Comments - शहर की रूमानियत जाने कहाँ पर खो गयी - Open Books Online2024-03-29T11:55:34Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A679951&xn_auth=noआदरणीय सुशील सिंह जी, सादर अभ…tag:openbooksonline.com,2015-07-24:5170231:Comment:6805492015-07-24T13:12:50.859ZJAWAHAR LAL SINGHhttp://openbooksonline.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p>आदरणीय सुशील सिंह जी, सादर अभिवादन ...मेरी भावना को सम्मान देने के लिए आपका ह्रदय से आभार!</p>
<p>आदरणीय सुशील सिंह जी, सादर अभिवादन ...मेरी भावना को सम्मान देने के लिए आपका ह्रदय से आभार!</p> आदरणीया कांता जी, सादर अभिवाद…tag:openbooksonline.com,2015-07-24:5170231:Comment:6806422015-07-24T13:11:25.346ZJAWAHAR LAL SINGHhttp://openbooksonline.com/profile/JAWAHARLALSINGH
<p>आदरणीया कांता जी, सादर अभिवादन! आपने मेरी अभिव्यक्ति को समझा, सराहा, मान दिया इसके लिए मैं आपका शुक्रगुजार हूँ ...शिल्पगत त्रुटियाँ हो सकती हैं, जिनमे मैं अभी सीखने के दौर में हूँ, पर भावनाएं व्यक्त कर पाया हूँ इसका मुझे संतोष है ..सादर!</p>
<p>आदरणीया कांता जी, सादर अभिवादन! आपने मेरी अभिव्यक्ति को समझा, सराहा, मान दिया इसके लिए मैं आपका शुक्रगुजार हूँ ...शिल्पगत त्रुटियाँ हो सकती हैं, जिनमे मैं अभी सीखने के दौर में हूँ, पर भावनाएं व्यक्त कर पाया हूँ इसका मुझे संतोष है ..सादर!</p> ख्याल रखना घर का मेरा, जा रहे…tag:openbooksonline.com,2015-07-24:5170231:Comment:6806092015-07-24T09:55:38.567ZSushil Sarnahttp://openbooksonline.com/profile/SushilSarna
<p>ख्याल रखना घर का मेरा, जा रहे हैं छोड़कर<br/>सुन के उनकी बात जैसे, आत्मा भी रो गयी<br/> <br/>वाह बहुत ही सुंन्दर भाव बन पड़े हैं आदरणीय जवाहर जी … इस गहन अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई।</p>
<p>ख्याल रखना घर का मेरा, जा रहे हैं छोड़कर<br/>सुन के उनकी बात जैसे, आत्मा भी रो गयी<br/> <br/>वाह बहुत ही सुंन्दर भाव बन पड़े हैं आदरणीय जवाहर जी … इस गहन अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई।</p> बेहद भावपूर्ण प्रस्तुति है यह…tag:openbooksonline.com,2015-07-24:5170231:Comment:6803592015-07-24T06:02:57.036Zkanta royhttp://openbooksonline.com/profile/kantaroy
बेहद भावपूर्ण प्रस्तुति है यह आपकी । शहर की रूमानियत जाने कहाँ खो गई.......<br />
अजनबी से लग रहे हैं, जो कभी थे मित्रवत<br />
रूह की रूमानियत, झटके में कैसे सो गयी........ बडी बातों में ही कई बात आप ऐसे कह गये ... जाने कितने गये गुजरे जमाने खो गये । स्वार्थ के पैरों तले रौंदे गये सब रौनके .......बधाई आपको आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी
बेहद भावपूर्ण प्रस्तुति है यह आपकी । शहर की रूमानियत जाने कहाँ खो गई.......<br />
अजनबी से लग रहे हैं, जो कभी थे मित्रवत<br />
रूह की रूमानियत, झटके में कैसे सो गयी........ बडी बातों में ही कई बात आप ऐसे कह गये ... जाने कितने गये गुजरे जमाने खो गये । स्वार्थ के पैरों तले रौंदे गये सब रौनके .......बधाई आपको आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी