Comments - असर क्या करेंगी अलाये-बलाये /// गजल (एक प्रयास ) - Open Books Online2024-03-28T17:26:09Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A638389&xn_auth=noआ० डॉ० गोपाल जी,ग़ज़ल पर इतना स…tag:openbooksonline.com,2015-04-08:5170231:Comment:6394012015-04-08T15:45:18.154Zrajesh kumarihttp://openbooksonline.com/profile/rajeshkumari
<p>आ० डॉ० गोपाल जी,ग़ज़ल पर इतना सुन्दर प्रयास देखकर मुख से वाह निकल गया विद्वद्जन पहले ही मार्ग दर्शन कर चुके हैं बस कुछ सुझाव मेरे भी जेहन में आये हैं सो बताना चाहूंगी --</p>
<p>तुम्हे आज प्रिय नीद ऐसी सुलायें-----इस मिसरे पर आ० सौरभ जी के कमेन्ट को पढ़कर बरबस हँसी आ गई ,और उनका कहना गलत भी नहीं है ,यदि इस मिसरे को ऐसे लिखें तो ----तुम्हे प्यार से नींद आओ सुलायें</p>
<p>झरें इस जगत की सभी वेदनायें I </p>
<p> </p>
<p>नहीं है किया काम बरसो से अच्छा </p>
<p>चलो नेह का एक दीपक जलायें I-----बहुत…</p>
<p>आ० डॉ० गोपाल जी,ग़ज़ल पर इतना सुन्दर प्रयास देखकर मुख से वाह निकल गया विद्वद्जन पहले ही मार्ग दर्शन कर चुके हैं बस कुछ सुझाव मेरे भी जेहन में आये हैं सो बताना चाहूंगी --</p>
<p>तुम्हे आज प्रिय नीद ऐसी सुलायें-----इस मिसरे पर आ० सौरभ जी के कमेन्ट को पढ़कर बरबस हँसी आ गई ,और उनका कहना गलत भी नहीं है ,यदि इस मिसरे को ऐसे लिखें तो ----तुम्हे प्यार से नींद आओ सुलायें</p>
<p>झरें इस जगत की सभी वेदनायें I </p>
<p> </p>
<p>नहीं है किया काम बरसो से अच्छा </p>
<p>चलो नेह का एक दीपक जलायें I-----बहुत सुन्दर </p>
<p> </p>
<p>गरल प्यार में इस कदर जो भरा है ------यदि इसको पोजिटिव भाव में इस तरह लें तो देखिये सम्प्रेषणता में कितना फर्क आता है------भरी प्यार में ऐसी पाकीज़गी है </p>
<p>असर क्या करेंगी अलायें-बलायें I </p>
<p> </p>
<p>तुम्हारी अदा है धवल -रंग ऐसी -----धवल रंग ऐसी ..ठीक नहीं लग रहा इसको ऐसे लिखें तो ----तुम्हारी अदा में धवल नूर ऐसा ----</p>
<p>कि शरमा गयी चंद्रमा की कलायें I</p>
<p> </p>
<p>जगी आज ऐसी विरह की तड़प है</p>
<p>सहम सी गयी है सभी चेतनायें I---वाह्ह्ह्ह </p>
<p> </p>
<p>नहीं याद करता शुभे अब तुम्हारी ----ये मिसरा व्याकरण सम्मत नहीं है तुमको आना चाहिए था जो संभव नहीं है ,तो आप इसे ऐसे लिख सकते हैं ---नहीं याद आती शुभे अब तुम्हारी-----या --नहीं याद करते शुभे अब तुम्हे बस </p>
<p>हमी मौन रो लें तुम्हें क्यों रुलायें I</p>
<p> </p>
<p>चलो आज ‘गोपाल’ नजदीक बैठो</p>
<p>हमीं जाम इस शाम तुमको पिलायें I-----मुहब्बत भरा जाम तुमको पिलायें ----ऐसा लिखें तो कैसा रहे </p>
<p>आदरणीय,आपका सफ़र शुरू हो चुका है मंजिल तक जरूर पंहुचेंगे शुभकामनायें . </p>
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<p> </p> आ० अनुज
अवश्य ही सुधार करना…tag:openbooksonline.com,2015-04-08:5170231:Comment:6395442015-04-08T08:01:54.363Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० अनुज</p>
<p>अवश्य ही सुधार करना चाहूँगा . बस मार्ग दर्शन होता रहे . सादर .</p>
<p>आ० अनुज</p>
<p>अवश्य ही सुधार करना चाहूँगा . बस मार्ग दर्शन होता रहे . सादर .</p> आदरणीय वीनस जी
आपने जो लेख ओ…tag:openbooksonline.com,2015-04-08:5170231:Comment:6396072015-04-08T07:59:49.635Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आदरणीय वीनस जी</p>
<p>आपने जो लेख ओ बी ओ में गजल पर दिए हैं उन्ही को पढ़ कर मई गजल पर प्रयास का रहा हूँ . आप जैसे विद्वान का मार्ग दर्शन रहेगा तो धीर-धीरे कमियों में भी सुधार होगा i बह्र का सही पालन न हो पाना दिख रहा है और जामे गम भी समझ मे आ गया . बहुत बहुत धन्यवाद . सादर .</p>
<p>आदरणीय वीनस जी</p>
<p>आपने जो लेख ओ बी ओ में गजल पर दिए हैं उन्ही को पढ़ कर मई गजल पर प्रयास का रहा हूँ . आप जैसे विद्वान का मार्ग दर्शन रहेगा तो धीर-धीरे कमियों में भी सुधार होगा i बह्र का सही पालन न हो पाना दिख रहा है और जामे गम भी समझ मे आ गया . बहुत बहुत धन्यवाद . सादर .</p> आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , बहु…tag:openbooksonline.com,2015-04-07:5170231:Comment:6394082015-04-07T15:58:31.787Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , बहुत कामयाब गज़ल कही है , कुछ कमियाँ थीं वो गुणि जन बता ही चुके हैं , सुधार आपके लिये कोई मुश्किल काम नही होगा , ऐसा विश्वास है , गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥</p>
<p>आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , बहुत कामयाब गज़ल कही है , कुछ कमियाँ थीं वो गुणि जन बता ही चुके हैं , सुधार आपके लिये कोई मुश्किल काम नही होगा , ऐसा विश्वास है , गज़ल के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥</p> हाँ, सही कहा, वीनस भाई, ग़मे-ज…tag:openbooksonline.com,2015-04-07:5170231:Comment:6392542015-04-07T15:46:23.283ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>हाँ, सही कहा, वीनस भाई, <em><strong>ग़मे-जाम</strong> </em>पर कहने से मैं रह गया. जबकि सोचा था कहूँगा. स्लिप ऑफ़ माइण्ड का केस हो गया..</p>
<p>जबकि <em><strong>खुश-रंग</strong></em> पर ध्यान ही नहीं दिया कि उसे इंगित करूँ. पढ़ कर इग्नोर कर गया.</p>
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<p>हाँ, सही कहा, वीनस भाई, <em><strong>ग़मे-जाम</strong> </em>पर कहने से मैं रह गया. जबकि सोचा था कहूँगा. स्लिप ऑफ़ माइण्ड का केस हो गया..</p>
<p>जबकि <em><strong>खुश-रंग</strong></em> पर ध्यान ही नहीं दिया कि उसे इंगित करूँ. पढ़ कर इग्नोर कर गया.</p>
<p></p> आदरणीय, अगर ग़ज़ल विधा पर आपका…tag:openbooksonline.com,2015-04-07:5170231:Comment:6391062015-04-07T15:23:24.516Zवीनस केसरीhttp://openbooksonline.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>आदरणीय,<br></br> अगर ग़ज़ल विधा पर आपका नव प्रयास है तो यह आवश्यक हो जाता है कि इसे सफल रचनाओं में शुमार किया जाए ...<br></br><br></br>लोग बहर को साधने के चक्कर में भाव और कहन से भटक जाते हैं मगर इस ग़ज़ल के साथ ऐसा प्रतीत नहीं होता .. <br></br>हमें स्पष्ट हो जा रहा है कि शाइर क्या कहना चाहता है <br></br>यह यह अलग बात है कि भाव स्पष्ट होने के वावजूद कहन के प्रति और आश्वस्त होना चाहिए <br></br><br></br>परन्तु यह मंच अलग और इसकी परिपाटी को निभाते हुए पाठकों द्वारा ग़ज़ल की उचित समीक्षा प्रस्तुत हुई है <br></br>अब कहे को पुनः क्या…</p>
<p>आदरणीय,<br/> अगर ग़ज़ल विधा पर आपका नव प्रयास है तो यह आवश्यक हो जाता है कि इसे सफल रचनाओं में शुमार किया जाए ...<br/><br/>लोग बहर को साधने के चक्कर में भाव और कहन से भटक जाते हैं मगर इस ग़ज़ल के साथ ऐसा प्रतीत नहीं होता .. <br/>हमें स्पष्ट हो जा रहा है कि शाइर क्या कहना चाहता है <br/>यह यह अलग बात है कि भाव स्पष्ट होने के वावजूद कहन के प्रति और आश्वस्त होना चाहिए <br/><br/>परन्तु यह मंच अलग और इसकी परिपाटी को निभाते हुए पाठकों द्वारा ग़ज़ल की उचित समीक्षा प्रस्तुत हुई है <br/>अब कहे को पुनः क्या कहना <br/><br/>हाँ जो दो बातें अनकही रह गईं उन्हें प्रस्तुत करता हूँ - <br/><br/><em><strong>तुम्हारी अदा है खुश-रंग ऐसी</strong> यह मिसरा बहर के हवाले से फिर से देखे जाने योग्य है <br/><br/><strong>गमे-जाम इस शाम तुमको पिलायें I</strong> निःसंदेह<strong> </strong></em> आपका आशय <strong>ग़म का जाम</strong> से है न कि <strong>जाम का ग़म</strong> से, ध्यान दिलाना चाहूँगा कि इजाफत के इस्तेमाल में शब्द पलट जाता है <strong>ग़म के जाम</strong> के लिए <strong>जामे-ग़म</strong> उचित है <em><strong>गमे-जाम</strong></em> का अर्थ निकलेगा = <strong>जाम का ग़म</strong></p> आ० सौरभ जी
आप तो जानते ही है…tag:openbooksonline.com,2015-04-07:5170231:Comment:6390942015-04-07T14:12:52.391Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० सौरभ जी</p>
<p>आप तो जानते ही है गजल विधा पर मैंने अभी प्रवेश ही किया है - पर मुझे सबका आशीर्वाद और मार्ग दर्शन भी मिल रहा है i आपने तो विस्तृत गुण -दोष बताकर मुझे काफी सोचने को बाध्य किया i ऐसे ही मार्ग दर्शन रहेगा तो बेहतर का प्रयास भी रहेगा . बस यूँही सिखाते रहिये . सादर .</p>
<p>आ० सौरभ जी</p>
<p>आप तो जानते ही है गजल विधा पर मैंने अभी प्रवेश ही किया है - पर मुझे सबका आशीर्वाद और मार्ग दर्शन भी मिल रहा है i आपने तो विस्तृत गुण -दोष बताकर मुझे काफी सोचने को बाध्य किया i ऐसे ही मार्ग दर्शन रहेगा तो बेहतर का प्रयास भी रहेगा . बस यूँही सिखाते रहिये . सादर .</p> आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपके र…tag:openbooksonline.com,2015-04-07:5170231:Comment:6391632015-04-07T12:50:02.373ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपके रचना प्रयास में जो निरंतरता है वह आश्वस्त करने वाली है.<br></br>आपकी अबतक की कोशिशों में बहर, काफ़िया और रदीफ़ का प्रथम दृष्ट्या कोई दोष नहीं दिखता.</p>
<p>वैसे आपकी यह ग़ज़ल तो ऐसी है जहाँ आपने रदीफ़ ही नहीं लिया है.</p>
<p>अब कहन को संयत करने पर काम करें, आदरणीय .</p>
<p>चूँकि आप पहले से ही संवेदनशील रचनाकर्मी रहे हैं अतः इस तरफ की दिक्कत भी बहुत दिनो तक नहीं रहने वाली.</p>
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<p>कहन को साधने के क्रम में शेर-दर-शेर बात करता हूँ- <br></br>तुम्हे आज प्रिय नीद ऐसी…</p>
<p>आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपके रचना प्रयास में जो निरंतरता है वह आश्वस्त करने वाली है.<br/>आपकी अबतक की कोशिशों में बहर, काफ़िया और रदीफ़ का प्रथम दृष्ट्या कोई दोष नहीं दिखता.</p>
<p>वैसे आपकी यह ग़ज़ल तो ऐसी है जहाँ आपने रदीफ़ ही नहीं लिया है.</p>
<p>अब कहन को संयत करने पर काम करें, आदरणीय .</p>
<p>चूँकि आप पहले से ही संवेदनशील रचनाकर्मी रहे हैं अतः इस तरफ की दिक्कत भी बहुत दिनो तक नहीं रहने वाली.</p>
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<p>कहन को साधने के क्रम में शेर-दर-शेर बात करता हूँ- <br/>तुम्हे आज प्रिय नीद ऐसी सुलायें ... . तुम्हें नींद प्रिय आज ऐसी सुलायें ..<br/>मिटें इस जगत की सभी वेदनायें I <br/>अंतर्निहित भाव तो बहुत अच्छे हैं आदरणीय. लेकिन इस मतले से अनायास ही क्या ऐसा अर्थ नहीं निकलता कि ’प्रिय’ की हत्या की योजना बन रही हो !?<br/> <br/>नहीं है किया काम बरसो से अच्छा <br/>चलो ज्योति का एक दीपक जलायें ... . <br/>सानी पर ध्यान दें - <em>चलो <span style="text-decoration: underline;">ज्योति का एक दीपक</span> जलायें.</em> तो क्या कुछ ऐसे भी दीपक भी होते हैं जो जलते हुए ज्योति के अलावा कुछ और देते हैं ? <em>ज्योति</em> के <em>एक दीपक</em> का फिर क्या औचित्य ? यह तो वही बात हुई कि कोई <strong>गर्म आग जलाये</strong> या किसी को <strong>ठंढी बर्फ</strong> देने की बात करे. <br/><br/>गरल प्यार में इस कदर जो भरा है <br/>असर क्या करेंगी अलायें-बलायें I <br/>’अलायें-बलायें’ का तो कोई ज़वाब ही नहीं आदरणीय ! लेकिन इस शेर को तनिक और संप्रेषणीय होना था. <br/><br/>तुम्हारी अदा है खुश-रंग ऐसी <br/>कि शर्मा गयी चंद्रमा की कलायें I<br/>अह्हाह ! क्या अंदाज़ है ! परन्तु ’शर्मा’ को ’शरमा’ कहिये न ! <br/><br/>जगी आज ऐसी विरह की तड़प है<br/>सहम सी गयी है सभी चेतनायें I<br/>सानी के ’सहम सी गयी है’ के <strong>है</strong> को <strong>हैं</strong> करना आवश्यक है.</p>
<p>दूसरे, सहमने को कुछ और भाव दें. या तो चेतनायें सुन्न होंगीं या मौन / सुप्त पड़ी होंगीं. ऐसा कुछ. <br/><br/>नहीं याद करता शुभे अब तुम्हारी <br/>हमी मौन रो लें तुम्हें क्यों रुलायें I<br/>बहुत खूब ! <br/><br/>चलो आज ‘गोपाल’ नजदीक बैठो<br/>गमे-जाम इस शाम तुमको पिलायें I<br/>ए भाई ! इस तरह बुलाइयेगा तो फिर पास या नज़दीक कौन बैठेगा ? सबकी अपनी-अपनी पड़ी है. शायर से ग़म उधार कोई क्यों ले ? है न ? <br/><br/>विश्वास है, उपर्युक्त तर्कों से आपको यह समझने में सहजता होगी कि किसी शेर मॆं तार्किकता कैसे साधी जाती है. इसी तार्किकता के दम पर किसी शेर /ग़ज़ल का मेयार आँका जाता है. <br/><br/>सादर<br/><br/></p> आ० मठपाल जी
सादर आभार .tag:openbooksonline.com,2015-04-07:5170231:Comment:6391432015-04-07T06:13:56.370Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० मठपाल जी</p>
<p>सादर आभार .</p>
<p>आ० मठपाल जी</p>
<p>सादर आभार .</p> आदरणीय डॉ गोपाल नारायण ji,
व…tag:openbooksonline.com,2015-04-06:5170231:Comment:6389652015-04-06T14:49:23.107ZShyam Mathpalhttp://openbooksonline.com/profile/ShyamMathpal
<p><span>आदरणीय डॉ गोपाल नारायण ji,</span></p>
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<p><span>वाह वाह आनंद आ गया. ढेरों बधाई</span></p>
<p><span>आदरणीय डॉ गोपाल नारायण ji,</span></p>
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<p><span>वाह वाह आनंद आ गया. ढेरों बधाई</span></p>