Comments - यूं ही खामोश रहो ... - Open Books Online2024-03-28T12:32:27Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A287193&xn_auth=noगुल सारिका जी, अच्छी रचना है…tag:openbooksonline.com,2012-12-16:5170231:Comment:3007892012-12-16T15:16:14.661ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooksonline.com/profile/GaneshJee
<p>गुल सारिका जी, अच्छी रचना है , कृपया बधाई स्वीकार कर लेंगी |</p>
<p>गुल सारिका जी, अच्छी रचना है , कृपया बधाई स्वीकार कर लेंगी |</p> चन्द लम्हों के ये सिक्के जो थ…tag:openbooksonline.com,2012-11-08:5170231:Comment:2885412012-11-08T10:20:03.870Zrajesh kumarihttp://openbooksonline.com/profile/rajeshkumari
<p><span>चन्द लम्हों के ये सिक्के </span><br/><span>जो थी वस्ल की रात </span><br/><span>मेरी मुट्ठी में खनक उनकी </span><br/><span>यूं ही कैद रहे </span><br/><span>जब कभी रूह जिस्म के तिलिस्म से बाहर निकले </span><br/><span>और कहीं दूर से रेत को छूता हुआ </span><br/><span>सावन निकले </span><br/><span>मेरे हमदम मेरे हमराज </span><br/><span>यूं ही खामोश रहो .-------<span>बहुत सुन्दर पंक्तियाँ सुन्दर जज्बातों की लडियां पिरोती हुई रचना बहुत अच्छी लगी बधाई गुल सारिका जी </span></span></p>
<p><span>चन्द लम्हों के ये सिक्के </span><br/><span>जो थी वस्ल की रात </span><br/><span>मेरी मुट्ठी में खनक उनकी </span><br/><span>यूं ही कैद रहे </span><br/><span>जब कभी रूह जिस्म के तिलिस्म से बाहर निकले </span><br/><span>और कहीं दूर से रेत को छूता हुआ </span><br/><span>सावन निकले </span><br/><span>मेरे हमदम मेरे हमराज </span><br/><span>यूं ही खामोश रहो .-------<span>बहुत सुन्दर पंक्तियाँ सुन्दर जज्बातों की लडियां पिरोती हुई रचना बहुत अच्छी लगी बधाई गुल सारिका जी </span></span></p> भावों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्…tag:openbooksonline.com,2012-11-08:5170231:Comment:2885252012-11-08T06:21:03.276ZArun Srihttp://openbooksonline.com/profile/ArunSrivastava
<p>भावों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ! कुछ पंक्तियाँ बहुत अच्छी बन पड़ी हैं ! बिम्ब और प्रतीक प्रभावित कर रहे हैं ! बधाई और शुभकामनाएँ !</p>
<p>भावों की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ! कुछ पंक्तियाँ बहुत अच्छी बन पड़ी हैं ! बिम्ब और प्रतीक प्रभावित कर रहे हैं ! बधाई और शुभकामनाएँ !</p> सुंदर रचना के लिए बधाईtag:openbooksonline.com,2012-11-05:5170231:Comment:2877612012-11-05T07:24:30.192Zराजेश 'मृदु'http://openbooksonline.com/profile/RajeshKumarJha
<p>सुंदर रचना के लिए बधाई</p>
<p>सुंदर रचना के लिए बधाई</p> bahut bahut shukriya aap sabh…tag:openbooksonline.com,2012-11-05:5170231:Comment:2876582012-11-05T06:12:28.359ZGul Sarika Thakurhttp://openbooksonline.com/profile/GulSarikaJha
<p>bahut bahut shukriya aap sabhee ka ... anugrihit hun ...</p>
<p>bahut bahut shukriya aap sabhee ka ... anugrihit hun ...</p> बहुत कोमल भावों को अभिव्यक्ति…tag:openbooksonline.com,2012-11-04:5170231:Comment:2877112012-11-04T09:45:22.597ZDr.Prachi Singhhttp://openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>बहुत कोमल भावों को अभिव्यक्ति मिली है, हार्दिक बधाई इस रचना हेतु गुल सारिका जी </p>
<p>बहुत कोमल भावों को अभिव्यक्ति मिली है, हार्दिक बधाई इस रचना हेतु गुल सारिका जी </p> चन्द लम्हों के ये सिक्के जो थ…tag:openbooksonline.com,2012-11-04:5170231:Comment:2873882012-11-04T05:27:21.714Zseema agrawalhttp://openbooksonline.com/profile/seemaagrawal8
<p><span>चन्द लम्हों के ये सिक्के </span><br/><span>जो थी वस्ल की रात </span><br/><span>मेरी मुट्ठी में खनक उनकी </span><br/><span>यूं ही कैद रहे </span><br/><span>जब कभी रूह जिस्म के तिलिस्म से बाहर निकले </span><br/><span>और कहीं दूर से रेत को छूता हुआ </span><br/><span>सावन निकले </span><br/><span>मेरे हमदम मेरे हमराज </span><br/><span>यूं ही खामोश रहो.....बहुत सुन्दर .....इस मनमोहक प्रस्तुति के लिए बधाई गुल सारिका जी </span></p>
<p><span>चन्द लम्हों के ये सिक्के </span><br/><span>जो थी वस्ल की रात </span><br/><span>मेरी मुट्ठी में खनक उनकी </span><br/><span>यूं ही कैद रहे </span><br/><span>जब कभी रूह जिस्म के तिलिस्म से बाहर निकले </span><br/><span>और कहीं दूर से रेत को छूता हुआ </span><br/><span>सावन निकले </span><br/><span>मेरे हमदम मेरे हमराज </span><br/><span>यूं ही खामोश रहो.....बहुत सुन्दर .....इस मनमोहक प्रस्तुति के लिए बधाई गुल सारिका जी </span></p> मेरी उम्मीद मेरी हसरत परवान च…tag:openbooksonline.com,2012-11-03:5170231:Comment:2872872012-11-03T14:22:42.475Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttp://openbooksonline.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p><span><span>मेरी उम्मीद मेरी हसरत </span><span>परवान चढ़े .. </span><span>और फिर गीत कोई </span><span>सूखे लबो को </span><span>छूकर निकले </span></span></p>
<div><span><font color="#0000FF">हमारी शुभकामनाए आपके साथ है, प्रभु आपकी सुनले । रचना पसंद आई, बधाई </font></span></div>
<p><span><span>मेरी उम्मीद मेरी हसरत </span><span>परवान चढ़े .. </span><span>और फिर गीत कोई </span><span>सूखे लबो को </span><span>छूकर निकले </span></span></p>
<div><span><font color="#0000FF">हमारी शुभकामनाए आपके साथ है, प्रभु आपकी सुनले । रचना पसंद आई, बधाई </font></span></div> गुल सारिका ठाकुर.. ’यूँ ही ख…tag:openbooksonline.com,2012-11-03:5170231:Comment:2870872012-11-03T03:51:02.516ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>गुल सारिका ठाकुर.. ’यूँ ही खामोश रहो’ आपकी प्रथम प्रविष्टि मेरी दृष्टि में आयी है. इस मंच पर स्वागत करता हूँ.</p>
<p>रचना के कुछ बिम्ब आशान्वित कर रहे हैं. हार्दिक बधाई.</p>
<p>गुल सारिका ठाकुर.. ’यूँ ही खामोश रहो’ आपकी प्रथम प्रविष्टि मेरी दृष्टि में आयी है. इस मंच पर स्वागत करता हूँ.</p>
<p>रचना के कुछ बिम्ब आशान्वित कर रहे हैं. हार्दिक बधाई.</p>