Comments - माना होता खुदा को एक हमने - Open Books Online2024-03-29T10:35:45Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A630699&xn_auth=noआदरणीय सौरभ पांड़े जी हार्दिक…tag:openbooksonline.com,2015-03-18:5170231:Comment:6317502015-03-18T03:11:19.204ZNazeelhttp://openbooksonline.com/profile/NBNazeel
आदरणीय सौरभ पांड़े जी हार्दिक आभार. गुणीजनों की सलाहानुसार मैं इसको ठीक करने की कोशिश कर रहा हूं.
आदरणीय सौरभ पांड़े जी हार्दिक आभार. गुणीजनों की सलाहानुसार मैं इसको ठीक करने की कोशिश कर रहा हूं. आप ग़ज़ल पर मिले सुझाव पर ध्यान…tag:openbooksonline.com,2015-03-18:5170231:Comment:6316582015-03-18T00:29:04.155ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आप ग़ज़ल पर मिले सुझाव पर ध्यान दें.</p>
<p>शुभेच्छाएँ <br/><br/></p>
<p>आप ग़ज़ल पर मिले सुझाव पर ध्यान दें.</p>
<p>शुभेच्छाएँ <br/><br/></p> आदरणीय निर्मल नदीम जी बहुत ब…tag:openbooksonline.com,2015-03-17:5170231:Comment:6315392015-03-17T14:21:21.624ZNazeelhttp://openbooksonline.com/profile/NBNazeel
<p>आदरणीय निर्मल नदीम जी बहुत बहुत धन्यवाद गलती में ध्यान दिलवाने के लिए। ये अहसास हो गया है मुझको इसको सुधारने कोशिश रहा हूँ </p>
<p>आदरणीय निर्मल नदीम जी बहुत बहुत धन्यवाद गलती में ध्यान दिलवाने के लिए। ये अहसास हो गया है मुझको इसको सुधारने कोशिश रहा हूँ </p> Muafi chahta hu janab. ghazal…tag:openbooksonline.com,2015-03-17:5170231:Comment:6317182015-03-17T10:23:08.808ZNirmal Nadeemhttp://openbooksonline.com/profile/NirmalNadeem
<p>Muafi chahta hu janab. ghazal jo bhi kahi hai aapne wo khayaal to bahut khoobsoorat hai lekin ye bahr maine kahi nhi dekhi. shukriya.</p>
<p>Muafi chahta hu janab. ghazal jo bhi kahi hai aapne wo khayaal to bahut khoobsoorat hai lekin ye bahr maine kahi nhi dekhi. shukriya.</p> बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय डॉ…tag:openbooksonline.com,2015-03-16:5170231:Comment:6314372015-03-16T14:27:19.917ZNazeelhttp://openbooksonline.com/profile/NBNazeel
<p>बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी और आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी.. जो कुछ तकनीकी त्रुटि है वो पता चल गई है उसको सुधारने की कोशिश कर रहा हूँ </p>
<p>बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी और आदरणीय हरी प्रकाश दुबे जी.. जो कुछ तकनीकी त्रुटि है वो पता चल गई है उसको सुधारने की कोशिश कर रहा हूँ </p> आ. नजील भाई सुन्दर प्रस्तुति…tag:openbooksonline.com,2015-03-16:5170231:Comment:6314332015-03-16T14:15:02.845ZHari Prakash Dubeyhttp://openbooksonline.com/profile/HariPrakashDubey
<p><span> आ. नजील भाई सुन्दर प्रस्तुति है , तकनीकी पक्ष ज्यादा मैं भी नहीं जानता , विद्वजनो ने कह ही दिया है , हार्दिक बधाई आपको ! </span></p>
<p><span> आ. नजील भाई सुन्दर प्रस्तुति है , तकनीकी पक्ष ज्यादा मैं भी नहीं जानता , विद्वजनो ने कह ही दिया है , हार्दिक बधाई आपको ! </span></p> भाई नजील गजल तो आपने खूब कही…tag:openbooksonline.com,2015-03-16:5170231:Comment:6311562015-03-16T14:11:10.273Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>भाई नजील गजल तो आपने खूब कही पर ---- भंडारी जीने कुछ कहा . सादर .</p>
<p>भाई नजील गजल तो आपने खूब कही पर ---- भंडारी जीने कुछ कहा . सादर .</p> हौंसला आफजाई के लिए तहे -दिल…tag:openbooksonline.com,2015-03-16:5170231:Comment:6312282015-03-16T11:51:31.482ZNazeelhttp://openbooksonline.com/profile/NBNazeel
<p>हौंसला आफजाई के लिए तहे -दिल से शुक्रिया आदरणीय भाई श्याम मठपाल जी … </p>
<p>हौंसला आफजाई के लिए तहे -दिल से शुक्रिया आदरणीय भाई श्याम मठपाल जी … </p> Aadarniya Nazeel Ji,
लोगों क…tag:openbooksonline.com,2015-03-16:5170231:Comment:6311302015-03-16T09:44:44.898ZShyam Mathpalhttp://openbooksonline.com/profile/ShyamMathpal
<p>Aadarniya Nazeel Ji,</p>
<p></p>
<p>लोगों को लूटने का फ़लसफ़ा होता ||<br/>तो अपने नाम पर बाबा लगा होता || ------ Hakikat bayan ki hai aapne... Bahut sundar. Dhero badhai.</p>
<p></p>
<p>Baba Neta Saudagar aur thagon ke sardar,</p>
<p>Sab janta Ko lutate Karte Bhavnawon Ka vyapar.</p>
<p>Aadarniya Nazeel Ji,</p>
<p></p>
<p>लोगों को लूटने का फ़लसफ़ा होता ||<br/>तो अपने नाम पर बाबा लगा होता || ------ Hakikat bayan ki hai aapne... Bahut sundar. Dhero badhai.</p>
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<p>Baba Neta Saudagar aur thagon ke sardar,</p>
<p>Sab janta Ko lutate Karte Bhavnawon Ka vyapar.</p> हौंसला बढ़ाने हेतु तहे-दिल से…tag:openbooksonline.com,2015-03-16:5170231:Comment:6309982015-03-16T08:24:05.811ZNazeelhttp://openbooksonline.com/profile/NBNazeel
<p>हौंसला बढ़ाने हेतु तहे-दिल से शुक्रिया आदरणीय भाई गिरिराज भंडारी जी.. आप सही कह रहें हैं मैंने ध्यान दिया जब मुकम्मल हो गई थी फिर मैंने छेड़छाड़ नहीं की आगे से ध्यान रखा करुंगा। एक बार फिर से शुक्रिया । </p>
<p>हौंसला बढ़ाने हेतु तहे-दिल से शुक्रिया आदरणीय भाई गिरिराज भंडारी जी.. आप सही कह रहें हैं मैंने ध्यान दिया जब मुकम्मल हो गई थी फिर मैंने छेड़छाड़ नहीं की आगे से ध्यान रखा करुंगा। एक बार फिर से शुक्रिया । </p>