Comments - महाशिवरात्रि पर विशेष : शिव पार्वती विवाह - Open Books Online2024-03-29T07:12:04Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A330294&xn_auth=noआदरणीय राज साहब
सादर
मैने इ…tag:openbooksonline.com,2013-04-04:5170231:Comment:3410492013-04-04T10:48:19.213ZPRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHAhttp://openbooksonline.com/profile/PRADEEPKUMARSINGHKUSHWAHA
<p>आदरणीय राज साहब </p>
<p>सादर </p>
<p>मैने इसे सुरक्षित रख लिया है. </p>
<p>सादर </p>
<p>बधाई. </p>
<p>आदरणीय राज साहब </p>
<p>सादर </p>
<p>मैने इसे सुरक्षित रख लिया है. </p>
<p>सादर </p>
<p>बधाई. </p> baban pandey
जी भाई स…tag:openbooksonline.com,2013-03-13:5170231:Comment:3328052013-03-13T17:22:35.441Zकवि - राज बुन्दॆलीhttp://openbooksonline.com/profile/kavirajbundeli
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/babanpandey" class="fn url">baban pandey </a></p>
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/babanpandey" class="fn url">जी भाई साहब,,</a></p>
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/babanpandey" class="fn url">आपके इस स्नेह को प्रणाम करता हूँ,,,,,,,,,,</a></p>
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/babanpandey" class="fn url">baban pandey </a></p>
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/babanpandey" class="fn url">जी भाई साहब,,</a></p>
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/babanpandey" class="fn url">आपके इस स्नेह को प्रणाम करता हूँ,,,,,,,,,,</a></p> adbhut hai bhai ....tag:openbooksonline.com,2013-03-13:5170231:Comment:3329642013-03-13T16:50:17.400Zbaban pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/babanpandey
<p>adbhut hai bhai ....</p>
<p>adbhut hai bhai ....</p> SANDEEP KUMAR PATEL
जी भाई स…tag:openbooksonline.com,2013-03-13:5170231:Comment:3324582013-03-13T06:03:00.432Zकवि - राज बुन्दॆलीhttp://openbooksonline.com/profile/kavirajbundeli
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SANDEEPKUMARPATEL" class="fn url">SANDEEP KUMAR PATEL</a> </p>
<p>जी भाई साहब,, इस स्नेह हेतु,,,आपका ,,,,बहुत बहुत आभार,,,,,,,,,,,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,,,</p>
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SANDEEPKUMARPATEL" class="fn url">SANDEEP KUMAR PATEL</a> </p>
<p>जी भाई साहब,, इस स्नेह हेतु,,,आपका ,,,,बहुत बहुत आभार,,,,,,,,,,,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,,,</p> Er. Ganesh Jee "Bagi" जी…tag:openbooksonline.com,2013-03-13:5170231:Comment:3324572013-03-13T06:01:15.733Zकवि - राज बुन्दॆलीhttp://openbooksonline.com/profile/kavirajbundeli
<p> <a class="fn url" href="http://www.openbooksonline.com/profile/GaneshJee">Er. Ganesh Jee "Bagi" जी भाई साहब,,,,,,,,,आपका स्नेह मिला सच मानिये दिल बाग बाग हो गया,,,,, </a></p>
<p>यॆ स्नेह बनाये रखियेगा,,,,,और प्रार्थना कीजिये भोलेनाथ से कि यह खण्ड-काव्य शीघ्र पूर्ण हो जाये,,,,,,,,,,,,</p>
<p>मागउँ आजु अशीष अलौकिक,मोंहि दिहौ सबहीं भल ज्ञानी !!</p>
<p>सेवक नाथ तुहाँरि भयॊ अब, मॊरि मती बहु भाँति भुलानी !!</p>
<p>ब्याधि असाधि अगाधि भरीं तन, छंद-प्रबंध सबै बिसरानी !!</p>
<p>नाव लगावहु पार सबै…</p>
<p> <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/GaneshJee" class="fn url">Er. Ganesh Jee "Bagi" जी भाई साहब,,,,,,,,,आपका स्नेह मिला सच मानिये दिल बाग बाग हो गया,,,,, </a></p>
<p>यॆ स्नेह बनाये रखियेगा,,,,,और प्रार्थना कीजिये भोलेनाथ से कि यह खण्ड-काव्य शीघ्र पूर्ण हो जाये,,,,,,,,,,,,</p>
<p>मागउँ आजु अशीष अलौकिक,मोंहि दिहौ सबहीं भल ज्ञानी !!</p>
<p>सेवक नाथ तुहाँरि भयॊ अब, मॊरि मती बहु भाँति भुलानी !!</p>
<p>ब्याधि असाधि अगाधि भरीं तन, छंद-प्रबंध सबै बिसरानी !!</p>
<p>नाव लगावहु पार सबै मिलि, है कविता सरिता सम दानी !!</p>
<p></p>
<p>,,,,,आपका ,,,,बहुत बहुत आभार,,,,,,,,,,,,,,,धन्यवाद,,,,,,,,,,,,,,,</p>
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<p></p> //शारद, शॆष, सुरॆश दिनॆशहुँ,…tag:openbooksonline.com,2013-03-13:5170231:Comment:3325312013-03-13T03:32:50.995ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooksonline.com/profile/GaneshJee
<p>//<span>शारद, शॆष, सुरॆश दिनॆशहुँ, ईश कपीश गनॆश मनाऊँ//</span></p>
<p><span>किसी भी कार्य का शुभारम्भ ईश वंदना के साथ करना शुभ माना जाता है, कवि ने वंदना के रूप में बहुत ही सुन्दर और सुगढ़ सवैया कि प्रस्तुति है ।</span></p>
<p></p>
<p><span>//<span>जैसहिं है छवि दूलह की सखि,तैसि बरात सजावत भॊला//</span></span></p>
<p></p>
<p><span><span>सत्यम शिवम् सुन्दरम ....दूसरा छंद शिव रूप को जैसे सामने रख दिया हो , बहुत ही खूबसूरती से शिव स्वरुप और सौंदर्य का वर्णन हुआ है…</span></span></p>
<p>//<span>शारद, शॆष, सुरॆश दिनॆशहुँ, ईश कपीश गनॆश मनाऊँ//</span></p>
<p><span>किसी भी कार्य का शुभारम्भ ईश वंदना के साथ करना शुभ माना जाता है, कवि ने वंदना के रूप में बहुत ही सुन्दर और सुगढ़ सवैया कि प्रस्तुति है ।</span></p>
<p></p>
<p><span>//<span>जैसहिं है छवि दूलह की सखि,तैसि बरात सजावत भॊला//</span></span></p>
<p></p>
<p><span><span>सत्यम शिवम् सुन्दरम ....दूसरा छंद शिव रूप को जैसे सामने रख दिया हो , बहुत ही खूबसूरती से शिव स्वरुप और सौंदर्य का वर्णन हुआ है ।</span></span></p>
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<p><span><span>//<span>लागत आजु मसान सखी सब,आइ गयॆ बनि शंभु बराती//</span></span></span></p>
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<p><span><span><span>शब्दों का ऐसा चित्र कि लगता है शिव बारात का दृश्य आखों के सामने है, बुत ही सुन्दर छंद ।</span></span></span></p>
<p></p>
<p><span><span><span>माता की उलाहना, नारद को खरी खोटी, पूरा प्रसंग बहुत ही ढंग से निभाया है आदरणीय, कुल मिलाकर ह्रदय छंद के सागर में और भक्ति के भाव सागर में गोते लगा रहा है ।</span></span></span></p>
<p><span><span><span>आदरणीय कवि राज बुन्देली जी, यह पोस्ट पढ़ लिया था पहले भी किन्तु व्यस्तता के चलते इस पोस्ट पर टिप्पणी देने में विलम्ब हेतु क्षमा चाहूँगा । आज पुनः रसास्वादन का लाभ लिया ।</span></span></span></p>
<p><span><span><span>बहुत बहुत बधाई इस खुबसूरत पोस्ट हेतु, शिल्प, कथ्य और भाव का मिश्रण देखते ही बनता है, ह्रदय से बधाई स्वीकार करें आदरणीय । </span></span></span></p>
<p></p>
<p></p> ये प्रसंग पढ़ कर मन भक्ति रस म…tag:openbooksonline.com,2013-03-13:5170231:Comment:3325202013-03-13T02:31:58.720ZSANDEEP KUMAR PATELhttp://openbooksonline.com/profile/SANDEEPKUMARPATEL
<p><span id=".reactRoot[191].[1][2][1]{comment282239431907228_282339115230593}.0.[1].0.[1].0.[0].[0][2]"><span class="UFICommentBody" id=".reactRoot[191].[1][2][1]{comment282239431907228_282339115230593}.0.[1].0.[1].0.[0].[0][2].0"><span id=".reactRoot[191].[1][2][1]{comment282239431907228_282339115230593}.0.[1].0.[1].0.[0].[0][2].0.[0]">ये प्रसंग पढ़ कर मन भक्ति रस में डूब गया/ दुर्मिल ,मत्तगयन्द सवैया छंदों का प्रयोग रस ,अलंकार ,छंद विधान,गति,यति,लय ,भाव प्रवणता आदि सभी दृष्टियों से पूरे काव्य…</span></span></span></p>
<p><span id=".reactRoot[191].[1][2][1]{comment282239431907228_282339115230593}.0.[1].0.[1].0.[0].[0][2]"><span class="UFICommentBody" id=".reactRoot[191].[1][2][1]{comment282239431907228_282339115230593}.0.[1].0.[1].0.[0].[0][2].0"><span id=".reactRoot[191].[1][2][1]{comment282239431907228_282339115230593}.0.[1].0.[1].0.[0].[0][2].0.[0]">ये प्रसंग पढ़ कर मन भक्ति रस में डूब गया/ दुर्मिल ,मत्तगयन्द सवैया छंदों का प्रयोग रस ,अलंकार ,छंद विधान,गति,यति,लय ,भाव प्रवणता आदि सभी दृष्टियों से पूरे काव्य सौष्ठव के साथ हुआ है / छंदों की इस अति दुरूह साधना में शब्दों को यत्र-तत्र मनोनुकूल स्वरुप में प्रयोग करने का अधिकार कवि को होता है,वह आपने कुशलता और पुरे काव्य सौंदर्य के साथ किया है / इस मनोहारी सृजन के लिए आप को बहुत बहुत बधाई \ सर जी बहुत बहुत बधाइ<br/></span></span></span></p>
<p></p>
<p><span><span class="UFICommentBody"><span>साधू साधू</span></span></span></p> Rajesh Kumar Jha जी भाई साहब…tag:openbooksonline.com,2013-03-11:5170231:Comment:3318222013-03-11T14:31:57.667Zकवि - राज बुन्दॆलीhttp://openbooksonline.com/profile/kavirajbundeli
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/RajeshKumarJha" class="fn url">Rajesh Kumar Jha</a> जी भाई साहब ,,,,,वाह वाह वाह इस काव्य-मय प्रतिक्रिया ने तो चार चाँद लगा दिये रचना में,,,,,बहुत बहुत धन्यवाद,,,,,,,,,दिल से आभार,,,,,,,,जय भोलेनाथ,,,,बाबा,,,,,,</p>
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/RajeshKumarJha" class="fn url">Rajesh Kumar Jha</a> जी भाई साहब ,,,,,वाह वाह वाह इस काव्य-मय प्रतिक्रिया ने तो चार चाँद लगा दिये रचना में,,,,,बहुत बहुत धन्यवाद,,,,,,,,,दिल से आभार,,,,,,,,जय भोलेनाथ,,,,बाबा,,,,,,</p> जस गौरी तस शंभु प्राणा, उमड़ै…tag:openbooksonline.com,2013-03-11:5170231:Comment:3315292013-03-11T08:09:11.470Zराजेश 'मृदु'http://openbooksonline.com/profile/RajeshKumarJha
<p>जस गौरी तस शंभु प्राणा, उमड़ै दोनों एक समाना</p>
<p>मूड़ माथ कर दियो सुनहरा, अद्भुत तेरा खेल बिषहरा</p>
<p></p>
<p>अत्यंत मनोहारी वर्णन, पूरी बारात मानो सद्य: उपस्थित है और मैना जी का उलाहना....बहुत सुंदर वर्णन</p>
<p>जस गौरी तस शंभु प्राणा, उमड़ै दोनों एक समाना</p>
<p>मूड़ माथ कर दियो सुनहरा, अद्भुत तेरा खेल बिषहरा</p>
<p></p>
<p>अत्यंत मनोहारी वर्णन, पूरी बारात मानो सद्य: उपस्थित है और मैना जी का उलाहना....बहुत सुंदर वर्णन</p> Gorkhe Sailo जी आपका बहुत ब…tag:openbooksonline.com,2013-03-11:5170231:Comment:3315162013-03-11T06:06:35.473Zकवि - राज बुन्दॆलीhttp://openbooksonline.com/profile/kavirajbundeli
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/GorkheSailo" class="fn url">Gorkhe Sailo</a> जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद,,,,,,,</p>
<p><a href="http://www.openbooksonline.com/profile/GorkheSailo" class="fn url">Gorkhe Sailo</a> जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद,,,,,,,</p>