Comments - गजल //// उसे मुमताज देखेंगे - Open Books Online2024-03-29T12:19:00Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A666738&xn_auth=noबह्र खूब निभाई है
बह्र के हव…tag:openbooksonline.com,2015-06-27:5170231:Comment:6691352015-06-27T21:52:42.810Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooksonline.com/profile/mw
<p>बह्र खूब निभाई है </p>
<p>बह्र के हवाले से दाद हाज़िर है </p>
<p>बह्र खूब निभाई है </p>
<p>बह्र के हवाले से दाद हाज़िर है </p> आ० वीनस भाई
अभी बच्चा हूँ सी…tag:openbooksonline.com,2015-06-25:5170231:Comment:6680092015-06-25T04:33:46.759Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० वीनस भाई</p>
<p>अभी बच्चा हूँ सीख रहा हूँ , आपकी हिदायते बनी रहे , हो सकता है कभी अच्छा भी लिख सकूं. सादर .</p>
<p>आ० वीनस भाई</p>
<p>अभी बच्चा हूँ सीख रहा हूँ , आपकी हिदायते बनी रहे , हो सकता है कभी अच्छा भी लिख सकूं. सादर .</p> नमस्कार इस रचना को तीन दिनों…tag:openbooksonline.com,2015-06-23:5170231:Comment:6673842015-06-23T19:05:29.202Zवीनस केसरीhttp://openbooksonline.com/profile/1q1lxk02g9ue6
<p>नमस्कार <br></br>इस रचना को तीन दिनों से पढ़ रहा हूँ पहले कुछ अन्य टिप्पणियों का इंतज़ार था क्योकि यदि कोई चर्चा शुरू हो जाए तो अन्य पाठकोण की पाठकीयता प्रभावित होती है <br></br><br></br>ग़ज़ल पर आपकी लगातार आ रही प्रस्तुतियों से तुलना करने पर आपकी यह प्रस्तुति मुझे कुछ औसत लगी <br></br>ऐसा नहीं है कि यह ग़ज़ल खराब हो या हर शेर में कुछ कमी ही हो परन्तु कभी कभी ऐसा होता है कि अपनी पिछली रचनाओं की श्रेष्ठता ही हावी हो जाती है<br></br>और पाठक तो पिछली रचनाओं से ही तुलना करेगा ...<br></br><br></br>हाँ यह अवश्य है कि इस ग़ज़ल के…</p>
<p>नमस्कार <br/>इस रचना को तीन दिनों से पढ़ रहा हूँ पहले कुछ अन्य टिप्पणियों का इंतज़ार था क्योकि यदि कोई चर्चा शुरू हो जाए तो अन्य पाठकोण की पाठकीयता प्रभावित होती है <br/><br/>ग़ज़ल पर आपकी लगातार आ रही प्रस्तुतियों से तुलना करने पर आपकी यह प्रस्तुति मुझे कुछ औसत लगी <br/>ऐसा नहीं है कि यह ग़ज़ल खराब हो या हर शेर में कुछ कमी ही हो परन्तु कभी कभी ऐसा होता है कि अपनी पिछली रचनाओं की श्रेष्ठता ही हावी हो जाती है<br/>और पाठक तो पिछली रचनाओं से ही तुलना करेगा ...<br/><br/>हाँ यह अवश्य है कि इस ग़ज़ल के कुछ शेर ऐसे बन गए हैं जिनका कोई ख़ास लुत्फ़ नहीं मिला और लगा कि ग़ज़ल में अशआर की संख्या बढाने के अतिरिक्त और कोई प्रयोजन नहीं है</p> आ० विजय सर
आभार सादर .tag:openbooksonline.com,2015-06-23:5170231:Comment:6672702015-06-23T05:33:43.495Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० विजय सर</p>
<p>आभार सादर .</p>
<p>आ० विजय सर</p>
<p>आभार सादर .</p> नशे में हैं नशा बांटे नशे की…tag:openbooksonline.com,2015-06-22:5170231:Comment:6674432015-06-22T18:56:35.205ZDr. Vijai Shankerhttp://openbooksonline.com/profile/DrVijaiShanker
<p>नशे में हैं नशा बांटे नशे की आग सुलगा दे<br/>हकीकी इश्क का उस पर नुमायाँ ताज देखेंगे। <br/>बहुत खूब, बधाई , आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी, सादर।</p>
<p>नशे में हैं नशा बांटे नशे की आग सुलगा दे<br/>हकीकी इश्क का उस पर नुमायाँ ताज देखेंगे। <br/>बहुत खूब, बधाई , आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी, सादर।</p>