Comments - एकलव्य का अंगूठा - Open Books Online2024-03-28T12:36:26Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A500002&xn_auth=noबहुत सुन्दर वैचारिक अभियक्ति.…tag:openbooksonline.com,2014-01-21:5170231:Comment:5024112014-01-21T05:02:43.169ZDr.Prachi Singhhttp://openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>बहुत सुन्दर वैचारिक अभियक्ति... </p>
<p>ऐतिहासिक बिम्बों के साथ सभ्यताओं की लुप्तता व सांस्कृतिक वैचारिक विकृतियों की डोर थामे आगे बढ़ती यह रचना.. सकारात्मक उद्बोधन बन चेताती भी है </p>
<p>एकलव्य के कटे अंगूठे में अभी भी है प्राण,</p>
<p>अभी भी है छटपटाहट</p>
<p>पुनर्जीवित होने की और</p>
<p>खीचने की प्रत्यंचा.............................बहुत सुन्दर, सुदृढ़ वैचारिक अभिव्यक्ति </p>
<p></p>
<p>इसके वृहत कैनवास के लिए तहे दिल से बधाई आदरणीय नीरज कुमार 'नीर'जी </p>
<p>बहुत सुन्दर वैचारिक अभियक्ति... </p>
<p>ऐतिहासिक बिम्बों के साथ सभ्यताओं की लुप्तता व सांस्कृतिक वैचारिक विकृतियों की डोर थामे आगे बढ़ती यह रचना.. सकारात्मक उद्बोधन बन चेताती भी है </p>
<p>एकलव्य के कटे अंगूठे में अभी भी है प्राण,</p>
<p>अभी भी है छटपटाहट</p>
<p>पुनर्जीवित होने की और</p>
<p>खीचने की प्रत्यंचा.............................बहुत सुन्दर, सुदृढ़ वैचारिक अभिव्यक्ति </p>
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<p>इसके वृहत कैनवास के लिए तहे दिल से बधाई आदरणीय नीरज कुमार 'नीर'जी </p> आ. सौरभ जी ह्रदय से आभार आपका…tag:openbooksonline.com,2014-01-18:5170231:Comment:5011162014-01-18T04:13:43.384ZNeeraj Neerhttp://openbooksonline.com/profile/NeerajKumarNeer
<p>आ. सौरभ जी ह्रदय से आभार आपका, आपने सही कहा , कोई भी विचार हो वह सार्वभौमिक नहीं हो सकता ... इसलिए विचार परक कविता भी इससे अछूती नहीं रहती . आपके प्रोत्साहन के लिए ह्रदय तल से धन्यवाद .. </p>
<p>आ. सौरभ जी ह्रदय से आभार आपका, आपने सही कहा , कोई भी विचार हो वह सार्वभौमिक नहीं हो सकता ... इसलिए विचार परक कविता भी इससे अछूती नहीं रहती . आपके प्रोत्साहन के लिए ह्रदय तल से धन्यवाद .. </p> गिरिराज भंडारी साहब आपका हार्…tag:openbooksonline.com,2014-01-18:5170231:Comment:5011152014-01-18T04:10:09.659ZNeeraj Neerhttp://openbooksonline.com/profile/NeerajKumarNeer
<p>गिरिराज भंडारी साहब आपका हार्दिक आभार. </p>
<p>गिरिराज भंडारी साहब आपका हार्दिक आभार. </p> आदरणीया कुंती मुख़र्जी जी आपका…tag:openbooksonline.com,2014-01-18:5170231:Comment:5009612014-01-18T04:09:42.538ZNeeraj Neerhttp://openbooksonline.com/profile/NeerajKumarNeer
<p>आदरणीया कुंती मुख़र्जी जी आपका हार्दिक धन्यवाद ..</p>
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<p>आदरणीया कुंती मुख़र्जी जी आपका हार्दिक धन्यवाद ..</p>
<p></p> आ . शिज्जू जी आपका धन्यवाद..
tag:openbooksonline.com,2014-01-18:5170231:Comment:5009602014-01-18T04:09:15.874ZNeeraj Neerhttp://openbooksonline.com/profile/NeerajKumarNeer
<p>आ . शिज्जू जी आपका धन्यवाद..</p>
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<p>आ . शिज्जू जी आपका धन्यवाद..</p>
<p></p> विचारपरक कविता की प्रस्तुति क…tag:openbooksonline.com,2014-01-16:5170231:Comment:5003912014-01-16T18:25:02.131ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>विचारपरक कविता की प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद, नीरजजी. <br></br>वैचारिक कविताओं के साथ सर्वसमाहिता को लेकर सदा से संशय रहा है. यह भी कि रचनाकार या फिर पाठक पर एकांगी होने का दोष लग जाता है. कारण कि उथल-पुथल का दौर अनदेखा या अनसुना ही नहीं रहा है, बिना संदेह विकृत भी हुआ है. आखिर मोहनजोदड़ों का ’सच’ वही क्यों हो जो आरोपित है ? इसी कारण रिसाव में एकलव्य का अँगूठा असंवेदन के हत्थे शिकार दिखा. भावनाएँ अपनायी हुई हों तो अभिव्यक्ति का मूलतथ्य विन्दुवत नहीं रह जाता है. यही समस्या फिर सिर चढ़ जाती है…</p>
<p>विचारपरक कविता की प्रस्तुति के लिए हार्दिक धन्यवाद, नीरजजी. <br/>वैचारिक कविताओं के साथ सर्वसमाहिता को लेकर सदा से संशय रहा है. यह भी कि रचनाकार या फिर पाठक पर एकांगी होने का दोष लग जाता है. कारण कि उथल-पुथल का दौर अनदेखा या अनसुना ही नहीं रहा है, बिना संदेह विकृत भी हुआ है. आखिर मोहनजोदड़ों का ’सच’ वही क्यों हो जो आरोपित है ? इसी कारण रिसाव में एकलव्य का अँगूठा असंवेदन के हत्थे शिकार दिखा. भावनाएँ अपनायी हुई हों तो अभिव्यक्ति का मूलतथ्य विन्दुवत नहीं रह जाता है. यही समस्या फिर सिर चढ़ जाती है और भूमि के पुत्र-पुत्रियों की दशा पर यही कारण है सभी ठग लोमड़-रोना करते दिखते हैं. फिर जो सोने की खानों में या कुबेरी अथवा आसुरी परंपरा को जैसी आग लगनी थी लग नहीं पाती है. <br/><br/>वैसे, तथ्यात्मकता को परे रखें तो आपकी इस कविता के कथ्य ने गहरे प्रभावित किया है. यह आश्वस्ति सबल हुई है कि आप बड़े कैनवास की रचनाओं हेतु तैयार हैं.</p>
<p>शुभेच्छाएँ</p>
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<p>हाँ, खान स्त्रीलिंग हैं. <br/><br/><br/></p> आदरणीय नीरज भाई ,
एक दिन एकलव…tag:openbooksonline.com,2014-01-16:5170231:Comment:5004552014-01-16T16:56:53.536Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय नीरज भाई ,</p>
<p>एक दिन एकलव्य का अंगूठा</p>
<p>जुड़ जाएगा और</p>
<p>वह वाण पर रखकर तीर</p>
<p>उसी अंगूठे से खीचेगा प्रत्यंचा</p>
<p>और भेदेगा</p>
<p>द्रोणाचार्य के आत्माभिमान को</p>
<p>लग जाएगी आग सोने के खानों में. ----------- बहुत खूबसूरत बात कही भाई जी , इसी परिवर्तन का इंतिज़ार है !! आपको बहुत बधाई ॥</p>
<p>आदरणीय नीरज भाई ,</p>
<p>एक दिन एकलव्य का अंगूठा</p>
<p>जुड़ जाएगा और</p>
<p>वह वाण पर रखकर तीर</p>
<p>उसी अंगूठे से खीचेगा प्रत्यंचा</p>
<p>और भेदेगा</p>
<p>द्रोणाचार्य के आत्माभिमान को</p>
<p>लग जाएगी आग सोने के खानों में. ----------- बहुत खूबसूरत बात कही भाई जी , इसी परिवर्तन का इंतिज़ार है !! आपको बहुत बधाई ॥</p> बहुत बहुत सुंदर रचना नीरज कुम…tag:openbooksonline.com,2014-01-16:5170231:Comment:5004442014-01-16T15:51:54.655Zcoontee mukerjihttp://openbooksonline.com/profile/coonteemukerji
<p>बहुत बहुत सुंदर रचना नीरज कुमार जी .हार्दिक बधाई.</p>
<p>बहुत बहुत सुंदर रचना नीरज कुमार जी .हार्दिक बधाई.</p> बहुत अच्छी रचना है आदरणीय नीर…tag:openbooksonline.com,2014-01-16:5170231:Comment:5003512014-01-16T15:08:08.628Zशिज्जु "शकूर"http://openbooksonline.com/profile/ShijjuS
<p>बहुत अच्छी रचना है आदरणीय नीरज बधाई आपको</p>
<p>बहुत अच्छी रचना है आदरणीय नीरज बधाई आपको</p> आपका आभार आ. अन्नपूर्णा जी .
tag:openbooksonline.com,2014-01-16:5170231:Comment:5003472014-01-16T14:24:53.719ZNeeraj Neerhttp://openbooksonline.com/profile/NeerajKumarNeer
<p>आपका आभार आ. अन्नपूर्णा जी .</p>
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<p>आपका आभार आ. अन्नपूर्णा जी .</p>
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