Comments - गोबर बनाम प्रयोगवाद (हास्य) // शुभ्रांशु - Open Books Online2024-03-29T00:39:58Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A290001&xn_auth=noबहुत ही अच्छी रचना. बधाई स्…tag:openbooksonline.com,2012-11-16:5170231:Comment:2908122012-11-16T04:44:01.006ZNeelam Upadhyayahttp://openbooksonline.com/profile/NeelamUpadhyaya
<div>बहुत ही अच्छी रचना. बधाई स्वीकार करें.</div>
<div>बहुत ही अच्छी रचना. बधाई स्वीकार करें.</div> सुन्दर रचना,,,, बधाई..!tag:openbooksonline.com,2012-11-16:5170231:Comment:2907332012-11-16T02:28:54.170Zपीयूष द्विवेदी भारतhttp://openbooksonline.com/profile/2ixxsuhjha9i0
<p>सुन्दर रचना,,,, बधाई..!</p>
<p>सुन्दर रचना,,,, बधाई..!</p> प्रस्तुत हास्य रचना पर साधुवा…tag:openbooksonline.com,2012-11-16:5170231:Comment:2905032012-11-16T01:41:56.988ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>प्रस्तुत हास्य रचना पर साधुवाद. प्रयोगवाद के ढोंग पर खूब गोबर मला गया है. वाह-वाह !</p>
<p>ऐसे तथाकथित ’महान’ प्रयोगवादियों से आये दिन पाला पड़ता है जो साहित्य ही नहीं अपने परिवेश में भी बिना ठोस तथ्य और उचित जानकारी के प्रयोग करते फिरते हैं और आस-पड़ोस का जीना हलकान किये रहते हैं. आत्म-मुग्धों को अब क्या कहा जाय ?</p>
<p>हास्य रचना के लिये हार्दिक बधाई.</p>
<p>प्रस्तुत हास्य रचना पर साधुवाद. प्रयोगवाद के ढोंग पर खूब गोबर मला गया है. वाह-वाह !</p>
<p>ऐसे तथाकथित ’महान’ प्रयोगवादियों से आये दिन पाला पड़ता है जो साहित्य ही नहीं अपने परिवेश में भी बिना ठोस तथ्य और उचित जानकारी के प्रयोग करते फिरते हैं और आस-पड़ोस का जीना हलकान किये रहते हैं. आत्म-मुग्धों को अब क्या कहा जाय ?</p>
<p>हास्य रचना के लिये हार्दिक बधाई.</p> गुप्ताजी के प्रगतिशील, प्रयोग…tag:openbooksonline.com,2012-11-15:5170231:Comment:2906172012-11-15T05:46:05.020ZSanjay Rajendraprasad Yadavhttp://openbooksonline.com/profile/SanjayRajendraprasadYadav
<p>गुप्ताजी के प्रगतिशील, प्रयोगवादी से........!!!!<br/>( ये बरदमूतन क्या बला है.)... :-1,तो फ़िर सुनिये.." लालाभाई ने इत्मिनान से कहा, "बैल जब उस रास्ते पर अपनी लघु-लघु शंकाओं का निवारण करता चलता है तो लहराती हुई एक लम्बी लकीर बनती जाती है. इसे ही बरदमूतन कहते हैं.."</p>
<p>:-2, उभरते हुये बिजनेसमैन के बिजनेस-सोच की भ्रूण-हत्या करवा दी थी.</p>
<p>गुप्ताजी के प्रगतिशील, प्रयोगवादी से........!!!!<br/>( ये बरदमूतन क्या बला है.)... :-1,तो फ़िर सुनिये.." लालाभाई ने इत्मिनान से कहा, "बैल जब उस रास्ते पर अपनी लघु-लघु शंकाओं का निवारण करता चलता है तो लहराती हुई एक लम्बी लकीर बनती जाती है. इसे ही बरदमूतन कहते हैं.."</p>
<p>:-2, उभरते हुये बिजनेसमैन के बिजनेस-सोच की भ्रूण-हत्या करवा दी थी.</p> "तिवारी जी जैसे शुद्ध भौतिकवा…tag:openbooksonline.com,2012-11-15:5170231:Comment:2904522012-11-15T04:05:55.718ZVinita Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/VinitaShukla
<p>"तिवारी जी जैसे शुद्ध भौतिकवादी ने संभावनाओं से भरे एक उभरते हुये बिजनेसमैन के बिजनेस-सोच की भ्रूण-हत्या करवा दी थी. "</p>
<p>बेसाख्ता हंसने पर मजबूर करने वाली सुंदर रचना. गुप्तजी जैसी निराली शख्सियत से रूबरू होते हुए, हास्य- व्यंग्य की फुहारों से पाठक; भीग भीग जाता है. अद्भुत भाषा- शैली, जो बांधे रखती है. बहुत बहुत बधाई.</p>
<p>"तिवारी जी जैसे शुद्ध भौतिकवादी ने संभावनाओं से भरे एक उभरते हुये बिजनेसमैन के बिजनेस-सोच की भ्रूण-हत्या करवा दी थी. "</p>
<p>बेसाख्ता हंसने पर मजबूर करने वाली सुंदर रचना. गुप्तजी जैसी निराली शख्सियत से रूबरू होते हुए, हास्य- व्यंग्य की फुहारों से पाठक; भीग भीग जाता है. अद्भुत भाषा- शैली, जो बांधे रखती है. बहुत बहुत बधाई.</p> आदरणीय
सादर,…tag:openbooksonline.com,2012-11-15:5170231:Comment:2906082012-11-15T02:28:07.937ZAshok Kumar Raktalehttp://openbooksonline.com/profile/AshokKumarRaktale
<p>आदरणीय </p>
<p> सादर, अधकचरे ज्ञानी की प्रयोगशाला की मुसीबतों से अच्छा हास्य सर्जन किया है. बधाई स्वीकारें.</p>
<p>आदरणीय </p>
<p> सादर, अधकचरे ज्ञानी की प्रयोगशाला की मुसीबतों से अच्छा हास्य सर्जन किया है. बधाई स्वीकारें.</p> ...गुप्ता जी सलामत रहे!tag:openbooksonline.com,2012-11-14:5170231:Comment:2905142012-11-14T12:24:19.056ZAruna Kapoorhttp://openbooksonline.com/profile/ArunaKapoor
<p>...गुप्ता जी सलामत रहे!</p>
<p>...गुप्ता जी सलामत रहे!</p> हद हो गयी हा हा हाtag:openbooksonline.com,2012-11-14:5170231:Comment:2901052012-11-14T09:06:55.370Zवीनस केसरीhttp://openbooksonline.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>हद हो गयी <br/><br/>हा हा हा</p>
<p>हद हो गयी <br/><br/>हा हा हा</p> बहुत अच्छी हास्य रचना और बरद…tag:openbooksonline.com,2012-11-13:5170231:Comment:2903222012-11-13T04:25:49.753Zrajesh kumarihttp://openbooksonline.com/profile/rajeshkumari
<p><span>बहुत अच्छी हास्य रचना और बरद मूतन (हहाहाहा </span><span>)</span><span>की व्याख्या ने तो सच में हंसने पर मजबूर </span><span> कर दिया शब्द भी पहली बार सुना दिवाली की बधाई आपको </span><span> चलो गुप्ता जी की कालोनी वाले भी अच्छी शुद्ध दीपावली मना </span><span> सकेंगे </span></p>
<p><span>बहुत अच्छी हास्य रचना और बरद मूतन (हहाहाहा </span><span>)</span><span>की व्याख्या ने तो सच में हंसने पर मजबूर </span><span> कर दिया शब्द भी पहली बार सुना दिवाली की बधाई आपको </span><span> चलो गुप्ता जी की कालोनी वाले भी अच्छी शुद्ध दीपावली मना </span><span> सकेंगे </span></p>