Comments - ग़ज़ल- बातें करें ! - Open Books Online2024-03-29T15:58:41Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A442300&xn_auth=noआदरणीय Saurabh जी
आपका अनुमो…tag:openbooksonline.com,2013-10-03:5170231:Comment:4482362013-10-03T13:47:09.714Zसंदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'http://openbooksonline.com/profile/SandeipDwivediWahidKashiwasi
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey" class="fn url">Saurabh जी</a></p>
<p>आपका अनुमोदन सदैव ही प्रोत्साहित करने वाला होता है ।आपकी शिक़ायत अपनी जगह जाइज़ है किन्तु मेरी भी विवशताएँ हैं। विगत कुछ समय से समय के चक्र ने ऐसे उलझा रखा है कि मैं चाह कर भी अपने मन की नहीं कर पा रहा हूँ। एक बार सबकुछ पुनः पटरी पर आ जाने दीजिए, आप लोगों को शिक़ायत का मौक़ा नहीं दूंगा। सादर,</p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey" class="fn url">Saurabh जी</a></p>
<p>आपका अनुमोदन सदैव ही प्रोत्साहित करने वाला होता है ।आपकी शिक़ायत अपनी जगह जाइज़ है किन्तु मेरी भी विवशताएँ हैं। विगत कुछ समय से समय के चक्र ने ऐसे उलझा रखा है कि मैं चाह कर भी अपने मन की नहीं कर पा रहा हूँ। एक बार सबकुछ पुनः पटरी पर आ जाने दीजिए, आप लोगों को शिक़ायत का मौक़ा नहीं दूंगा। सादर,</p> वाह भाई जी वाह ! आपका नया तेव…tag:openbooksonline.com,2013-10-02:5170231:Comment:4463552013-10-02T21:47:32.998ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>वाह भाई जी वाह ! <br/>आपका नया तेवर और नया अंदाज़ देख रहा हूँ. सीधी-सच्ची बात बिना किसी लपेट के. फिर भी बड़ी ग़ज़ल कह गये. बहुत-बहुत दाद कुबूल करें. <br/><br/>संदीप वाहिदजी, आपसे एक शिकायत है हमारी. रहते-रहते कहाँ अलोत हो जाते हैं ? हम आपको क़ायदे से यहीं सुनना पसंद करते हैं. <br/>शुभकामनाएँ<br/><br/></p>
<p>वाह भाई जी वाह ! <br/>आपका नया तेवर और नया अंदाज़ देख रहा हूँ. सीधी-सच्ची बात बिना किसी लपेट के. फिर भी बड़ी ग़ज़ल कह गये. बहुत-बहुत दाद कुबूल करें. <br/><br/>संदीप वाहिदजी, आपसे एक शिकायत है हमारी. रहते-रहते कहाँ अलोत हो जाते हैं ? हम आपको क़ायदे से यहीं सुनना पसंद करते हैं. <br/>शुभकामनाएँ<br/><br/></p> ग़ज़ल को अपनी कृपादृष्टि से नवा…tag:openbooksonline.com,2013-10-01:5170231:Comment:4454522013-10-01T14:22:36.468Zसंदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी'http://openbooksonline.com/profile/SandeipDwivediWahidKashiwasi
<p>ग़ज़ल को अपनी कृपादृष्टि से नवाज़ने और सारगर्भित टिप्पणियों हेतु आप सभी सुधिजनों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ! सादर,</p>
<p>ग़ज़ल को अपनी कृपादृष्टि से नवाज़ने और सारगर्भित टिप्पणियों हेतु आप सभी सुधिजनों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ! सादर,</p> सुन्दर ग़ज़ल आ० संदीप द्विवेदी…tag:openbooksonline.com,2013-10-01:5170231:Comment:4450032013-10-01T09:55:04.848ZDr.Prachi Singhhttp://openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>सुन्दर ग़ज़ल आ० संदीप द्विवेदी जी </p>
<p>सभी अशआर बढ़िया है , पर यह दो शेर ख़ास पसंद आये </p>
<p></p>
<p><span>मछलियाँ तालाब की हैं, क्या पता सागर कहाँ?</span><br/><span>पाठ जिनका है अधूरा, सार की बातें करें..</span></p>
<p></p>
<p><span><span>तर न पाओगे ये वैतरणी हमारे बिन कभी,</span><br/><span>ख़ुद फँसे मझधार में जो, पार की बातें करें</span></span></p>
<p></p>
<p>शुभकामनाएं </p>
<p></p>
<p>सुन्दर ग़ज़ल आ० संदीप द्विवेदी जी </p>
<p>सभी अशआर बढ़िया है , पर यह दो शेर ख़ास पसंद आये </p>
<p></p>
<p><span>मछलियाँ तालाब की हैं, क्या पता सागर कहाँ?</span><br/><span>पाठ जिनका है अधूरा, सार की बातें करें..</span></p>
<p></p>
<p><span><span>तर न पाओगे ये वैतरणी हमारे बिन कभी,</span><br/><span>ख़ुद फँसे मझधार में जो, पार की बातें करें</span></span></p>
<p></p>
<p>शुभकामनाएं </p>
<p></p> बेहतरीन , हकीकत और सियासत से…tag:openbooksonline.com,2013-10-01:5170231:Comment:4452262013-10-01T07:22:12.495Zविजय मिश्रhttp://openbooksonline.com/profile/37jicf27kggmy
बेहतरीन , हकीकत और सियासत से रू ब रु कहीं दिल को खरोंचती बढती है और ज्यूँ ज्यूँ आगे बढती है उसी घाव को और गहरा करती है .मेहरबानी आपकी कि यह खूबसूरत गज़ल हमें मयस्सर हुआ .संदीपजी ,तहेदिल से शुक्रिया<br />
"ज्ञानियों की पूछ हो पर मूढ़ को भूलें नहीं,<br />
वे भी अक्सर मूर्खता में भार की बातें करें;। --- कितनी सही समझ और सोंच , सार्थक रचना .
बेहतरीन , हकीकत और सियासत से रू ब रु कहीं दिल को खरोंचती बढती है और ज्यूँ ज्यूँ आगे बढती है उसी घाव को और गहरा करती है .मेहरबानी आपकी कि यह खूबसूरत गज़ल हमें मयस्सर हुआ .संदीपजी ,तहेदिल से शुक्रिया<br />
"ज्ञानियों की पूछ हो पर मूढ़ को भूलें नहीं,<br />
वे भी अक्सर मूर्खता में भार की बातें करें;। --- कितनी सही समझ और सोंच , सार्थक रचना . वाह भाई वाह कामयाब ग़ज़ल सभी के…tag:openbooksonline.com,2013-10-01:5170231:Comment:4449752013-10-01T05:37:16.350Zअरुन 'अनन्त'http://openbooksonline.com/profile/ArunSharma
<p>वाह भाई वाह कामयाब ग़ज़ल सभी के सभी अशआर दिल को छू गए भाई क्या कहने जबरदस्त ग़ज़ल कही है अपने दिली दाद कुबूल करें.</p>
<p>वाह भाई वाह कामयाब ग़ज़ल सभी के सभी अशआर दिल को छू गए भाई क्या कहने जबरदस्त ग़ज़ल कही है अपने दिली दाद कुबूल करें.</p> बेहतरीन गजल ,बधाई स्वीकारें आ…tag:openbooksonline.com,2013-10-01:5170231:Comment:4451252013-10-01T04:06:25.364Zजितेन्द्र पस्टारियाhttp://openbooksonline.com/profile/JitendraPastariya
<p>बेहतरीन गजल ,बधाई स्वीकारें आदरणीय संदीप जी</p>
<p>बेहतरीन गजल ,बधाई स्वीकारें आदरणीय संदीप जी</p> इन पे यूँ अपनी तिजारत का जुनू…tag:openbooksonline.com,2013-09-30:5170231:Comment:4450202013-09-30T15:33:11.332ZMAHIMA SHREEhttp://openbooksonline.com/profile/MAHIMASHREE
<p>इन पे यूँ अपनी तिजारत का जुनूं तारी हुआ,<br/>लाश के ऊपर खड़े व्यापार की बातें करें;।।4।।</p>
<p><br/>हर धरोहर मिट रही है, ख़ाक हो, उनकी बला,<br/>वे हड़प कर कोष, जीर्णोद्धार की बातें करें; आदरणीय वाहिद जी बहुत दिनों के बाद आपकी गज़ल पढने को मिली .....बेहद उम्दा .. समसामयिक जानदार प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें </p>
<p>इन पे यूँ अपनी तिजारत का जुनूं तारी हुआ,<br/>लाश के ऊपर खड़े व्यापार की बातें करें;।।4।।</p>
<p><br/>हर धरोहर मिट रही है, ख़ाक हो, उनकी बला,<br/>वे हड़प कर कोष, जीर्णोद्धार की बातें करें; आदरणीय वाहिद जी बहुत दिनों के बाद आपकी गज़ल पढने को मिली .....बेहद उम्दा .. समसामयिक जानदार प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकार करें </p> बेहतरीन गज़ल //////////वाह भाई…tag:openbooksonline.com,2013-09-30:5170231:Comment:4446972013-09-30T13:52:52.927Zram shiromani pathakhttp://openbooksonline.com/profile/ramshiromanipathak
<p><span>बेहतरीन गज़ल //////////वाह भाई वाह एक एक शेर लाजवाब //बहुत बहुत बधाई आपको </span></p>
<p><span>बेहतरीन गज़ल //////////वाह भाई वाह एक एक शेर लाजवाब //बहुत बहुत बधाई आपको </span></p> बेहतरीन गज़ल .... हार्दिक बधाई…tag:openbooksonline.com,2013-09-30:5170231:Comment:4448312013-09-30T13:27:13.586ZMeena Pathakhttp://openbooksonline.com/profile/MeenaPathak
<p>बेहतरीन गज़ल .... हार्दिक बधाई स्वीकारें </p>
<p>बेहतरीन गज़ल .... हार्दिक बधाई स्वीकारें </p>