Comments - "पाषाण" - Open Books Online2024-03-29T07:49:23Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A302754&xn_auth=noआपकी उर्वर मनस को बारहा बधाइय…tag:openbooksonline.com,2012-12-22:5170231:Comment:3027052012-12-22T10:33:34.203ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आपकी उर्वर मनस को बारहा बधाइयाँ, सुमनजी. आदरणीया सीमाजी ने उचित सुझाव दिये हैं. मैं उनका भी आभारी हूँ. एक सीमा के बाद रचनाकार के लिए रचनाकर्म एक सुगढ़ आदत होनी चाहिये, लत नहीं.</p>
<p></p>
<p>//<em>देर रात में बनायी थी ये कविता - संयोजित नहीं थी</em>.//</p>
<p>इस पर अब क्या कहा जा सकता है ? </p>
<p></p>
<p>आपकी उर्वर मनस को बारहा बधाइयाँ, सुमनजी. आदरणीया सीमाजी ने उचित सुझाव दिये हैं. मैं उनका भी आभारी हूँ. एक सीमा के बाद रचनाकार के लिए रचनाकर्म एक सुगढ़ आदत होनी चाहिये, लत नहीं.</p>
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<p>//<em>देर रात में बनायी थी ये कविता - संयोजित नहीं थी</em>.//</p>
<p>इस पर अब क्या कहा जा सकता है ? </p>
<p></p> जी प्रिय सीमा दी...कुछ ऐसा ही…tag:openbooksonline.com,2012-12-22:5170231:Comment:3028842012-12-22T05:31:03.687ZSUMAN MISHRAhttp://openbooksonline.com/profile/SUMANMISHRA
<p>जी प्रिय सीमा दी...कुछ ऐसा ही....आपने इतने ध्यान से पढ़ा और और आभारी हूँ आपके परामर्श के लिए,,,देर रात में बनायी थी ये कविता - संयोजित नहीं थी....बहुत बहुत धन्यबाद सीमा दी</p>
<p>जी प्रिय सीमा दी...कुछ ऐसा ही....आपने इतने ध्यान से पढ़ा और और आभारी हूँ आपके परामर्श के लिए,,,देर रात में बनायी थी ये कविता - संयोजित नहीं थी....बहुत बहुत धन्यबाद सीमा दी</p> ह्रदय कोमल, मन सु-कोमलत्वरित…tag:openbooksonline.com,2012-12-21:5170231:Comment:3029152012-12-21T15:00:29.410Zseema agrawalhttp://openbooksonline.com/profile/seemaagrawal8
<p><span>ह्रदय कोमल, मन सु-कोमल</span><br></br><span>त्वरित धडका, दौड़ता सा</span><br></br><span>पागलों की भाँती चाहा</span><br></br><span>फिर भी उसका मन न पिघला</span><br></br><span>" है तो वो पाषाण ही ना...........दिल को छू गयी आपके ये पंक्तिया सुमन जी </span></p>
<p><span><span>ह्रदय माँ का , गंगा यमुना</span><br></br><span>बह रहा है प्यार इतना</span><br></br><span>नेह की दूर होकर हूँ सुबकती</span><br></br><span>"मैं नहीं पाषाण हूँ माँ ".....................अंतिम बंद जो सबसे अधिक संवेदनशील है उसने आप शायद पंक्तियों को…</span></span></p>
<p><span>ह्रदय कोमल, मन सु-कोमल</span><br/><span>त्वरित धडका, दौड़ता सा</span><br/><span>पागलों की भाँती चाहा</span><br/><span>फिर भी उसका मन न पिघला</span><br/><span>" है तो वो पाषाण ही ना...........दिल को छू गयी आपके ये पंक्तिया सुमन जी </span></p>
<p><span><span>ह्रदय माँ का , गंगा यमुना</span><br/><span>बह रहा है प्यार इतना</span><br/><span>नेह की दूर होकर हूँ सुबकती</span><br/><span>"मैं नहीं पाषाण हूँ माँ ".....................अंतिम बंद जो सबसे अधिक संवेदनशील है उसने आप शायद पंक्तियों को ठीक से संयोजित नहीं कर सकी हैं और सही CUT न मिल पाने से अर्थ बिखर गया </span></span></p>
<p><span><span>ह्रदय माँ का , गंगा यमुना<br/>बह रहा है प्यार</span></span></p>
<p>इतना नेह की</p>
<p><span><span>दूर होकर</span></span></p>
<p><span><span>हूँ सुबकती<br/>"मैं नहीं पाषाण हूँ माँ ".....................................इस बंद को एक बार फिर से देखिये </span></span></p>