Comments - ग़ज़ल - Open Books Online2024-03-28T12:48:12Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A546095&xn_auth=noआदरणीय राणा प्रताप सिंह जी,
म…tag:openbooksonline.com,2017-09-23:5170231:Comment:8835052017-09-23T16:18:42.666ZSALIM RAZA REWAhttp://openbooksonline.com/profile/SALIMRAZA
आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी,<br />
मतले से मक़्ते तक इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिली मुबारक़बाद,
आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी,<br />
मतले से मक़्ते तक इस ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिली मुबारक़बाद, . मिलाकर हाँथ अक्सर मुस्कुरात…tag:openbooksonline.com,2014-07-10:5170231:Comment:5572942014-07-10T11:11:04.593ZMadan Mohan saxenahttp://openbooksonline.com/profile/MadanMohansaxena
<p>.<br/> मिलाकर हाँथ अक्सर मुस्कुराते हैं सियासतदाँ<br/>
छिपा क्या मुस्कराहट के कभी भीतर नहीं देखा</p>
<p>अच्छी गज़ल के लिए बधाई।</p>
<p>.<br/> मिलाकर हाँथ अक्सर मुस्कुराते हैं सियासतदाँ<br/>
छिपा क्या मुस्कराहट के कभी भीतर नहीं देखा</p>
<p>अच्छी गज़ल के लिए बधाई।</p> शानदार ....हालात को एक नई कसौ…tag:openbooksonline.com,2014-06-30:5170231:Comment:5545372014-06-30T12:22:53.059ZNilesh Shevgaonkarhttp://openbooksonline.com/profile/NileshShevgaonkar
<p>शानदार ....हालात को एक नई कसौटी पर कसती हुई ग़ज़ल के लिए बधाई </p>
<p>शानदार ....हालात को एक नई कसौटी पर कसती हुई ग़ज़ल के लिए बधाई </p> //उन्हें गर्मी का अब होने लगव…tag:openbooksonline.com,2014-06-29:5170231:Comment:5541552014-06-29T14:10:58.113ZEr. Ganesh Jee "Bagi"http://openbooksonline.com/profile/GaneshJee
<p>//<span>उन्हें गर्मी का अब होने <strong><span style="text-decoration: underline;">लगवा</span></strong> अहसास शायद कुछ</span><br/> <span>कई दिन हो गए उनको लिए मफलर नहीं देखा // टंकण त्रुटि है शायद। </span></p>
<p></p>
<p><span>//<span>फ़क़त सुनकर तआर्रुफ़ हो गया कितना परेशां वो </span><br/> <span>अभी तो उसने मेरा कोई भी तेवर नहीं देखा // बहुत ही खूबसूरत शेर हुआ है।</span></span></p>
<br />
कुल मिलाकर एक अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, राणा जी दाद कुबूल करें।
<p>//<span>उन्हें गर्मी का अब होने <strong><span style="text-decoration: underline;">लगवा</span></strong> अहसास शायद कुछ</span><br/> <span>कई दिन हो गए उनको लिए मफलर नहीं देखा // टंकण त्रुटि है शायद। </span></p>
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<p><span>//<span>फ़क़त सुनकर तआर्रुफ़ हो गया कितना परेशां वो </span><br/> <span>अभी तो उसने मेरा कोई भी तेवर नहीं देखा // बहुत ही खूबसूरत शेर हुआ है।</span></span></p>
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कुल मिलाकर एक अच्छी ग़ज़ल प्रस्तुत हुई है, राणा जी दाद कुबूल करें। खूबसूरत उम्दा गज़ल के लिए आपको…tag:openbooksonline.com,2014-06-16:5170231:Comment:5492512014-06-16T14:23:26.018Zकल्पना रामानीhttp://openbooksonline.com/profile/0qbqxqnenfmpi
<p>खूबसूरत उम्दा गज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई। अंतिम शेर बहुत पसंद आया</p>
<p>खूबसूरत उम्दा गज़ल के लिए आपको हार्दिक बधाई। अंतिम शेर बहुत पसंद आया</p> सोचते सोचते इस मुकाम पर पहुंच…tag:openbooksonline.com,2014-06-11:5170231:Comment:5475452014-06-11T14:56:25.876ZZidhttp://openbooksonline.com/profile/Zid
<p>सोचते सोचते इस मुकाम पर पहुंचे हो <br/>के ज़िद तूने अबतक पुख्ता इंसा नहीं देखा</p>
<p></p>
<p>सोचते सोचते इस मुकाम पर पहुंचे हो <br/>के ज़िद तूने अबतक पुख्ता इंसा नहीं देखा</p>
<p></p> हर शेर आजकी विसंगतियों को बखू…tag:openbooksonline.com,2014-06-09:5170231:Comment:5469032014-06-09T13:43:48.590ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>हर शेर आजकी विसंगतियों को बखूबी साझा करता हुआ है. बदायूँ वाला शेर एकदम से मौजूं होने कारण लाजिमी है ध्यान खींचता है. अलबत्ता, बिम्बात्मक तो मफ़लर और जैसलमेर वाले शेर हुए हैं. ’तुझसे’ जैसे सर्वनाम के साथ संज्ञा ’अब्र’ को निभा जाना एकदम से मोह गया. </p>
<p>इस शानदार ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकारें.</p>
<p></p>
<p>हर शेर आजकी विसंगतियों को बखूबी साझा करता हुआ है. बदायूँ वाला शेर एकदम से मौजूं होने कारण लाजिमी है ध्यान खींचता है. अलबत्ता, बिम्बात्मक तो मफ़लर और जैसलमेर वाले शेर हुए हैं. ’तुझसे’ जैसे सर्वनाम के साथ संज्ञा ’अब्र’ को निभा जाना एकदम से मोह गया. </p>
<p>इस शानदार ग़ज़ल के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकारें.</p>
<p></p> सड़क पर आ गई थी पूरी दिल्ली एक…tag:openbooksonline.com,2014-06-08:5170231:Comment:5471162014-06-08T22:55:06.629Zवीनस केसरीhttp://openbooksonline.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>सड़क पर आ गई थी पूरी दिल्ली एक दिन लेकिन<br/> बदायूं को तो अब तक मैंने सड़कों पर नहीं देखा ...</p>
<p>सड़क पर आ गई थी पूरी दिल्ली एक दिन लेकिन<br/> बदायूं को तो अब तक मैंने सड़कों पर नहीं देखा ...</p> वाह - वाह - वाह - वाह........…tag:openbooksonline.com,2014-06-08:5170231:Comment:5469442014-06-08T17:23:33.539ZVISHAAL CHARCHCHIThttp://openbooksonline.com/profile/VISHAALCHARCHCHIT
<p>वाह - वाह - वाह - वाह........बेहद उम्दा गजल हुई है भाई.... खासकर ये शेर तो कमाल हो गया.........<br/><br/></p>
<p>अभी तो बाबुओं ने ही उसे दौड़ा के रक्खा है <br/>अभी तो उसने ढंग का एक भी अफसर नहीं देखा</p>
<p>वाह - वाह - वाह - वाह........बेहद उम्दा गजल हुई है भाई.... खासकर ये शेर तो कमाल हो गया.........<br/><br/></p>
<p>अभी तो बाबुओं ने ही उसे दौड़ा के रक्खा है <br/>अभी तो उसने ढंग का एक भी अफसर नहीं देखा</p> हरिक शेर उम्दा है यथार्थ को ख…tag:openbooksonline.com,2014-06-08:5170231:Comment:5469172014-06-08T02:40:44.953Zumesh katarahttp://openbooksonline.com/profile/umeshkatara437
<p>हरिक शेर उम्दा है यथार्थ को खींचती गजल है वाहहहहहहहहहहहहहहहह हार्दिक अभिनंदन </p>
<p>हरिक शेर उम्दा है यथार्थ को खींचती गजल है वाहहहहहहहहहहहहहहहह हार्दिक अभिनंदन </p>