Comments - किसकी सदा ? - Open Books Online2024-03-28T09:41:22Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A314429&xn_auth=noSourabh ji..I understood that…tag:openbooksonline.com,2013-02-06:5170231:Comment:3153942013-02-06T13:01:50.299ZAnwesha Anjushreehttp://openbooksonline.com/profile/AnweshaAnjushree
<p>Sourabh ji..I understood that very well after reading ur comment..anyways Thanx</p>
<p>Sourabh ji..I understood that very well after reading ur comment..anyways Thanx</p> शायद मैं ऐसे विषय नहीं समझ पा…tag:openbooksonline.com,2013-02-05:5170231:Comment:3150932013-02-05T17:19:51.428ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>शायद मैं ऐसे विषय नहीं समझ पाता. आदरणीया अन्वेषाजी, आपने सही कहा है. </p>
<p>सादर</p>
<p>शायद मैं ऐसे विषय नहीं समझ पाता. आदरणीया अन्वेषाजी, आपने सही कहा है. </p>
<p>सादर</p> सौरभ जी मेरे लेख को ध्यान से…tag:openbooksonline.com,2013-02-05:5170231:Comment:3150672013-02-05T13:19:42.282ZAnwesha Anjushreehttp://openbooksonline.com/profile/AnweshaAnjushree
<p><span>सौरभ जी मेरे लेख को ध्यान से पढने के लिए शुक्रिया ! आत्मा कालखंड में आबद्ध </span><span> नहीं है, यह अमर है, पर </span><span> यह वस्त्र बदलती है, नए वेश भूषा में कुछ पल ठहरती है ! मेरे लिखने का अर्थ यही था !</span></p>
<div><br></br><div>इस समाज में सोच के कुछ दायरे है , मनुष्य किस बात में सुख पायेगा, किस बात में दुखी होगा , इस पर भी समाज कुछ सोच रखता है ! भौतिक और मानसिक रूप से सुखी या दुखी होने के बारे में भी यह समाज एक सोच रखता है ! मैंने उसी को सांसारिक पूर्णता कहा है ! मेरी आत्मा इस…</div>
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<p><span>सौरभ जी मेरे लेख को ध्यान से पढने के लिए शुक्रिया ! आत्मा कालखंड में आबद्ध </span><span> नहीं है, यह अमर है, पर </span><span> यह वस्त्र बदलती है, नए वेश भूषा में कुछ पल ठहरती है ! मेरे लिखने का अर्थ यही था !</span></p>
<div><br/><div>इस समाज में सोच के कुछ दायरे है , मनुष्य किस बात में सुख पायेगा, किस बात में दुखी होगा , इस पर भी समाज कुछ सोच रखता है ! भौतिक और मानसिक रूप से सुखी या दुखी होने के बारे में भी यह समाज एक सोच रखता है ! मैंने उसी को सांसारिक पूर्णता कहा है ! मेरी आत्मा इस समाज के नियमो सा चले, यह जरुरी तो नहीं, जिस बात से समाज में लोग खुश हो, मेरी आत्मा भी उससे खुश हो, यह जरुरी तो नहीं !</div>
</div>
<div>मनोदशा की बात अगर कहे तो मैं यह कहूँगी की साधारण चिंता धारा से मेरी सोच अलग है ! </div>
<div>नमन </div> अन्वेषा जी, अनवरतता को स्वर द…tag:openbooksonline.com,2013-02-05:5170231:Comment:3149712013-02-05T01:41:46.187ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>अन्वेषा जी, अनवरतता को स्वर देती आपकी यह विचारपरक कविता बहुत कुछ कहती हुई लगी. कहे से अधिक अनकहे को इंगित करती. अपनी अनुभूतियाँ ही हमारी आदतें होती हैं, जोकि लभ्य-अप्राप्य के प्रति तोष या फिर चाह का कारण हैं. यही आदतें निरंतरता को जीती हुई क्रमशः परिपाटियाँ और फिर संस्कार बनती हैं. आपकी कविता सही कह रही है कि यह सारा कुछ किसी एक जन्म से बँधा नहीं है, बल्कि यह सारा कुछ जीव के भौतिक प्रादुर्भावों की एक शृंखला की कड़ियों से प्राण पाता, संतुष्ट हुआ करता है.</p>
<p>भाव-दशा बहुत सुन्दर ढंग से बहे…</p>
<p>अन्वेषा जी, अनवरतता को स्वर देती आपकी यह विचारपरक कविता बहुत कुछ कहती हुई लगी. कहे से अधिक अनकहे को इंगित करती. अपनी अनुभूतियाँ ही हमारी आदतें होती हैं, जोकि लभ्य-अप्राप्य के प्रति तोष या फिर चाह का कारण हैं. यही आदतें निरंतरता को जीती हुई क्रमशः परिपाटियाँ और फिर संस्कार बनती हैं. आपकी कविता सही कह रही है कि यह सारा कुछ किसी एक जन्म से बँधा नहीं है, बल्कि यह सारा कुछ जीव के भौतिक प्रादुर्भावों की एक शृंखला की कड़ियों से प्राण पाता, संतुष्ट हुआ करता है.</p>
<p>भाव-दशा बहुत सुन्दर ढंग से बहे हैं. इस कविता के लिए बहुत-बहुत बधाई.</p>
<p></p>
<p><strong>एक बात :</strong></p>
<p>//<span style="color: #0000ff;">सदियों से जीवित यह आत्मा, कभी-कभी इस शरीर की सांसारिक पूर्णता से विमुख होकर कुछ <strong>ढूँढती</strong> है ! क्या उसे कोई पुरानी कड़ी याद आती है ?</span>//</p>
<p>यहाँ आत्मा शब्द समीचीन नहीं है. आत्मा अनवरत है. वह कालखण्ड में आबद्ध नहीं. दूसरे, सांसारिकता है ही अपूर्णता का पर्याय. फिर सामासिक शब्द ’सांसारिक-पूर्णता’ क्या इशारे करता है. सांसारिक और भौतिक प्राप्तियों के प्रति ’प्रत्याहार’ के भाव संतुलित मन, संयत वृत्ति तथा उन्नत संतोष का परिचायक हैं, अन्वेषाजी.</p>
<p>आप जो कुछ कहना चाहती हैं वह संभवतः मैं समझ रहा हूँ किन्तु इस तरह की मनोदशा से संबंधित शब्दों का अपना अलग संसार हुआ करता है, मैं उसी ओर इंगित कर रहा हूँ.</p>
<p>सादर</p> Shri Laxman Prasad ji , Ajay…tag:openbooksonline.com,2013-02-04:5170231:Comment:3149662013-02-04T16:55:21.194ZAnwesha Anjushreehttp://openbooksonline.com/profile/AnweshaAnjushree
<p>Shri Laxman Prasad ji , Ajay ji, Arun ji, vijay ji, Ram Shiromani ji aur Vijay ji....meri rachna ko padhne ke liye aur pasand karne ke liye shukriya...naman aap sabhi ko</p>
<p>Shri Laxman Prasad ji , Ajay ji, Arun ji, vijay ji, Ram Shiromani ji aur Vijay ji....meri rachna ko padhne ke liye aur pasand karne ke liye shukriya...naman aap sabhi ko</p> आत्मा तो अमर है, यह तो सांसार…tag:openbooksonline.com,2013-02-04:5170231:Comment:3149182013-02-04T10:51:07.406Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttp://openbooksonline.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p><strong>आत्मा तो अमर है, यह तो सांसारिक भौतिक जीवन में चौला बदलती हुई अमर ही रहती है इसको पहचानना</strong></p>
<p><strong>और ईश्वर की अमुल्य दें मानते हुए इसमें स्फुरित शब्दों का अहसास करना, आद्यात्म की ओर कदम बढ़ाना है।</strong></p>
<p><strong>आपकी बहुत सुन्दर अभ्व्यक्ति की लिए हार्दिक बधाई अन्वेषा अन्जुश्री जी </strong></p>
<p><strong>आत्मा तो अमर है, यह तो सांसारिक भौतिक जीवन में चौला बदलती हुई अमर ही रहती है इसको पहचानना</strong></p>
<p><strong>और ईश्वर की अमुल्य दें मानते हुए इसमें स्फुरित शब्दों का अहसास करना, आद्यात्म की ओर कदम बढ़ाना है।</strong></p>
<p><strong>आपकी बहुत सुन्दर अभ्व्यक्ति की लिए हार्दिक बधाई अन्वेषा अन्जुश्री जी </strong></p> bah bah bah anvesha madam dil…tag:openbooksonline.com,2013-02-04:5170231:Comment:3146042013-02-04T09:14:35.848ZDr.Ajay Kharehttp://openbooksonline.com/profile/DrAjayKhare
<p>bah bah bah anvesha madam dil ko chuti hui rachana he bhdhai aap ki lekhan ki jitni bhi pareef ki jaye kam he</p>
<p>bah bah bah anvesha madam dil ko chuti hui rachana he bhdhai aap ki lekhan ki jitni bhi pareef ki jaye kam he</p> आदरेया बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति…tag:openbooksonline.com,2013-02-04:5170231:Comment:3145682013-02-04T06:05:48.152Zअरुन 'अनन्त'http://openbooksonline.com/profile/ArunSharma
<p>आदरेया बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई स्वीकारें.</p>
<p>आदरेया बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति बधाई स्वीकारें.</p> सुन्दर रचना ,साधुबाद
अन्वेषा…tag:openbooksonline.com,2013-02-04:5170231:Comment:3147322013-02-04T05:58:16.595Zविजय मिश्रhttp://openbooksonline.com/profile/37jicf27kggmy
<p>सुन्दर रचना ,साधुबाद </p>
<p>अन्वेषाजी के पास भी हैं कुछ प्रश्न अनुत्तरित और कुछ पहचान हैं गौण ,तभी तो उपस्थित होता है यह --- कौन ?</p>
<p>सुन्दर रचना ,साधुबाद </p>
<p>अन्वेषाजी के पास भी हैं कुछ प्रश्न अनुत्तरित और कुछ पहचान हैं गौण ,तभी तो उपस्थित होता है यह --- कौन ?</p> है कौन यह अपरिचित?क्या है यह…tag:openbooksonline.com,2013-02-04:5170231:Comment:3146402013-02-04T05:50:21.330Zram shiromani pathakhttp://openbooksonline.com/profile/ramshiromanipathak
<p><span>है कौन यह अपरिचित?</span><br/><span>क्या है यह अपना मीत ?</span><span> </span><br/><span>यह कैसी है संवेदना?</span><br/><span>यह किसकी है सदा ?</span><br/><span>क्या कही ढह गई..</span><br/><span>जन्मांतर की भीत ?</span></p>
<p><span><strong>सुन्दर अभिव्यक्ति।</strong></span></p>
<p><span><strong>आदरणीया अन्वेषा जी:</strong><strong> बधाई आपको,</strong></span></p>
<p><span>है कौन यह अपरिचित?</span><br/><span>क्या है यह अपना मीत ?</span><span> </span><br/><span>यह कैसी है संवेदना?</span><br/><span>यह किसकी है सदा ?</span><br/><span>क्या कही ढह गई..</span><br/><span>जन्मांतर की भीत ?</span></p>
<p><span><strong>सुन्दर अभिव्यक्ति।</strong></span></p>
<p><span><strong>आदरणीया अन्वेषा जी:</strong><strong> बधाई आपको,</strong></span></p>