Comments - डस्ट-बिन....(लघुकथा) - Open Books Online2024-03-29T12:44:12Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A691855&xn_auth=noनहीं, आदरणीय गिरिराज भाई, आप…tag:openbooksonline.com,2015-09-02:5170231:Comment:6947542015-09-02T18:31:16.789ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>नहीं, आदरणीय गिरिराज भाई, आप बिल्कुल सही हैं. जितेन्द्रभाई के प्रस्तुतीकरण में स्पष्टतः संप्रेषणीयता की कमी है. </p>
<p>जितेन्द्र भाई बहुत दिनों के बाद आपको मंच पर देख कर आत्मीय प्रसन्नता हुई है. विश्वास है, सब कुशल-मंगल है </p>
<p></p>
<p>प्रस्तुति पर तनिक और समय देना चाहिये था </p>
<p>शुभेच्छाएँ</p>
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<p>नहीं, आदरणीय गिरिराज भाई, आप बिल्कुल सही हैं. जितेन्द्रभाई के प्रस्तुतीकरण में स्पष्टतः संप्रेषणीयता की कमी है. </p>
<p>जितेन्द्र भाई बहुत दिनों के बाद आपको मंच पर देख कर आत्मीय प्रसन्नता हुई है. विश्वास है, सब कुशल-मंगल है </p>
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<p>प्रस्तुति पर तनिक और समय देना चाहिये था </p>
<p>शुभेच्छाएँ</p>
<p></p> आदरणीय जितेन्द्र भाई , पहली ब…tag:openbooksonline.com,2015-08-27:5170231:Comment:6921552015-08-27T04:44:39.316Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>आदरणीय जितेन्द्र भाई , पहली बार आपकी कथा पढ के ऐसा लगा कि आप जो कहना चाहते हैं , कह नही पाये हैं । वैसे मै भी गलत हो सकता हूँ , मुझे लघुकथा का ज्ञान नही है , फिर भी एक बार पुनः कथा पर सोच कर देखियेगा । कथा के विषय के लिये बधाई आपको ।</p>
<p>आदरणीय जितेन्द्र भाई , पहली बार आपकी कथा पढ के ऐसा लगा कि आप जो कहना चाहते हैं , कह नही पाये हैं । वैसे मै भी गलत हो सकता हूँ , मुझे लघुकथा का ज्ञान नही है , फिर भी एक बार पुनः कथा पर सोच कर देखियेगा । कथा के विषय के लिये बधाई आपको ।</p> आपकी यह रचना कुछ उलझी हुई लग…tag:openbooksonline.com,2015-08-25:5170231:Comment:6920212015-08-25T18:14:57.316ZArchana Tripathihttp://openbooksonline.com/profile/ArchanaTripathi
आपकी यह रचना कुछ उलझी हुई लग रही हैं ।क्षमा कीजियेगा जीतेन्द्र पस्टारीया जी ।कृपया स्पष्ट करने की कृपा कीजिये ।
आपकी यह रचना कुछ उलझी हुई लग रही हैं ।क्षमा कीजियेगा जीतेन्द्र पस्टारीया जी ।कृपया स्पष्ट करने की कृपा कीजिये ।