे यकीनन हौसला बढ़ता है . अरुण जी ,
नमस्कार बहुत बढिया…tag:openbooksonline.com,2010-09-27:5170231:Comment:232142010-09-27T06:14:36.214ZPooja Singhhttp://openbooksonline.com/profile/poojasingh
अरुण जी ,<br />
नमस्कार बहुत बढिया गजल है , ये पंक्ति ज्यादा अच्छी लगी |{हाई-ब्रिड बीज सी पश्चिम की संस्कृति ,<br />
ज़हर भी साथ अपने ला रही है .}
अरुण जी ,<br />
नमस्कार बहुत बढिया गजल है , ये पंक्ति ज्यादा अच्छी लगी |{हाई-ब्रिड बीज सी पश्चिम की संस्कृति ,<br />
ज़हर भी साथ अपने ला रही है .} 'जिनके हाथों में चाक -बत्ती न…tag:openbooksonline.com,2010-09-27:5170231:Comment:231652010-09-27T01:03:34.165Zchetan prakashhttp://openbooksonline.com/profile/chetanprakash
'जिनके हाथों में चाक -बत्ती न थी, उनके हाथों में उनके हाथों में रौशनी आ गई<br />
जिनके हाथों में होंसला न था , उनके हाथों में लाल -बत्ती आ गई 'abhinav'
'जिनके हाथों में चाक -बत्ती न थी, उनके हाथों में उनके हाथों में रौशनी आ गई<br />
जिनके हाथों में होंसला न था , उनके हाथों में लाल -बत्ती आ गई 'abhinav' बिना लंगर सफर को निकली कश्ती…tag:openbooksonline.com,2010-09-26:5170231:Comment:230532010-09-26T08:09:08.053ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooksonline.com/profile/GaneshJee
बिना लंगर सफर को निकली कश्ती ,<br />
भंवर में आज खुद को पा रही है.<br />
<br />
बहुत ही सुंदर ख्यालात के साथ कही गई यह शेयर मुझे काफी प्रभावित किया, पूरी ग़ज़ल खूबसूरती से कही गई है , एक बार पुनः दाद और बधाई स्वीकार करे |
बिना लंगर सफर को निकली कश्ती ,<br />
भंवर में आज खुद को पा रही है.<br />
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बहुत ही सुंदर ख्यालात के साथ कही गई यह शेयर मुझे काफी प्रभावित किया, पूरी ग़ज़ल खूबसूरती से कही गई है , एक बार पुनः दाद और बधाई स्वीकार करे |