Comments - तरही ग़ज़ल -वंदना - Open Books Online2024-03-29T08:05:24Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A506322&xn_auth=noआप दोनों विद्वानों की बात से…tag:openbooksonline.com,2014-03-09:5170231:Comment:5192672014-03-09T02:26:23.812Zvandanahttp://openbooksonline.com/profile/vandana956
<p>आप दोनों विद्वानों की बात से मैं तो यही समझ पायी हूँ कि उर्दू बाहुल्य शब्दों का प्रयोग करते समय से , सीन और स्वाद सीखना ज्यादा अच्छा है और हिंदी में अप्रचलित उर्दू शब्दों का प्रयोग खटकता ही है , सामान्य प्रचलित शब्दों के प्रयोग की बात अलग है|</p>
<p>ऐसे में आदरणीय राणा सर आपके नज़रिए से मेरे प्रश्न का उत्तर क्या होगा कि </p>
<p> अगर इस प्रकार की ग़ज़ल में किसी शेर में उला में ज़ से खत्म होने वाला शब्द रहता तो क्या कोई दोष माना जाएगा जैसे- </p>
<p>हम भला बढ़ते ही कैसे रहता है…</p>
<p>आप दोनों विद्वानों की बात से मैं तो यही समझ पायी हूँ कि उर्दू बाहुल्य शब्दों का प्रयोग करते समय से , सीन और स्वाद सीखना ज्यादा अच्छा है और हिंदी में अप्रचलित उर्दू शब्दों का प्रयोग खटकता ही है , सामान्य प्रचलित शब्दों के प्रयोग की बात अलग है|</p>
<p>ऐसे में आदरणीय राणा सर आपके नज़रिए से मेरे प्रश्न का उत्तर क्या होगा कि </p>
<p> अगर इस प्रकार की ग़ज़ल में किसी शेर में उला में ज़ से खत्म होने वाला शब्द रहता तो क्या कोई दोष माना जाएगा जैसे- </p>
<p>हम भला बढ़ते ही कैसे रहता है ये <strong>इम्तियाज़ </strong></p>
<p>"माँगने वाला गदा है सदका माँगे या खिराज"</p> हाँ, राणा भाई, ऐसी चर्चा को स…tag:openbooksonline.com,2014-03-07:5170231:Comment:5186552014-03-07T18:14:03.064ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>हाँ, राणा भाई, ऐसी चर्चा को समाप्त हमने भी माना है.</p>
<p>यदि कोई ग़ज़लकार उर्दू ग़ज़ल को देवनागरी लिपि में लिखता है तो आपकी बात सही हो सकती है. लेकिन उर्दू के, फिर, कई शब्द सही ढंग से नहीं लिखे जा सकते हैं. यह विवशता ऐसे ग़ज़लकारों के पास सदा बनी रहेगी.</p>
<p>परन्तु, मैं ऐसे रचनाकारों की बात कर रहा हूँ जो उर्दू वर्णमाला को जानते ही नहीं हैं, किन्तु विधा को अपनाना चाहते हैं. उनके लिए उर्दू वर्णमाला के <strong>ज</strong> और <strong>ज़</strong> ही क्यों, <strong>से</strong> और…</p>
<p>हाँ, राणा भाई, ऐसी चर्चा को समाप्त हमने भी माना है.</p>
<p>यदि कोई ग़ज़लकार उर्दू ग़ज़ल को देवनागरी लिपि में लिखता है तो आपकी बात सही हो सकती है. लेकिन उर्दू के, फिर, कई शब्द सही ढंग से नहीं लिखे जा सकते हैं. यह विवशता ऐसे ग़ज़लकारों के पास सदा बनी रहेगी.</p>
<p>परन्तु, मैं ऐसे रचनाकारों की बात कर रहा हूँ जो उर्दू वर्णमाला को जानते ही नहीं हैं, किन्तु विधा को अपनाना चाहते हैं. उनके लिए उर्दू वर्णमाला के <strong>ज</strong> और <strong>ज़</strong> ही क्यों, <strong>से</strong> और <strong>स्वाद</strong> में अंतर की भी दविधा बनी रहेगी. क्यों कि दोनों के उच्चारण लगभग एक होते हैं और हिन्दी में <strong>स</strong> ही लिखे जाते हैं. किन्तु, उर्दू में ये अलग-अलग अक्षर होते हैं. ऐसी कई समस्याएँ हैं.</p>
<p>इस संदर्भ में गलती कैसे और कहाँ से हो गयी ?</p>
<p>यानि विधा को जानने की जगह पहले एक भाषा को जानना बहुत आवश्यक हो जाता है. यह आवश्यक न बने. यही मेरा कहना है</p>
<p>शुभ-शुभ..</p>
<p></p> आदरणीय सौरभ जी आपने उस शख्सिय…tag:openbooksonline.com,2014-03-07:5170231:Comment:5187312014-03-07T18:00:14.700ZRana Pratap Singhhttp://openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh
<p>आदरणीय सौरभ जी आपने उस शख्सियत का नाम ले लिया जिसके नाम के बाद चर्चा ख़त्म हो जाती है| मैं अपनी तरफ से इस चर्चा को समाप्त करते हुए एहतेराम साहब के दो कथन कोट करना चाहूंगा|</p>
<p>१. यदि आप कोई गलती कर रहे हैं और जानकार भी कर रहे हैं तो यह प्रयोगवादिता तक तो ठीक है परन्तु जब कोई आपको गलत कहेगा तो आपको मानना पडेगा|</p>
<p>२. आप ऐसा काम कीजिये कि जानकार लोग समझें कि फलां को यह पता है| वरना जो जानकार नहीं है उसके सामने तो सब कुछ ठीक है पर जानकार लोग तो यही समझेंगे कि इसको यह तथ्य पता ही नहीं…</p>
<p>आदरणीय सौरभ जी आपने उस शख्सियत का नाम ले लिया जिसके नाम के बाद चर्चा ख़त्म हो जाती है| मैं अपनी तरफ से इस चर्चा को समाप्त करते हुए एहतेराम साहब के दो कथन कोट करना चाहूंगा|</p>
<p>१. यदि आप कोई गलती कर रहे हैं और जानकार भी कर रहे हैं तो यह प्रयोगवादिता तक तो ठीक है परन्तु जब कोई आपको गलत कहेगा तो आपको मानना पडेगा|</p>
<p>२. आप ऐसा काम कीजिये कि जानकार लोग समझें कि फलां को यह पता है| वरना जो जानकार नहीं है उसके सामने तो सब कुछ ठीक है पर जानकार लोग तो यही समझेंगे कि इसको यह तथ्य पता ही नहीं है|</p>
<p></p>
<p>शुभ शुभ </p>
<p></p> राणा भाई की टिप्पणी के सापेक्…tag:openbooksonline.com,2014-03-07:5170231:Comment:5188462014-03-07T17:26:22.254ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>राणा भाई की टिप्पणी के सापेक्ष यही कहना है कि यह तथ्य और ऐसी बातें अब इस स्तर पर आ चुकी हैं कि भाषा और विधा में हमें क्या स्वीकारना और सीखना है, रचनाकारों में इसकी समझ विकसित होने लगी है.</p>
<p></p>
<p>इस तथ्य पर वरिष्ठ शाइर एहतराम इस्लाम के कहे के सार को मैं सादर उद्धृत करना चाहूँगा.</p>
<p></p>
<p>उनके अनुसार हिन्दी भाषा की रचनाएँ देवनागरी लिपि की वर्णमाला के अनुसार लिखी और समझी जाती हैं. हिन्दी वर्णमाला में उतने ही अक्षर हैं जो संस्कृत से स्वाकार्य हुये हैं. उन्होंने आगे कहा है कि…</p>
<p>राणा भाई की टिप्पणी के सापेक्ष यही कहना है कि यह तथ्य और ऐसी बातें अब इस स्तर पर आ चुकी हैं कि भाषा और विधा में हमें क्या स्वीकारना और सीखना है, रचनाकारों में इसकी समझ विकसित होने लगी है.</p>
<p></p>
<p>इस तथ्य पर वरिष्ठ शाइर एहतराम इस्लाम के कहे के सार को मैं सादर उद्धृत करना चाहूँगा.</p>
<p></p>
<p>उनके अनुसार हिन्दी भाषा की रचनाएँ देवनागरी लिपि की वर्णमाला के अनुसार लिखी और समझी जाती हैं. हिन्दी वर्णमाला में उतने ही अक्षर हैं जो संस्कृत से स्वाकार्य हुये हैं. उन्होंने आगे कहा है कि उन्होंने <strong>आदर्श</strong> और <strong>संघर्ष</strong> शब्दों को काफ़िया के रूप में एक साथ लिया है. जबकि आज हिन्दी भाषाभाषी अधिकतर रचनाकार ऐसे शब्दों को एक काफ़िया में साथ नहीं रखना चाहेंगे.</p>
<p>ज़नाब एहतराम इस्लाम यहाँ तक कहते हैं कि अन्य भाषा का कोई शब्द जब दूसरी भाषा में अपनाया जाता है तो वह जन-मानस के उच्चारण प्रकृति के अनुसार स्वरूप अपना लेता है. इसके कई उदाहरण हैं. इसके लिए पहली भाषा के लोगों द्वारा आग्रही नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसा परिवर्तन मात्र अपनाये गये या परिवर्तित हुये शब्दों की प्रकृति के कारण नहीं होता. इसके अन्य कई कारण प्रभावी होते हैं.</p>
<p>जनाब एहराम इस्लाम का यहाँ तक कहना है कि उर्दू की वर्णमाला के अनुसार अक्षरों के हिज्जे के अपने विधान हो सकते हैं और साधे जा सकते हैं. लेकिन इसके लिए अपने मंतव्य को आरोपित करना कभी उचित नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसी ज़िद अक्सर इसलिए ज़ोर पकड़ लेती है कि उर्दू और हिन्दी के भाषाभाषी बहुत ही निकट के लोग हैं. लेकिन कोई <strong>ज</strong> और <strong>ज़</strong> के शब्दो का काफ़िया लेता है तो कोई ग़लत नहीं है.</p>
<p><br/>अतः, यह स्पष्ट होता है कि जो कुछ राणा भाई ने अपनी टिप्पणी में कहा है वह उनका व्यक्तिगत मंतव्य हो सकता है. और वे स्वयं उसका अनुपालन कर सकते हैं. लेकिन इसके लिए अपने मंतव्य आरोपित करना उचित नहीं होगा. इन विन्दुओं पर सहमत होना न होना व्यक्तिगत बातें हैं. और <strong>मैं यह समझता हूँ कि हम हिन्दी भाषा के वर्णमाला के अनुसार ही हिज्जे और वर्णों का निर्धारण करते हैं, क्यों कि हम अक्सर हिन्दी वर्णमाला के अनुसार ही रचना करते हैं.</strong></p>
<p></p>
<p>अलबत्ता, उर्दू शब्दों की अक्षरियों को हम आवश्यकतानुसार कतिपय अक्षरों के नीचे नुख़्ता लगा कर साध सकते हैं.</p>
<p></p> माफ़ कीजिएगा मैं यहाँ पर आदरणी…tag:openbooksonline.com,2014-03-07:5170231:Comment:5185932014-03-07T15:31:11.298ZRana Pratap Singhhttp://openbooksonline.com/profile/RanaPratapSingh
<p>माफ़ कीजिएगा मैं यहाँ पर आदरणीय सौरभ जी की बात से बिलकुल सहमत नहीं हूँ| ज और ज़ में निश्चित रूप से अंतर है और यह लिखावट में भी स्पष्ट है, भले ही हिंदी वर्णमाला में ज़ जैसा कोई हर्फ़ न हो| मैं पहले भी कहता रहा हूँ की ग़ज़ल लिखने की नहीं सुनने की विधा है(भले ही ग़ज़ल आजकल लिखित रूप में ज्यादा लोकप्रिय हो रही हो) और हम जिन अलफ़ाज़ को उच्चारण में जैसा बरतते हैं काफिये/बहर के रूप में भी उन्हें वैसा ही निभाना आवश्यक हो जाता है| उदाहरण के लिए तोहफा हम लिखते तोहफा जैसा हैं पर निभाते तुहफ जैसा है| चेहरा हम…</p>
<p>माफ़ कीजिएगा मैं यहाँ पर आदरणीय सौरभ जी की बात से बिलकुल सहमत नहीं हूँ| ज और ज़ में निश्चित रूप से अंतर है और यह लिखावट में भी स्पष्ट है, भले ही हिंदी वर्णमाला में ज़ जैसा कोई हर्फ़ न हो| मैं पहले भी कहता रहा हूँ की ग़ज़ल लिखने की नहीं सुनने की विधा है(भले ही ग़ज़ल आजकल लिखित रूप में ज्यादा लोकप्रिय हो रही हो) और हम जिन अलफ़ाज़ को उच्चारण में जैसा बरतते हैं काफिये/बहर के रूप में भी उन्हें वैसा ही निभाना आवश्यक हो जाता है| उदाहरण के लिए तोहफा हम लिखते तोहफा जैसा हैं पर निभाते तुहफ जैसा है| चेहरा हम लिखते चेहरा हैं पर निभाते चहरा हैं| वैसे भी ज़ तो लिखा ही जा सकता है, उर्दू भाषा बहुत नफासतपसंद है, हमें इसकी मुलामियत के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए| </p>
<p>वैसे भी मेरी व्यक्तिगत राय है कि जब हम दूसरी भाषा के शब्दों का प्रयोग कर रहे हों तो उनके साथ न्याय करना आवश्यक है, तब और भी जब हमें उनका सही प्रयोग पता हो अन्यथा अराजकता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है| </p>
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<p>सादर </p> आदरणीय सौरभ सर और आदरणीया प्र…tag:openbooksonline.com,2014-02-12:5170231:Comment:5111762014-02-12T16:00:58.964Zvandanahttp://openbooksonline.com/profile/vandana956
<p>आदरणीय सौरभ सर और आदरणीया प्राची जी बहुत २ आभार आपका मेरी हौसलाअफजाई करने के लिए देरी से नोटिस करने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ </p>
<p>आदरणीय सौरभ सर और आदरणीया प्राची जी बहुत २ आभार आपका मेरी हौसलाअफजाई करने के लिए देरी से नोटिस करने के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ </p> खींचकर फिर से लकीरें तय करो त…tag:openbooksonline.com,2014-02-05:5170231:Comment:5083422014-02-05T17:41:57.853ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>खींचकर फिर से लकीरें तय करो तुम दायरे</p>
<p>मैं निकल जाऊँगी माथे ओढ़कर रस्मो-रिवाज ..</p>
<p>अद्भुत !</p>
<p>मैं दंग हूँ वन्दनाजी इस शेर के इस आसानी से हो जाने पर.. बहुत ही ऊँचे मेयार का शेर है. बहुत-बहुत बधाई ..ढेर सारी दाद इस समूची ग़ज़ल पर ..</p>
<p></p>
<p></p>
<p>आपने अपनी टिप्पणी में एक प्रश्न किया है. उसका उत्तर शायद आपको व्यक्तिगत रूप से मिल गया हो.</p>
<p>मैं प्रतिप्रश्न रखता हूँ, क्या <strong>ज़</strong> हिन्दी वर्णमाला का अक्षर है ? क्या वर्णमाला के अनुसार <strong>ज</strong> और…</p>
<p>खींचकर फिर से लकीरें तय करो तुम दायरे</p>
<p>मैं निकल जाऊँगी माथे ओढ़कर रस्मो-रिवाज ..</p>
<p>अद्भुत !</p>
<p>मैं दंग हूँ वन्दनाजी इस शेर के इस आसानी से हो जाने पर.. बहुत ही ऊँचे मेयार का शेर है. बहुत-बहुत बधाई ..ढेर सारी दाद इस समूची ग़ज़ल पर ..</p>
<p></p>
<p></p>
<p>आपने अपनी टिप्पणी में एक प्रश्न किया है. उसका उत्तर शायद आपको व्यक्तिगत रूप से मिल गया हो.</p>
<p>मैं प्रतिप्रश्न रखता हूँ, क्या <strong>ज़</strong> हिन्दी वर्णमाला का अक्षर है ? क्या वर्णमाला के अनुसार <strong>ज</strong> और <strong>ज़</strong> में अंतर है ? नहीं.</p>
<p>यदि हम हिन्दी भाषा जानते हैं और इसी भाषा में ग़ज़ल विधा पर काम करते हैं तो हम इसीके वर्णमाला को संतुष्ट करें.</p>
<p>ग़ज़ल को हम एक काव्य विधा के रूप में जानते हैं. ऐसे ही जानें, न कि किसी भाषा के प्रति अनावश्यक आग्रही कारण के रूप में.</p>
<p>विश्वास है, मैं स्पष्ट कर पाया. </p>
<p></p> बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आ० वन…tag:openbooksonline.com,2014-02-05:5170231:Comment:5077932014-02-05T03:48:19.958ZDr.Prachi Singhhttp://openbooksonline.com/profile/DrPrachiSingh376
<p>बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आ० वन्दना जी </p>
<p></p>
<p>सभी अशआर बहुत पसंद आये...पर इन दोनों का तो ज़वाब नहीं </p>
<p>कोई तुझसा होगा भी क्या इस जहाँ में कारसाज</p>
<p>डर कबूतर को सिखाने रच दिए हैं तूने बाज</p>
<p></p>
<p>खींचकर फिर से लकीरें तय करो तुम दायरे</p>
<p>मैं निकल जाऊँगी माथे ओढ़कर रस्मो-रिवाज</p>
<p></p>
<p>गिरह का अंदाज़ भी बहुत प्यारा लगा </p>
<p></p>
<p>बहुत बहुत बधाई </p>
<p>बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आ० वन्दना जी </p>
<p></p>
<p>सभी अशआर बहुत पसंद आये...पर इन दोनों का तो ज़वाब नहीं </p>
<p>कोई तुझसा होगा भी क्या इस जहाँ में कारसाज</p>
<p>डर कबूतर को सिखाने रच दिए हैं तूने बाज</p>
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<p>खींचकर फिर से लकीरें तय करो तुम दायरे</p>
<p>मैं निकल जाऊँगी माथे ओढ़कर रस्मो-रिवाज</p>
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<p>गिरह का अंदाज़ भी बहुत प्यारा लगा </p>
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<p>बहुत बहुत बधाई </p> बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द…tag:openbooksonline.com,2014-02-04:5170231:Comment:5078152014-02-04T00:11:14.945Zvandanahttp://openbooksonline.com/profile/vandana956
<p>बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र जी आदरणीया सरिता जी आदरणीया कुन्ती जी आदरणीय मनोज जी आदरणीय बृजेश जी और आदरणीय अखिलेश जी आप सभी ने अपना अमूल्य समय देकर मेरा उत्साह वर्धन किया |<a href="http://www.openbooksonline.com/profile/JitendraPastariya" class="fn url"><br/></a></p>
<p>बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र जी आदरणीया सरिता जी आदरणीया कुन्ती जी आदरणीय मनोज जी आदरणीय बृजेश जी और आदरणीय अखिलेश जी आप सभी ने अपना अमूल्य समय देकर मेरा उत्साह वर्धन किया |<a href="http://www.openbooksonline.com/profile/JitendraPastariya" class="fn url"><br/></a></p> मैं निकल जाऊँगी माथे ओढ़कर रस्…tag:openbooksonline.com,2014-02-03:5170231:Comment:5076462014-02-03T14:16:26.187Zअखिलेश कृष्ण श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/1j78r4oio7ulh
<p><span>मैं निकल जाऊँगी माथे ओढ़कर रस्मो-रिवाज</span></p>
<p>अच्छी गज़ल हुई हार्दिक बधाई आदरणीया वंदनाजी ।</p>
<p></p>
<p><span>मैं निकल जाऊँगी माथे ओढ़कर रस्मो-रिवाज</span></p>
<p>अच्छी गज़ल हुई हार्दिक बधाई आदरणीया वंदनाजी ।</p>
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