Comments - रे मन करना आज सृजन वो / डॉ. प्राची - Open Books Online2024-03-28T21:40:55Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A306570&xn_auth=noप्रस्तुत रचना की गहनता व ओजस्…tag:openbooksonline.com,2013-04-15:5170231:Comment:3471562013-04-15T05:30:33.587ZDr.Prachi Singhhttp://openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>प्रस्तुत रचना की गहनता व ओजस्व को मान देने के लिए तथा कथ्य के मर्म तक पहुँचने के लिए आभार आदरणीय आशीष कुमार त्रिवेदी जी</p>
<p>प्रस्तुत रचना की गहनता व ओजस्व को मान देने के लिए तथा कथ्य के मर्म तक पहुँचने के लिए आभार आदरणीय आशीष कुमार त्रिवेदी जी</p> मन ही है जो हमारे समक्ष सम्पू…tag:openbooksonline.com,2013-04-10:5170231:Comment:3445792013-04-10T06:18:23.955ZASHISH KUMAAR TRIVEDIhttp://openbooksonline.com/profile/ASHISHKUMAARTRIVEDI
<p><strong>मन ही है जो हमारे समक्ष सम्पूर्ण संसार रचता है। यदि यह उचित स्थान पर रमता है तो वह शक्ति देता है जो समस्त बंधनों को काटकर हमें मुक्ति की राह दिखाता है।</strong></p>
<p><strong>आपकी रचना में ओज और गहराई है।</strong></p>
<p><strong>मन ही है जो हमारे समक्ष सम्पूर्ण संसार रचता है। यदि यह उचित स्थान पर रमता है तो वह शक्ति देता है जो समस्त बंधनों को काटकर हमें मुक्ति की राह दिखाता है।</strong></p>
<p><strong>आपकी रचना में ओज और गहराई है।</strong></p> रचना की सराहना और अनुमोदन के…tag:openbooksonline.com,2013-02-12:5170231:Comment:3174222013-02-12T13:22:03.110ZDr.Prachi Singhhttp://openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>रचना की सराहना और अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार आदरणीया मंजरी पाण्डेय जी.</p>
<p>रचना की सराहना और अनुमोदन के लिए हार्दिक आभार आदरणीया मंजरी पाण्डेय जी.</p> आदरणीया ," रे मन करना आज …tag:openbooksonline.com,2013-02-12:5170231:Comment:3173642013-02-12T13:02:18.121Zmrs manjari pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/mrsmanjaripandey
<p>आदरणीया ," रे मन करना आज सृजन वो मन को भा गया</p>
<p>आदरणीया ," रे मन करना आज सृजन वो मन को भा गया</p> आपकी सदाशयता और शुभ्रता के लि…tag:openbooksonline.com,2013-02-03:5170231:Comment:3142132013-02-03T05:08:50.556ZDr.Prachi Singhhttp://openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>आपकी सदाशयता और शुभ्रता के लिए आभारी हूँ आदरणीय विजय जी. सादर.</p>
<p>आपकी सदाशयता और शुभ्रता के लिए आभारी हूँ आदरणीय विजय जी. सादर.</p> आदरणीया प्राची जी:
अभी-अभी पू…tag:openbooksonline.com,2013-02-03:5170231:Comment:3139982013-02-03T02:57:45.759Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>आदरणीया प्राची जी:</p>
<p>अभी-अभी पूजा करते हुए आपकी आवाज़ में आपका गीत सुना।</p>
<p>अच्छा लिखा है, अच्छा गाया है .. you <strong>are</strong> gifted.</p>
<p>सादर,</p>
<p>विजय निकोर</p>
<p>आदरणीया प्राची जी:</p>
<p>अभी-अभी पूजा करते हुए आपकी आवाज़ में आपका गीत सुना।</p>
<p>अच्छा लिखा है, अच्छा गाया है .. you <strong>are</strong> gifted.</p>
<p>सादर,</p>
<p>विजय निकोर</p> आदरणीय विजय मिश्र जी, इस रचना…tag:openbooksonline.com,2013-02-02:5170231:Comment:3137622013-02-02T11:12:09.428ZDr.Prachi Singhhttp://openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>आदरणीय विजय मिश्र जी, इस रचना निहित गहन तन्मयता को अंगीकार करने के लिए आपका हार्दिक आभार .</p>
<p>आदरणीय विजय मिश्र जी, इस रचना निहित गहन तन्मयता को अंगीकार करने के लिए आपका हार्दिक आभार .</p> काव्य है या अधि आत्म का लयबद्…tag:openbooksonline.com,2013-02-02:5170231:Comment:3139232013-02-02T08:19:42.938Zविजय मिश्रhttp://openbooksonline.com/profile/37jicf27kggmy
<p>काव्य है या अधि आत्म का लयबद्ध स्वर ,जैसे जैसे इसके साथ बढते हैं ,मन शिथिल और आत्मा तन्मय होती जाती है , जागरण का भाव सृजित होता जाता है . बहुत सुंदर आदेश भरा गीत .</p>
<p>"रे मन करना आज सृजन वो</p>
<p><span> जो भव सागर पार करा दे | " वाह </span></p>
<p>काव्य है या अधि आत्म का लयबद्ध स्वर ,जैसे जैसे इसके साथ बढते हैं ,मन शिथिल और आत्मा तन्मय होती जाती है , जागरण का भाव सृजित होता जाता है . बहुत सुंदर आदेश भरा गीत .</p>
<p>"रे मन करना आज सृजन वो</p>
<p><span> जो भव सागर पार करा दे | " वाह </span></p> इस रचना को सराह अपनी शुभकामना…tag:openbooksonline.com,2013-02-02:5170231:Comment:3137332013-02-02T04:18:28.832ZDr.Prachi Singhhttp://openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>इस रचना को सराह अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करने केलिए आभार आ. अविनाश जी </p>
<p>इस रचना को सराह अपनी शुभकामनाएं प्रेषित करने केलिए आभार आ. अविनाश जी </p> भाव महक हो चन्दन चन्दनजो सोया…tag:openbooksonline.com,2013-02-01:5170231:Comment:3137172013-02-01T14:17:57.127ZAVINASH S BAGDEhttp://openbooksonline.com/profile/AVINASHSBAGDE
<p><span>भाव महक हो चन्दन चन्दन</span><br/><span>जो सोया चैतन्य जगा दे l..wah..</span></p>
<p><span><span>निज सम्मोहन द्विजता बंधन</span><br/><span>विलय करे हो ऐसा वंदन,</span><br/><span>सत्य कटु और मधुर कल्पना</span><br/><span>विलग! सेतु बन, मिलन करा दे l..bahut umda</span></span></p>
<p><span><span><span>रे मन करना आज सृजन वो</span><br/><span>जो भव सागर पार करा दे l..badhai Prachi ji</span></span></span></p>
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<p><span>भाव महक हो चन्दन चन्दन</span><br/><span>जो सोया चैतन्य जगा दे l..wah..</span></p>
<p><span><span>निज सम्मोहन द्विजता बंधन</span><br/><span>विलय करे हो ऐसा वंदन,</span><br/><span>सत्य कटु और मधुर कल्पना</span><br/><span>विलग! सेतु बन, मिलन करा दे l..bahut umda</span></span></p>
<p><span><span><span>रे मन करना आज सृजन वो</span><br/><span>जो भव सागर पार करा दे l..badhai Prachi ji</span></span></span></p>
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