Comments - थोड़-थोडा(कविता) - Open Books Online2024-03-29T01:34:31Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A657841&xn_auth=noआदरणीय श्याम भाई, गोपाल भाई !…tag:openbooksonline.com,2015-05-24:5170231:Comment:6584072015-05-24T13:57:44.720ZManan Kumar singhhttp://openbooksonline.com/profile/MananKumarsingh
<p>आदरणीय श्याम भाई, गोपाल भाई ! बहुत-बहुत आभार आप का। </p>
<p>आदरणीय श्याम भाई, गोपाल भाई ! बहुत-बहुत आभार आप का। </p> इस भावपूर्ण कविता के लिए हार…tag:openbooksonline.com,2015-05-23:5170231:Comment:6577892015-05-23T07:10:20.211ZShyam Narain Vermahttp://openbooksonline.com/profile/ShyamNarainVerma
<table border="0" cellspacing="0" width="482">
<tbody><tr><td height="20" align="left" width="482">इस भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई</td>
</tr>
</tbody>
</table>
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<tbody><tr><td height="20" align="left" width="482">इस भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई</td>
</tr>
</tbody>
</table> थोड़ा सा प्रवाह और चाहिए…tag:openbooksonline.com,2015-05-23:5170231:Comment:6577002015-05-23T06:33:27.272Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
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<p>थोड़ा सा प्रवाह और चाहिए जैसे-</p>
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<p>बातों पे पहले मैं गरजा बहुत पर <br></br>थोड़ा-थोड़ा अब मैं सरसने लगा हूँ।</p>
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<p>बदली को ढोता रहा देर तक मैं</p>
<p>थोड़ा-थोड़ा अब मैं बरसने लगा हूँ।</p>
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<p>शुकूं में था प्यासा नजर,तेरी पीकर <br></br>थोड़ा-थोड़ा अब मैं तरसने लगा हूँ</p>
<p></p>
<p>कहाँ तक रहे अब ख्यालों की अटकन <br></br>थोड़ा-थोड़ा अब मैं झटकने लगा हूँ।</p>
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<p>नहीं पास आने की जुर्रत थी मेरी <br></br>थोड़ा-थोड़ा अब मैं फटकने लगा…</p>
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<p>थोड़ा सा प्रवाह और चाहिए जैसे-</p>
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<p>बातों पे पहले मैं गरजा बहुत पर <br/>थोड़ा-थोड़ा अब मैं सरसने लगा हूँ।</p>
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<p>बदली को ढोता रहा देर तक मैं</p>
<p>थोड़ा-थोड़ा अब मैं बरसने लगा हूँ।</p>
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<p>शुकूं में था प्यासा नजर,तेरी पीकर <br/>थोड़ा-थोड़ा अब मैं तरसने लगा हूँ</p>
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<p>कहाँ तक रहे अब ख्यालों की अटकन <br/>थोड़ा-थोड़ा अब मैं झटकने लगा हूँ।</p>
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<p>नहीं पास आने की जुर्रत थी मेरी <br/>थोड़ा-थोड़ा अब मैं फटकने लगा हूँ।</p>
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