Comments - चिता कब बनोगी ? - Open Books Online2024-03-29T10:47:58Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A714450&xn_auth=noतुम चिता कब बनोगी ?’ क्या बा…tag:openbooksonline.com,2015-11-16:5170231:Comment:7155932015-11-16T09:57:02.623Zगिरिराज भंडारीhttp://openbooksonline.com/profile/girirajbhandari
<p>तुम चिता कब बनोगी ?’ क्या बात है बड़े भाई गोपाल जी , वाह , सटीक प्रश्न , बहुत सुन्दर कविता लगी आपकी , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।</p>
<p>तुम चिता कब बनोगी ?’ क्या बात है बड़े भाई गोपाल जी , वाह , सटीक प्रश्न , बहुत सुन्दर कविता लगी आपकी , आपको हार्दिक बधाइयाँ ।</p> चिता की लकड़ी या गीली लकड़ी ,,इ…tag:openbooksonline.com,2015-11-15:5170231:Comment:7153002015-11-15T07:16:15.933Zpratibha pandehttp://openbooksonline.com/profile/pratibhapande
<p>चिता की लकड़ी या गीली लकड़ी ,,इन दोनों से हटकर एक हरी भरी लकड़ी क्यों नहीं बन पातीं , बहुत गहरे प्रश्न कर रही है आपकी रचना आदरणीय </p>
<p>चिता की लकड़ी या गीली लकड़ी ,,इन दोनों से हटकर एक हरी भरी लकड़ी क्यों नहीं बन पातीं , बहुत गहरे प्रश्न कर रही है आपकी रचना आदरणीय </p> आ० पंकज जी - बहुत बहुत शुक्रि…tag:openbooksonline.com,2015-11-14:5170231:Comment:7149052015-11-14T06:16:27.418Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० पंकज जी - बहुत बहुत शुक्रिया .</p>
<p>आ० पंकज जी - बहुत बहुत शुक्रिया .</p> आ० मिथिलेश जी - आपके प्रोत्सा…tag:openbooksonline.com,2015-11-14:5170231:Comment:7149522015-11-14T06:15:58.412Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० मिथिलेश जी - आपके प्रोत्साहन से बल मिला . सादर .</p>
<p>आ० मिथिलेश जी - आपके प्रोत्साहन से बल मिला . सादर .</p> आ० सौरभ जी - आपका आशीर्वाद मे…tag:openbooksonline.com,2015-11-14:5170231:Comment:7150532015-11-14T06:14:56.677Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० सौरभ जी - आपका आशीर्वाद मेरे लिए सदैव विशेष रहता है , सादर .</p>
<p>आ० सौरभ जी - आपका आशीर्वाद मेरे लिए सदैव विशेष रहता है , सादर .</p> आ० अजय कुमार जी - आपका कृतज…tag:openbooksonline.com,2015-11-14:5170231:Comment:7148002015-11-14T06:14:05.974Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० अजय कुमार जी - आपका कृतज्ञ हूँ .</p>
<p>आ० अजय कुमार जी - आपका कृतज्ञ हूँ .</p> आ० राहिला जी आपका आभार .tag:openbooksonline.com,2015-11-14:5170231:Comment:7150512015-11-14T06:12:33.309Zडॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवhttp://openbooksonline.com/profile/GOPALNARAINSRIVASTAVA
<p>आ० राहिला जी आपका आभार .</p>
<p>आ० राहिला जी आपका आभार .</p> आदरणीय गोपाल सर, कविता ने बहु…tag:openbooksonline.com,2015-11-12:5170231:Comment:7146202015-11-12T18:18:03.463Zमिथिलेश वामनकरhttp://openbooksonline.com/profile/mw
<p><span>आदरणीय गोपाल सर, कविता ने बहुत गहरे तक प्रभावित किया और झिंझोड़ दिया. आपने कथ्य के मर्म को जैसा शाब्दिक किया है वह चकित करता है. इस उत्कृष्ट प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. </span></p>
<p><span>आदरणीय गोपाल सर, कविता ने बहुत गहरे तक प्रभावित किया और झिंझोड़ दिया. आपने कथ्य के मर्म को जैसा शाब्दिक किया है वह चकित करता है. इस उत्कृष्ट प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. </span></p> आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपकी इ…tag:openbooksonline.com,2015-11-12:5170231:Comment:7144622015-11-12T17:44:43.505ZSaurabh Pandeyhttp://openbooksonline.com/profile/SaurabhPandey
<p>आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपकी इस कविता से मन सुन्न है. स्त्रियों की दुर्दशा पर ऐसी सटीक रचना हाल-फिलहाल में मंच पर पोस्ट नहीं हुई है. आपकी संवेदनशीलता पर मैं अभिभूत हूँ. इस सशक्त रचना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.</p>
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<p>आदरणीय गोपाल नारायनजी, आपकी इस कविता से मन सुन्न है. स्त्रियों की दुर्दशा पर ऐसी सटीक रचना हाल-फिलहाल में मंच पर पोस्ट नहीं हुई है. आपकी संवेदनशीलता पर मैं अभिभूत हूँ. इस सशक्त रचना के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.</p>
<p></p> आदरणीय गोपाल सर अद्वितीय लेखन…tag:openbooksonline.com,2015-11-12:5170231:Comment:7145112015-11-12T17:24:56.744ZAjay Kumar Sharmahttp://openbooksonline.com/profile/AjayKumarSharma805
<p>आदरणीय गोपाल सर अद्वितीय लेखन। मार्मिक रचना । मन को द्रवित कर गयी।</p>
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<p>आदरणीय गोपाल सर अद्वितीय लेखन। मार्मिक रचना । मन को द्रवित कर गयी।</p>
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