Comments - अधूरी इच्छा (लघुकथा) - Open Books Online2024-03-28T09:39:55Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A673053&xn_auth=noआदरणीय सौरभ सर, आपकी उत्साह व…tag:openbooksonline.com,2015-07-18:5170231:Comment:6781552015-07-18T02:53:32.387ZJAWAHAR LAL SINGHhttp://openbooksonline.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p>आदरणीय सौरभ सर, आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया से मन प्रफुल्लित हो गया ...सादर!</p>
<p>आदरणीय सौरभ सर, आपकी उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया से मन प्रफुल्लित हो गया ...सादर!</p> आदरणीय जवाहर भाईकी इस लघुकथा…tag:openbooksonline.com,2015-07-16:5170231:Comment:6773802015-07-16T15:31:37.843ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय जवाहर भाईकी इस लघुकथा के बरअक्स आदरणीय गिरिराज भाईजी का शेर - <br/><em><strong>रहा जब तक सुनी तुमने नहीं, जिस शख़्स की यारो</strong></em><br/><em><strong>लिपट कर आज रोना क्यूँ , कि वो उत्तर नहीं देता ॥ </strong></em><br/><br/>दोनों ग़ज़ब ! हार्दिक बधाई, भाई..<br/><br/></p>
<p>आदरणीय जवाहर भाईकी इस लघुकथा के बरअक्स आदरणीय गिरिराज भाईजी का शेर - <br/><em><strong>रहा जब तक सुनी तुमने नहीं, जिस शख़्स की यारो</strong></em><br/><em><strong>लिपट कर आज रोना क्यूँ , कि वो उत्तर नहीं देता ॥ </strong></em><br/><br/>दोनों ग़ज़ब ! हार्दिक बधाई, भाई..<br/><br/></p> हार्दिक आभार आदरणीय विजय निको…tag:openbooksonline.com,2015-07-08:5170231:Comment:6741722015-07-08T16:53:36.829ZJAWAHAR LAL SINGHhttp://openbooksonline.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p>हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोर साहब!</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोर साहब!</p> हार्दिक आभार आदरणीय ओमप्रकाश…tag:openbooksonline.com,2015-07-08:5170231:Comment:6742322015-07-08T16:53:03.719ZJAWAHAR LAL SINGHhttp://openbooksonline.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p>हार्दिक आभार आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी! आपका सुझाव सर आँखों पर!</p>
<p>हार्दिक आभार आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी! आपका सुझाव सर आँखों पर!</p> सकारात्मक और उत्साहवर्धक प्रत…tag:openbooksonline.com,2015-07-08:5170231:Comment:6743522015-07-08T16:51:37.509ZJAWAHAR LAL SINGHhttp://openbooksonline.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p>सकारात्मक और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार आदरणीय विजय कुमार सिंह जी!</p>
<p>सकारात्मक और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार आदरणीय विजय कुमार सिंह जी!</p> अति संवेदनशील लघु कथा ! हार्द…tag:openbooksonline.com,2015-07-08:5170231:Comment:6739492015-07-08T04:19:31.492Zvijay nikorehttp://openbooksonline.com/profile/vijaynikore
<p>अति संवेदनशील लघु कथा ! हार्दिक बधाई।</p>
<p>अति संवेदनशील लघु कथा ! हार्दिक बधाई।</p> आदरणीय JAWAHAR LAL SINGH जी…tag:openbooksonline.com,2015-07-08:5170231:Comment:6738712015-07-08T01:54:35.635ZOmprakash Kshatriyahttp://openbooksonline.com/profile/OmprakashKshatriya
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/JAWAHARLALSINGH">JAWAHAR LAL SINGH</a><a class="nolink"> </a> जी बहुत ही सुन्दर लघुकथा. आजकल के ढकोसलों पर . बधाई</p>
<p>केवल <span>प्रशंशा को प्रशंसा कर लीजिए .</span></p>
<p>आदरणीय <a href="http://www.openbooksonline.com/profile/JAWAHARLALSINGH">JAWAHAR LAL SINGH</a><a class="nolink"> </a> जी बहुत ही सुन्दर लघुकथा. आजकल के ढकोसलों पर . बधाई</p>
<p>केवल <span>प्रशंशा को प्रशंसा कर लीजिए .</span></p> बुज़ुर्ग तो अतृप्त ही स्वर्ग स…tag:openbooksonline.com,2015-07-07:5170231:Comment:6735972015-07-07T16:56:31.043Zविनय कुमारhttp://openbooksonline.com/profile/vinayakumarsingh
<p>बुज़ुर्ग तो अतृप्त ही स्वर्ग सिधार जाते हैं और बाद में ये सब ढोंग लोगों को दिखाने के लिए हटा है | सुन्दर लघुकथा , बधाई आदरणीय..</p>
<p>बुज़ुर्ग तो अतृप्त ही स्वर्ग सिधार जाते हैं और बाद में ये सब ढोंग लोगों को दिखाने के लिए हटा है | सुन्दर लघुकथा , बधाई आदरणीय..</p> आदरणीय अग्रज तुल्य कुशवाहा जी…tag:openbooksonline.com,2015-07-07:5170231:Comment:6738242015-07-07T14:14:27.735ZJAWAHAR LAL SINGHhttp://openbooksonline.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p>आदरणीय अग्रज तुल्य कुशवाहा जी, हम सभी लोक-लाज के लिए बहुत सारी प्रथाओं का अन्धानुकरण करते हैं ... कम से कम जीते जी किसी बुजुर्ग को तकलीफ न हो ...प्रयास यही होना चाहिए ...पर ????</p>
<p>आदरणीय अग्रज तुल्य कुशवाहा जी, हम सभी लोक-लाज के लिए बहुत सारी प्रथाओं का अन्धानुकरण करते हैं ... कम से कम जीते जी किसी बुजुर्ग को तकलीफ न हो ...प्रयास यही होना चाहिए ...पर ????</p> जी आदरणीया कांता रॉय जी मैं भ…tag:openbooksonline.com,2015-07-07:5170231:Comment:6737262015-07-07T14:11:14.283ZJAWAHAR LAL SINGHhttp://openbooksonline.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p>जी आदरणीया कांता रॉय जी मैं भी सीख ही रहा हूँ बस आपलोगों ने मान दिया यही काफी है ...जबकि तथ्य से हम सभी वाकिफ हैं ...अगर वहां असर हो वही काफी है सादर!</p>
<p>जी आदरणीया कांता रॉय जी मैं भी सीख ही रहा हूँ बस आपलोगों ने मान दिया यही काफी है ...जबकि तथ्य से हम सभी वाकिफ हैं ...अगर वहां असर हो वही काफी है सादर!</p>