Comments - उंगलियाँ हम पे यूँ न उठाया करो - Open Books Online2024-03-29T07:41:15Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A266579&xn_auth=noपूर्व में की गयी प्रतिक्रिया…tag:openbooksonline.com,2012-08-31:5170231:Comment:2668242012-08-31T04:08:56.980ZSANDEEP KUMAR PATELhttp://openbooksonline.com/profile/SANDEEPKUMARPATEL
<p>पूर्व में की गयी प्रतिक्रिया पर ध्यान दीजिये आदरणीय सचिन जी <br/> इस खूबसूरत से प्रयास पर बधाई</p>
<p>पूर्व में की गयी प्रतिक्रिया पर ध्यान दीजिये आदरणीय सचिन जी <br/> इस खूबसूरत से प्रयास पर बधाई</p> आदरणीय सचिन!
//चांद का टुकड़ा…tag:openbooksonline.com,2012-08-30:5170231:Comment:2666772012-08-30T17:23:44.515Zविन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठीhttp://openbooksonline.com/profile/Vindhyeshwariprasadtripathi
आदरणीय सचिन!<br />
//चांद का टुकड़ा कहूं या कहूं मेनका तुम्हें।<br />
तीर अदाओं के यूं ही हरपल चलाया करो॥//<br />
ये मेनका तो मनका चूल ही हिला देगी।अच्छी गजल के लिये बधाई।<br />
भाव का उन्मुक्त प्रवाह बाधित है,दरिया गजल(नुमा) का किनारा और प्रवाह वेग असंतुलित है,कृपया बांध का निर्माण करें।
आदरणीय सचिन!<br />
//चांद का टुकड़ा कहूं या कहूं मेनका तुम्हें।<br />
तीर अदाओं के यूं ही हरपल चलाया करो॥//<br />
ये मेनका तो मनका चूल ही हिला देगी।अच्छी गजल के लिये बधाई।<br />
भाव का उन्मुक्त प्रवाह बाधित है,दरिया गजल(नुमा) का किनारा और प्रवाह वेग असंतुलित है,कृपया बांध का निर्माण करें।