Comments - ग़ज़ल बतौर-ए-ख़ास ओबीओ की नज़्र - Open Books Online2024-03-28T16:13:43Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A658006&xn_auth=noजनाब रवि शुक्ला जी आदाब,सुख़न…tag:openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8845812017-09-27T12:04:50.236ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब रवि शुक्ला जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
जनाब रवि शुक्ला जी आदाब,सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया । मोबाइल के कारण कुछ टंकण त्रुट…tag:openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8848262017-09-27T07:20:15.497ZRavi Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/RaviShukla
मोबाइल के कारण कुछ टंकण त्रुटियां नज़र अंदाज़ कर देने की गुज़ारिश है।
मोबाइल के कारण कुछ टंकण त्रुटियां नज़र अंदाज़ कर देने की गुज़ारिश है। नहीं है समर आपका मोल कोई,
कहे…tag:openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8847622017-09-27T07:04:21.519ZRavi Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/RaviShukla
नहीं है समर आपका मोल कोई,<br />
कहें दिल मे सबके रहा चाहता हूँ।<br />
<br />
में खुद मुंतज़िर हूँ फुनूने सुखन का,<br />
ज़रा फ़ैज़ में आपका चाहता हूँ।<br />
<br />
ज़रा देर से बज़्म में आया तो क्या,<br />
शरीक अब ग़ज़ल में हुआ चाहता हूँ।<br />
<br />
ग़ज़ल ये मता ए सुखन से निकाली,<br />
महिंदर को देना दुआ चाहता हूँ।<br />
<br />
जो सीखा यही से यही बांटा मैंने,<br />
इसी मंच का मैं भला चाहता हूँ।<br />
<br />
तबीयत है नासाज़ मेरी अभी कुछ,<br />
यही कह जे रुख़्सत हुआ चाहता हूँ।<br />
<br />
कहे फ़िल बदीही ये अशआर मैंने,<br />
करम इनमें इस्लाह का चाहता हूँ।<br />
<br />
आदरणीय समर साहब बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने मैन जुलाई 2015 में ई obo…
नहीं है समर आपका मोल कोई,<br />
कहें दिल मे सबके रहा चाहता हूँ।<br />
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में खुद मुंतज़िर हूँ फुनूने सुखन का,<br />
ज़रा फ़ैज़ में आपका चाहता हूँ।<br />
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ज़रा देर से बज़्म में आया तो क्या,<br />
शरीक अब ग़ज़ल में हुआ चाहता हूँ।<br />
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ग़ज़ल ये मता ए सुखन से निकाली,<br />
महिंदर को देना दुआ चाहता हूँ।<br />
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जो सीखा यही से यही बांटा मैंने,<br />
इसी मंच का मैं भला चाहता हूँ।<br />
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तबीयत है नासाज़ मेरी अभी कुछ,<br />
यही कह जे रुख़्सत हुआ चाहता हूँ।<br />
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कहे फ़िल बदीही ये अशआर मैंने,<br />
करम इनमें इस्लाह का चाहता हूँ।<br />
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आदरणीय समर साहब बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने मैन जुलाई 2015 में ई obo जॉइन किया था इस लिए पहले नही देख पाया ये ग़ज़ल। आपका कलाम हर मायने में अलहदा है । बहुत बहुत बधाई इस ग़ज़ल के लिए। ग़ज़ल पढ़ कर जो फ़िले बदीह अशआर हुए उन्हें रख दिया है । सादर मोहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आद…tag:openbooksonline.com,2017-09-27:5170231:Comment:8845612017-09-27T05:14:42.129ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
मोहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ।
मोहतरमा प्रतिभा पाण्डेय जी आदाब,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया । ओबीओ के प्रति अपने प्यार का…tag:openbooksonline.com,2017-09-26:5170231:Comment:8844442017-09-26T12:48:40.040Zpratibha pandehttp://openbooksonline.com/profile/pratibhapande
<p>ओबीओ के प्रति अपने प्यार का बहुत खूबसूरती से वर्णन किया है आपने आदरणीय समर कबीर जी , हार्दिक बधाई प्रेषित करती हूँ आपको इस ग़ज़ल पर ... सादर </p>
<p>ओबीओ के प्रति अपने प्यार का बहुत खूबसूरती से वर्णन किया है आपने आदरणीय समर कबीर जी , हार्दिक बधाई प्रेषित करती हूँ आपको इस ग़ज़ल पर ... सादर </p> जनाब डॉ.आशुतोष मिश्रा जी आदाब…tag:openbooksonline.com,2017-09-26:5170231:Comment:8843742017-09-26T09:35:05.907ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब डॉ.आशुतोष मिश्रा जी आदाब,आप सबकी महब्बत को सलाम, ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।
जनाब डॉ.आशुतोष मिश्रा जी आदाब,आप सबकी महब्बत को सलाम, ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ । आदरणीय समर सर यह ग़ज़ल तो लाजबा…tag:openbooksonline.com,2017-09-26:5170231:Comment:8844252017-09-26T09:30:27.581ZDr Ashutosh Mishrahttp://openbooksonline.com/profile/DrAshutoshMishra
आदरणीय समर सर यह ग़ज़ल तो लाजबाब है ..ओ बी ओ के सभी सितारों को एक साथ फलक पर सजा दिया आपने ..आपकी प्रतिक्रियाओं से ग़ज़लों की बारीकी सीखने का मौका रोज मिलता है मंच पर आना सार्थक होता है आपका आशीर्वाद हम सबको इस मंच को मिलता रहे यही दिल की कामना है ..सादर प्रणाम के साथ
आदरणीय समर सर यह ग़ज़ल तो लाजबाब है ..ओ बी ओ के सभी सितारों को एक साथ फलक पर सजा दिया आपने ..आपकी प्रतिक्रियाओं से ग़ज़लों की बारीकी सीखने का मौका रोज मिलता है मंच पर आना सार्थक होता है आपका आशीर्वाद हम सबको इस मंच को मिलता रहे यही दिल की कामना है ..सादर प्रणाम के साथ जनाब सुशील सरना जी आदाब,ये सब…tag:openbooksonline.com,2017-09-26:5170231:Comment:8844242017-09-26T09:14:36.971ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब सुशील सरना जी आदाब,ये सब ओबीओ का ही कमाल है जो मुझसे ऐसी रचनाएँ हो जाती हैं,और आप सबकी महब्बत इस में सोने पर सुहागा का काम करती हैं,मैं अपने इस परिवार पर जितना भी नाज़ करूँ कम है,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।<br />
<br />
'सलामत रहो भाई 'सरना'जी तुमको<br />
यही आज देना दुआ चाहता हूँ'
जनाब सुशील सरना जी आदाब,ये सब ओबीओ का ही कमाल है जो मुझसे ऐसी रचनाएँ हो जाती हैं,और आप सबकी महब्बत इस में सोने पर सुहागा का काम करती हैं,मैं अपने इस परिवार पर जितना भी नाज़ करूँ कम है,ग़ज़ल में शिर्कत और सुख़न नवाज़ी के लिए आपका तहे दिल से शुक्रगुज़ार हूँ ।<br />
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'सलामत रहो भाई 'सरना'जी तुमको<br />
यही आज देना दुआ चाहता हूँ' आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब…tag:openbooksonline.com,2017-09-26:5170231:Comment:8843632017-09-26T08:14:05.682ZSushil Sarnahttp://openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p>आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब , हर लफ्ज़ आपकी तारीफ़ की रोशनी के आगे जुगनू साबित होता है। इस मोहब्बत से लबरेज़ ग़ज़ल की महक ने हर आम-ओ-ख़ास को अपनी जद में ले लिया है। ओ बी ओ मंच और उसका हर सदस्य आपको और आप हर सदस्य को दिलोजान से चाहते हैं , ये इस ग़ज़ल के माध्यम से आपने बता दिया। इस बेहतरीन ग़ज़ल और प्यार के लिए दिल से मुबारक। ४ लाइनें आपकी नज़्र हैं :</p>
<p>खबर है हमें आप क्या चाहते हैं <br/>हर बशर का बस भला चाहते हैं <br/>लूटा मोहब्बत ने आपकी सभी को <br/>हम भी दुआ आपकी लूटना चाहते हैं</p>
<p>आदरणीय समर कबीर साहिब , आदाब , हर लफ्ज़ आपकी तारीफ़ की रोशनी के आगे जुगनू साबित होता है। इस मोहब्बत से लबरेज़ ग़ज़ल की महक ने हर आम-ओ-ख़ास को अपनी जद में ले लिया है। ओ बी ओ मंच और उसका हर सदस्य आपको और आप हर सदस्य को दिलोजान से चाहते हैं , ये इस ग़ज़ल के माध्यम से आपने बता दिया। इस बेहतरीन ग़ज़ल और प्यार के लिए दिल से मुबारक। ४ लाइनें आपकी नज़्र हैं :</p>
<p>खबर है हमें आप क्या चाहते हैं <br/>हर बशर का बस भला चाहते हैं <br/>लूटा मोहब्बत ने आपकी सभी को <br/>हम भी दुआ आपकी लूटना चाहते हैं</p> जनाब निलेश 'नूर'साहिब आदाब,नह…tag:openbooksonline.com,2017-09-26:5170231:Comment:8843582017-09-26T07:03:30.481ZSamar kabeerhttp://openbooksonline.com/profile/Samarkabeer
जनाब निलेश 'नूर'साहिब आदाब,नहीं पढ़ सकते भाई,मगर क्या करें जज़्बात की रौ में बह गए ।
जनाब निलेश 'नूर'साहिब आदाब,नहीं पढ़ सकते भाई,मगर क्या करें जज़्बात की रौ में बह गए ।