Comments - गीत मे तू मीत मधुरिम नेह के आखर मिला - Open Books Online2024-03-29T12:18:53Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A270597&xn_auth=noलाजवाब सीमा जी.... बहुत बहुत…tag:openbooksonline.com,2012-09-25:5170231:Comment:2749732012-09-25T02:14:40.325Zपीयूष द्विवेदी भारतhttp://openbooksonline.com/profile/2ixxsuhjha9i0
<p>लाजवाब सीमा जी.... बहुत बहुत बधाई!</p>
<p>लाजवाब सीमा जी.... बहुत बहुत बधाई!</p> वाह दीदी वाह, आपकी ये रचना हम…tag:openbooksonline.com,2012-09-13:5170231:Comment:2713692012-09-13T09:21:15.147ZVISHAAL CHARCHCHIThttp://openbooksonline.com/profile/VISHAALCHARCHCHIT
<p><span>वाह दीदी वाह, आपकी ये रचना हम जैसे नवोदित कवियों के लिए प्रेरणास्रोत है !!!!!</span></p>
<p><span>वाह दीदी वाह, आपकी ये रचना हम जैसे नवोदित कवियों के लिए प्रेरणास्रोत है !!!!!</span></p> वाह वाह वाह .................…tag:openbooksonline.com,2012-09-13:5170231:Comment:2713302012-09-13T05:11:24.043ZSANDEEP KUMAR PATELhttp://openbooksonline.com/profile/SANDEEPKUMARPATEL
<p>वाह वाह वाह ..........................<br/>आदरणीय सीमा जी सादर आभार <br/>आपकी इस ग़ज़ल के माध्यम से हिंदी आसमान में अपना परचम लहरा रही है <br/>बहुत सुन्दर कहन <br/>इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल फरमाइए</p>
<p>वाह वाह वाह ..........................<br/>आदरणीय सीमा जी सादर आभार <br/>आपकी इस ग़ज़ल के माध्यम से हिंदी आसमान में अपना परचम लहरा रही है <br/>बहुत सुन्दर कहन <br/>इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद क़ुबूल फरमाइए</p> प्रिय विन्धेश्वरी भाई आपकी औ…tag:openbooksonline.com,2012-09-12:5170231:Comment:2712192012-09-12T14:57:48.317Zseema agrawalhttp://openbooksonline.com/profile/seemaagrawal8
<p>प्रिय विन्धेश्वरी भाई आपकी और सौरभ जी की क्रिया -प्रतिक्रिया ने आनंदित कर दिया गज़ल की मन को खुश कर देने वाली सराहना के लिए आपकी आभारी हूँ <br/>सौरभ जी आपका पुनः आभार </p>
<p>प्रिय विन्धेश्वरी भाई आपकी और सौरभ जी की क्रिया -प्रतिक्रिया ने आनंदित कर दिया गज़ल की मन को खुश कर देने वाली सराहना के लिए आपकी आभारी हूँ <br/>सौरभ जी आपका पुनः आभार </p> बहुत बहुत शुक्रिया रेखा जी ..…tag:openbooksonline.com,2012-09-12:5170231:Comment:2712152012-09-12T14:52:58.276Zseema agrawalhttp://openbooksonline.com/profile/seemaagrawal8
<p>बहुत बहुत शुक्रिया रेखा जी ....आपने रचना को स्नेह दिया बहुत खुशी हुयी </p>
<p>बहुत बहुत शुक्रिया रेखा जी ....आपने रचना को स्नेह दिया बहुत खुशी हुयी </p> आदरणीय लक्षमन जी आपकी उत्साही…tag:openbooksonline.com,2012-09-12:5170231:Comment:2710662012-09-12T14:51:45.913Zseema agrawalhttp://openbooksonline.com/profile/seemaagrawal8
<p>आदरणीय लक्षमन जी आपकी उत्साही प्रतिक्रया हमेशा ही हौसला बढाती है ...सराहना हेतु जो पंक्तियाँ आपने प्रस्तुत की हैं उसके लिए दिल से आभारी हूँ आपकी </p>
<p>आदरणीय लक्षमन जी आपकी उत्साही प्रतिक्रया हमेशा ही हौसला बढाती है ...सराहना हेतु जो पंक्तियाँ आपने प्रस्तुत की हैं उसके लिए दिल से आभारी हूँ आपकी </p> हा हा हा.. लहरें ही गिन रहा थ…tag:openbooksonline.com,2012-09-12:5170231:Comment:2711292012-09-12T12:54:09.947ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>हा हा हा.. लहरें ही गिन रहा था, भाई. जब गिनती समाप्त हो गयी तो डूबने-उतराने लगा.. .</p>
<p>हा हा हा हा...</p>
<p>हा हा हा.. लहरें ही गिन रहा था, भाई. जब गिनती समाप्त हो गयी तो डूबने-उतराने लगा.. .</p>
<p>हा हा हा हा...</p> आदरणीय गुरुदेव श्री सौरभ जी प…tag:openbooksonline.com,2012-09-12:5170231:Comment:2711272012-09-12T12:48:50.959Zविन्ध्येश्वरी प्रसाद त्रिपाठीhttp://openbooksonline.com/profile/Vindhyeshwariprasadtripathi
<p>आदरणीय गुरुदेव श्री सौरभ जी प्रणाम! समर्थन के लिए हार्दिक आभार।आप भी डूब रहे हैं?मैं तो समझ रहा था कि कविता-सागर की लहरों को गिन रहें हैं। (अन्यथा नहीं लीजिएगा क्योंकि आप किसी भी रचना पर कड़ी नजर रखते हैं।) चलिए हम गुरु-शिष्य साथ-साथ डूबते उतराते हैं।<br/> सादर।</p>
<p>आदरणीय गुरुदेव श्री सौरभ जी प्रणाम! समर्थन के लिए हार्दिक आभार।आप भी डूब रहे हैं?मैं तो समझ रहा था कि कविता-सागर की लहरों को गिन रहें हैं। (अन्यथा नहीं लीजिएगा क्योंकि आप किसी भी रचना पर कड़ी नजर रखते हैं।) चलिए हम गुरु-शिष्य साथ-साथ डूबते उतराते हैं।<br/> सादर।</p> आपने मेरे कहे को मान दिया है…tag:openbooksonline.com,2012-09-12:5170231:Comment:2709042012-09-12T12:39:52.636ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आपने मेरे कहे को मान दिया है सीमाजी. अब इस रचना/ हिन्दी ग़ज़ल को पुनर्संपादित कर लें. अत्यंत उच्च स्तर की अभिव्यक्ति हुई है. </p>
<p>सादर</p>
<p>आपने मेरे कहे को मान दिया है सीमाजी. अब इस रचना/ हिन्दी ग़ज़ल को पुनर्संपादित कर लें. अत्यंत उच्च स्तर की अभिव्यक्ति हुई है. </p>
<p>सादर</p> आपने एकदम उचित कहा है, विंध्य…tag:openbooksonline.com,2012-09-12:5170231:Comment:2709032012-09-12T12:38:15.884ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आपने एकदम उचित कहा है, विंध्येश्वरी भाईजी. इस रचना/ गज़ल/ द्विपदियों/ भाव-पंक्तियों में मैं स्वयं ही डूब-उतरा रहा हूँ. अभिभूत हूँ.</p>
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<p>आपने एकदम उचित कहा है, विंध्येश्वरी भाईजी. इस रचना/ गज़ल/ द्विपदियों/ भाव-पंक्तियों में मैं स्वयं ही डूब-उतरा रहा हूँ. अभिभूत हूँ.</p>
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