Comments - कुछ चाँद मेरे - Open Books Online2024-03-29T15:12:02Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A647314&xn_auth=noधन्यवाद आदरणीय वीनस केसरी सर..tag:openbooksonline.com,2015-05-02:5170231:Comment:6498792015-05-02T12:26:18.327Zshree suneelhttp://openbooksonline.com/profile/shreesuneel
धन्यवाद आदरणीय वीनस केसरी सर..
धन्यवाद आदरणीय वीनस केसरी सर.. आदरणीय सौरभ पांडे सर, आपकी मह…tag:openbooksonline.com,2015-05-02:5170231:Comment:6500402015-05-02T12:22:10.145Zshree suneelhttp://openbooksonline.com/profile/shreesuneel
आदरणीय सौरभ पांडे सर, आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी को आत्मसात करने की कोशिश कर रहा हूँ.<br />
आपके प्रति इस मन में श्रद्धा है आदरणीय. मन व्याकुल हुआ ये जानकर कि आप असहज महसूस किये. क्षमा चाहूंगा सर.<br />
मार्गदर्शन का आकांक्षी--
आदरणीय सौरभ पांडे सर, आपकी महत्वपूर्ण टिप्पणी को आत्मसात करने की कोशिश कर रहा हूँ.<br />
आपके प्रति इस मन में श्रद्धा है आदरणीय. मन व्याकुल हुआ ये जानकर कि आप असहज महसूस किये. क्षमा चाहूंगा सर.<br />
मार्गदर्शन का आकांक्षी-- आज जब नस्री नज़्म की दुनिया सि…tag:openbooksonline.com,2015-05-02:5170231:Comment:6499602015-05-02T10:29:12.124Zवीनस केसरीhttp://openbooksonline.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>आज जब नस्री नज़्म की दुनिया सिकुड़ती जा रही है ऐसे में इस नज़्म से रू-ब-रू होना अच्छा लगा ...<br/>बहुत खूब</p>
<p>आज जब नस्री नज़्म की दुनिया सिकुड़ती जा रही है ऐसे में इस नज़्म से रू-ब-रू होना अच्छा लगा ...<br/>बहुत खूब</p> भाईजी, आप स्पष्ट दृष्टि और सं…tag:openbooksonline.com,2015-05-02:5170231:Comment:6498012015-05-02T10:15:08.029ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>भाईजी, आप स्पष्ट दृष्टि और संतुलित मनस के मालिक हैं. सादर आभार.<br></br>यह अवश्य है, कि आपकी पिछली प्रतिक्रिया से हम तनिक असहज अवश्य हो गये थे.<br></br><br></br>वस्तुतः रचनाकर्म एक गंभीर प्रयास है, आदरणीय. यह आत्मसुख का कारण होते हुए भी अंतर्प्रवाह के तौर पर जनोन्मुखी हुआ करता है. इस हिसाब से यह एक गहन ताप है जिसे सचेत रचनाकार को सहना ही पड़ता है. <br></br><br></br>एक बात और, भले ही रचनाओं का प्रयास सांकेतिक अथवा सुसुप्त सा प्रतीत हो, किन्तु रचनाएँ वस्तुतः समाज का भविष्य नियत करती हैं. इस आधार पर ये सामाजिक…</p>
<p>भाईजी, आप स्पष्ट दृष्टि और संतुलित मनस के मालिक हैं. सादर आभार.<br/>यह अवश्य है, कि आपकी पिछली प्रतिक्रिया से हम तनिक असहज अवश्य हो गये थे.<br/><br/>वस्तुतः रचनाकर्म एक गंभीर प्रयास है, आदरणीय. यह आत्मसुख का कारण होते हुए भी अंतर्प्रवाह के तौर पर जनोन्मुखी हुआ करता है. इस हिसाब से यह एक गहन ताप है जिसे सचेत रचनाकार को सहना ही पड़ता है. <br/><br/>एक बात और, भले ही रचनाओं का प्रयास सांकेतिक अथवा सुसुप्त सा प्रतीत हो, किन्तु रचनाएँ वस्तुतः समाज का भविष्य नियत करती हैं. इस आधार पर ये सामाजिक परिपाटियों का वहन करती हुई भी समाज के भविष्य को खोलने का काम करती हैं. अर्थात हर गंभीर रचना अपने समय से आगे-आगे चलती है. तथा, जन और पाठक इसके पीछे-पीछे चलते हैं.</p>
<p>वहीं रचनाएँ जब शाब्दिक कौतुक और भावकेलि का कारण मात्र रह जायें, तो अभिजात्य वृत्तियों के लिए मनोरंजन का साधन भर हो कर रह जाती हैं. तब ये समाज के एक सीमित किन्तु प्रभावी वर्ग की अनुगामिनी हो जाती हैं. रचनाओं का मात्र मनसरंजन और उसके लिए साधन बन जाना वैयक्तिक साहित्यकर्म में आये पतन का उद्घोष है. इस उद्घोष के पूर्व ही एक सचेत रचनाकार को संयत हो जाना चाहिये. प्रयास के स्तर पर वह चाहे जैसा अभ्यासी क्यों न हो, चाहे जैसे शब्द कौतुक क्यों न करता हो. <br/>पिछली टिप्पणी में मेरा संकेत इसी ओर था, आदरणीय<br/>सादर<br/><br/></p> आदरणीय सौरभ पांडे सर, सच तो य…tag:openbooksonline.com,2015-05-02:5170231:Comment:6499512015-05-02T09:08:18.721Zshree suneelhttp://openbooksonline.com/profile/shreesuneel
आदरणीय सौरभ पांडे सर, सच तो ये है कि अपनी हर रचना पर आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा रहती है.<br />
"यदि इस मंच पर आपको केवल ’वाह-वाही’ की अपेक्षा है तो"<br />
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आदरणीय, ऐसी अपेक्षा तो बिल्कुल नहीं है. नया हूँ. मुझे पता है, इसके नुकसान बङे गम्भीर होते हैं.<br />
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"रचनाकारों की बनिस्पत रचनाओं का सम्मान होता है... कि ऐसे मंच बहुत नहीं हैं. "<br />
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मैं आपसे सहमत हूँ आदरणीय. मैं स्वयं ऋणी हूँ इस मंच का. मेरे कई पुराने प्रश्नों के हल आप और आप जैसे गुणीजनो के द्वारा प्राप्त हो सके.<br />
शायद मैं स्वयं को स्पष्ट कर सका. आशा है आपका…
आदरणीय सौरभ पांडे सर, सच तो ये है कि अपनी हर रचना पर आपकी टिप्पणी की प्रतीक्षा रहती है.<br />
"यदि इस मंच पर आपको केवल ’वाह-वाही’ की अपेक्षा है तो"<br />
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आदरणीय, ऐसी अपेक्षा तो बिल्कुल नहीं है. नया हूँ. मुझे पता है, इसके नुकसान बङे गम्भीर होते हैं.<br />
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"रचनाकारों की बनिस्पत रचनाओं का सम्मान होता है... कि ऐसे मंच बहुत नहीं हैं. "<br />
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मैं आपसे सहमत हूँ आदरणीय. मैं स्वयं ऋणी हूँ इस मंच का. मेरे कई पुराने प्रश्नों के हल आप और आप जैसे गुणीजनो के द्वारा प्राप्त हो सके.<br />
शायद मैं स्वयं को स्पष्ट कर सका. आशा है आपका स्नेह प्राप्त होता रहेगा. सादर आप अन्यथा न लें, भाई श्री सुन…tag:openbooksonline.com,2015-05-02:5170231:Comment:6497062015-05-02T06:09:14.807ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आप अन्यथा न लें, भाई श्री सुनीलजी, सभी रचनाकार एक दौर में ऐसी रचनाओं पर प्रयास करते हैं. साहित्य में ही एक समय ऐसा भी था जब इस तासीर की रचनाओं का बाहुल्य था. तभी मैंने कहा न आदरणीय - <em>आज माहौल बहुत बदल गया है</em></p>
<p>आप मेरे कहे को अन्यथा न ले कर ’मीमांसा’ की आत्मीयता को समझें.</p>
<p>दूसरे, यदि इस मंच पर आपको केवल ’वाह-वाही’ की अपेक्षा है तो ऐसी परेशानी आपको अकसर होगी. आप इस मंच के सक्रिय सदस्य हैं, हम आपकी उपस्थिति का सम्मान करते हैं.</p>
<p>साथ ही, एक बात आप अवश्य जानें आदरणीय, कि…</p>
<p>आप अन्यथा न लें, भाई श्री सुनीलजी, सभी रचनाकार एक दौर में ऐसी रचनाओं पर प्रयास करते हैं. साहित्य में ही एक समय ऐसा भी था जब इस तासीर की रचनाओं का बाहुल्य था. तभी मैंने कहा न आदरणीय - <em>आज माहौल बहुत बदल गया है</em></p>
<p>आप मेरे कहे को अन्यथा न ले कर ’मीमांसा’ की आत्मीयता को समझें.</p>
<p>दूसरे, यदि इस मंच पर आपको केवल ’वाह-वाही’ की अपेक्षा है तो ऐसी परेशानी आपको अकसर होगी. आप इस मंच के सक्रिय सदस्य हैं, हम आपकी उपस्थिति का सम्मान करते हैं.</p>
<p>साथ ही, एक बात आप अवश्य जानें आदरणीय, कि यह उन मंचों में से हैं जहाँ रचनाकारों की बनिस्पत रचनाओं का सम्मान होता है. और, आपको भी भान होगा आदरणीय, कि ऐसे मंच बहुत नहीं हैं. </p>
<p>सादर</p>
<p></p> प्रशंसात्मक टिप्पणी के लिए धन…tag:openbooksonline.com,2015-05-02:5170231:Comment:6499362015-05-02T05:36:33.437Zshree suneelhttp://openbooksonline.com/profile/shreesuneel
प्रशंसात्मक टिप्पणी के लिए धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी. सादर
प्रशंसात्मक टिप्पणी के लिए धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण रामानुज जी. सादर बहुत बढियां अंदाज लेखन का | ह…tag:openbooksonline.com,2015-05-02:5170231:Comment:6497902015-05-02T05:28:54.690Zलक्ष्मण रामानुज लडीवालाhttp://openbooksonline.com/profile/LaxmanPrasadLadiwala
<p>बहुत बढियां अंदाज लेखन का | हार्दिक बधाई </p>
<p>बहुत बढियां अंदाज लेखन का | हार्दिक बधाई </p> आदरणीय सौरभ पांडे सर, रचना पे…tag:openbooksonline.com,2015-05-02:5170231:Comment:6496962015-05-02T05:24:19.073Zshree suneelhttp://openbooksonline.com/profile/shreesuneel
आदरणीय सौरभ पांडे सर, रचना पे आप आये, इसमें कुछ बेहतर दिखा आपको इसके लिए धन्यवाद.<br />
दरअस्ल, ये अलग अलग वक़्त में की गई पांच छोटी छोटी रचनायें हैं और मेरी प्रिय हैं.<br />
अन्य एेसी रचनाओं का भी प्रशंसक हूँ.<br />
उपस्थिति के लिए पुनः धन्यवाद सर.
आदरणीय सौरभ पांडे सर, रचना पे आप आये, इसमें कुछ बेहतर दिखा आपको इसके लिए धन्यवाद.<br />
दरअस्ल, ये अलग अलग वक़्त में की गई पांच छोटी छोटी रचनायें हैं और मेरी प्रिय हैं.<br />
अन्य एेसी रचनाओं का भी प्रशंसक हूँ.<br />
उपस्थिति के लिए पुनः धन्यवाद सर. इस कविता में जिस मुखर अंदाज़ म…tag:openbooksonline.com,2015-05-01:5170231:Comment:6495062015-05-01T20:58:14.841ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>इस कविता में जिस मुखर अंदाज़ में रुमानियत इन्फ़्यूज्ड है वह पुलकित कर रहा है.</p>
<p>वैसे इस तरह की कविताएँ क्षणिक सुख ही दे पाती हैं. क्योंकि शाब्दिक कौतुक के सापेक्ष आज माहौल बहुत बदल गया है. <br/><br/>आदरणीय श्री सुनीलजी, आपको इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ. <br/><br/></p>
<p>इस कविता में जिस मुखर अंदाज़ में रुमानियत इन्फ़्यूज्ड है वह पुलकित कर रहा है.</p>
<p>वैसे इस तरह की कविताएँ क्षणिक सुख ही दे पाती हैं. क्योंकि शाब्दिक कौतुक के सापेक्ष आज माहौल बहुत बदल गया है. <br/><br/>आदरणीय श्री सुनीलजी, आपको इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक शुभकामनाएँ. <br/><br/></p>