Comments - ''मन महकाये जब बौंराई अमिया'' - Open Books Online2024-03-28T16:22:26Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A700923&xn_auth=noजी आदरणीय गोपाल सर!मात्रिक बह…tag:openbooksonline.com,2015-09-29:5170231:Comment:7027082015-09-29T06:50:35.569ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
जी आदरणीय गोपाल सर!मात्रिक बहर में एक और कोशिश की थी..आगे और बेहतर करने का प्रयास रहेगा।आ.इसी प्रकार स्नेह बनाये रक्खें।सादर।
जी आदरणीय गोपाल सर!मात्रिक बहर में एक और कोशिश की थी..आगे और बेहतर करने का प्रयास रहेगा।आ.इसी प्रकार स्नेह बनाये रक्खें।सादर। प्रिय कृष्ण , मुझे एक प्रयोग…tag:openbooksonline.com,2015-09-28:5170231:Comment:7020502015-09-28T04:53:55.708Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>प्रिय कृष्ण , मुझे एक प्रयोग जैसी लगी यह गजल . तुक तीन तरह के होते है अगर आप उत्कृष्ट कोटि के तुक लेकर रचना करे तो आपकी प्रतिभा के साथ न्याय होगा ,</p>
<p>प्रिय कृष्ण , मुझे एक प्रयोग जैसी लगी यह गजल . तुक तीन तरह के होते है अगर आप उत्कृष्ट कोटि के तुक लेकर रचना करे तो आपकी प्रतिभा के साथ न्याय होगा ,</p> तहेदिल से आभार आ० श्याम नरायण…tag:openbooksonline.com,2015-09-25:5170231:Comment:7013502015-09-25T07:25:27.593ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
<p>तहेदिल से आभार आ० श्याम नरायण वर्मा जी!</p>
<p>सादर!</p>
<p>तहेदिल से आभार आ० श्याम नरायण वर्मा जी!</p>
<p>सादर!</p> बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल…tag:openbooksonline.com,2015-09-25:5170231:Comment:7013412015-09-25T06:39:30.454ZShyam Narain Vermahttp://openbooksonline.com/profile/ShyamNarainVerma
<table border="0" cellspacing="0" width="516">
<tbody><tr><td height="20" class="xl65" align="left" width="516">बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर</td>
</tr>
</tbody>
</table>
<table border="0" cellspacing="0" width="516">
<tbody><tr><td height="20" class="xl65" align="left" width="516">बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर ग़ज़ल पर</td>
</tr>
</tbody>
</table> नेट कनेक्टिविटी की समस्या के…tag:openbooksonline.com,2015-09-24:5170231:Comment:7009622015-09-24T16:52:08.769ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
नेट कनेक्टिविटी की समस्या के चलते ठीक प्रकार से जुड़ नही पा रहा हूँ।<br />
<br />
आदरणीय मिथिलेश सर उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए तहेदिल से आभारी हूँ।जी आ.पूर्व में वीनस सर से भी मात्रिक बहर पर चर्चा के दौरान अंत में द्विकल के प्रयोग की चर्चा हुयी थी...और उसी अनुसार बह्र में रखने के क्रम में "<br />
सागर /से बा/ रिश है / बारिश /से नदि/ या"रख कर सोचा भी था पर मुझे "सागर से बारिश बारिश से नदिया"जाने क्यों अधिक लय में लगा सो चार अंत में फ़ा को नही रक्खा इसकी इक वजह गजल में रदीफ़ का न होना भी रही। रफ़ीफ़ बढ़ने पर वो…
नेट कनेक्टिविटी की समस्या के चलते ठीक प्रकार से जुड़ नही पा रहा हूँ।<br />
<br />
आदरणीय मिथिलेश सर उत्साहवर्धन और मार्गदर्शन के लिए तहेदिल से आभारी हूँ।जी आ.पूर्व में वीनस सर से भी मात्रिक बहर पर चर्चा के दौरान अंत में द्विकल के प्रयोग की चर्चा हुयी थी...और उसी अनुसार बह्र में रखने के क्रम में "<br />
सागर /से बा/ रिश है / बारिश /से नदि/ या"रख कर सोचा भी था पर मुझे "सागर से बारिश बारिश से नदिया"जाने क्यों अधिक लय में लगा सो चार अंत में फ़ा को नही रक्खा इसकी इक वजह गजल में रदीफ़ का न होना भी रही। रफ़ीफ़ बढ़ने पर वो बात नही आ प् रही थी।आगे इस बह्र में अंत में द्विकल जरूर रखने का प्रयास करूँगा।आ.इसी प्रकार अपने अनुज का मार्गदर्शन करते रहे।सादर। आ. कान्ता जी गजल के भाव आप तक…tag:openbooksonline.com,2015-09-24:5170231:Comment:7010682015-09-24T13:53:36.257ZKrish mishra 'jaan' gorakhpurihttp://openbooksonline.com/profile/krishnamishrajaangorakhpuri
आ. कान्ता जी गजल के भाव आप तक पहुँचे जानकर ख़ुशी हुयी रचनाकर्म फलित हुआ।सादर आभार।
आ. कान्ता जी गजल के भाव आप तक पहुँचे जानकर ख़ुशी हुयी रचनाकर्म फलित हुआ।सादर आभार। आदरणीय कृष्ण भाई जी, इस प्रस्…tag:openbooksonline.com,2015-09-24:5170231:Comment:7007702015-09-24T10:03:02.193Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooksonline.com/profile/mw
<p>आदरणीय कृष्ण भाई जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.</p>
<p></p>
<p>इस प्रस्तुति के हवाले से कुछ महत्वपूर्ण बातें जो मैंने अनुभव की साझा कर रहा हूँ. फैलुन फैलुन की आवृत्ति वाली वे बहरे अधिक प्रसिद्द हुई है जिनमें फैलुन फैलुन की आवृत्ति के बाद एक फा भी लिया जाता है. इससे मिसरे के विन्यास में पूर्णता का आभास होता है. जैसे आपका ये मिसरा - <em>सागर से बारिश बारिश से नदिया</em></p>
<p>इसे अगर यूं कहे तो मिसरे का विन्यास ज्यादा अच्छा लगता है - <strong>सागर से बारिश…</strong></p>
<p>आदरणीय कृष्ण भाई जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.</p>
<p></p>
<p>इस प्रस्तुति के हवाले से कुछ महत्वपूर्ण बातें जो मैंने अनुभव की साझा कर रहा हूँ. फैलुन फैलुन की आवृत्ति वाली वे बहरे अधिक प्रसिद्द हुई है जिनमें फैलुन फैलुन की आवृत्ति के बाद एक फा भी लिया जाता है. इससे मिसरे के विन्यास में पूर्णता का आभास होता है. जैसे आपका ये मिसरा - <em>सागर से बारिश बारिश से नदिया</em></p>
<p>इसे अगर यूं कहे तो मिसरे का विन्यास ज्यादा अच्छा लगता है - <strong>सागर से बारिश <span style="text-decoration: underline;">है</span>, बारिश से नदिया</strong></p>
<p></p>
<p>दूसरी बात फैलुन फैलुन की आवृत्ति वाली बह्रों में शब्द-<span>कलों</span><span> पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि मिसरों के वाचन के क्रम में लयभंगता की स्थिति उत्पन्न न हो. जैसे आपका मिसरा</span></p>
<p><span>------------ <span>सागर /से बा/ रिश है / बारिश /से नदि/ या----- यानी -------</span></span></p>
<p><span><span>--------------फैलुन/फैलुन/फैलुन/फैलुन/फैलुन/फा </span></span></p>
<p>इसमें पांच चौकल और एक द्विकल ने मिसरे को कितना लयात्मक कर दिया है. </p>
<p>अब इस मिसरे को देखिये----<span>पक्की छत में जगह उसी को न मिली---- इसमें चौकल बनने की कठिनाई ने इसमें लयभंगता की स्थिति ला दी है. किसी भी पद्य विधा में लयात्मक सम्प्रेषण की प्राथमिकता होती है और यह केवल और केवल शब्द कलों के माध्यम से ही संभव है. सादर </span></p> देहात को जैसे समेट लिया है आप…tag:openbooksonline.com,2015-09-24:5170231:Comment:7008652015-09-24T07:47:11.554Zkanta royhttp://openbooksonline.com/profile/kantaroy
देहात को जैसे समेट लिया है आपने अपनी रचना में आदरणीय कृष्णा मिश्रा जी । नदियाँ ,रोटी , छप्पर और अमुआ की बौर की महक पढते हुए भावो को मन को भी बौरा गई । बधाई
देहात को जैसे समेट लिया है आपने अपनी रचना में आदरणीय कृष्णा मिश्रा जी । नदियाँ ,रोटी , छप्पर और अमुआ की बौर की महक पढते हुए भावो को मन को भी बौरा गई । बधाई