Comments - लड़ाई मज़हबी फिर से छिड़ी है (ग़ज़ल) - Open Books Online2024-03-29T12:32:57Zhttp://openbooksonline.com/profiles/comment/feed?attachedTo=5170231%3ABlogPost%3A717386&xn_auth=noआदरणीय राजेश कुमारी जी, हार्द…tag:openbooksonline.com,2016-02-23:5170231:Comment:7425702016-02-23T16:52:50.688Zजयनित कुमार मेहताhttp://openbooksonline.com/profile/JaynitKumarMehta
आदरणीय राजेश कुमारी जी, हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ आपके प्रति।
आदरणीय राजेश कुमारी जी, हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ आपके प्रति। अच्छी ग़ज़ल हुई है जयनित साहब,…tag:openbooksonline.com,2016-02-23:5170231:Comment:7425022016-02-23T08:19:51.478Zधर्मेन्द्र कुमार सिंहhttp://openbooksonline.com/profile/249pje3yd1r3m
<p>अच्छी ग़ज़ल हुई है जयनित साहब, दाद कुबूल कीजिए।</p>
<p>अच्छी ग़ज़ल हुई है जयनित साहब, दाद कुबूल कीजिए।</p> संशोधन के बाद क्या लाजबाब शेर…tag:openbooksonline.com,2015-11-26:5170231:Comment:7176562015-11-26T08:40:51.558Zrajesh kumarihttp://openbooksonline.com/profile/rajeshkumari
<p>संशोधन के बाद क्या लाजबाब शेर हुआ है ..बहुत सुन्दर ग़ज़ल शेर दर शेर दाद कुबूलें जयनित जी </p>
<p>संशोधन के बाद क्या लाजबाब शेर हुआ है ..बहुत सुन्दर ग़ज़ल शेर दर शेर दाद कुबूलें जयनित जी </p> आदरणीय जयनित जी मेरे कहे को म…tag:openbooksonline.com,2015-11-26:5170231:Comment:7174632015-11-26T07:56:18.460ZRavi Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/RaviShukla
<p>आदरणीय जयनित जी मेरे कहे को मान देने के लिये आभार ।</p>
<p>आदरणीय जयनित जी मेरे कहे को मान देने के लिये आभार ।</p> आदरणीय नादिर ख़ान जी, आपको ग़ज़ल…tag:openbooksonline.com,2015-11-26:5170231:Comment:7175732015-11-26T07:35:46.783Zजयनित कुमार मेहताhttp://openbooksonline.com/profile/JaynitKumarMehta
<p>आदरणीय नादिर ख़ान जी, आपको ग़ज़ल पसंद आई,इसके लिए मेरा दिल से धन्यवाद आपको। लगता है मेरा लिखना सार्थक हुआ..</p>
<p>आदरणीय नादिर ख़ान जी, आपको ग़ज़ल पसंद आई,इसके लिए मेरा दिल से धन्यवाद आपको। लगता है मेरा लिखना सार्थक हुआ..</p> दहल जाए न फिर इंसानियत 'जय',ल…tag:openbooksonline.com,2015-11-26:5170231:Comment:7176462015-11-26T05:26:31.771Zनादिर ख़ानhttp://openbooksonline.com/profile/Nadir
<p><span>दहल जाए न फिर इंसानियत 'जय',</span><br/><span>लड़ाई मज़हबी फिर से छिड़ी है.</span></p>
<p></p>
<p><span>सही कहा आदरनीय जयनित जी मज़हब की लड़ाई में सबसे ज्यादा नुक्सान इंसानियत को ही होता है। उम्दा ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद स्वीकार करें ... </span></p>
<p><span>दहल जाए न फिर इंसानियत 'जय',</span><br/><span>लड़ाई मज़हबी फिर से छिड़ी है.</span></p>
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<p><span>सही कहा आदरनीय जयनित जी मज़हब की लड़ाई में सबसे ज्यादा नुक्सान इंसानियत को ही होता है। उम्दा ग़ज़ल के लिए मुबारकबाद स्वीकार करें ... </span></p> आदरणीय रवि जी, कहन की त्रुटिय…tag:openbooksonline.com,2015-11-25:5170231:Comment:7176202015-11-25T11:13:35.654Zजयनित कुमार मेहताhttp://openbooksonline.com/profile/JaynitKumarMehta
<p>आदरणीय रवि जी, कहन की त्रुटियों पर ध्यान देने के लिए बहुत-बहुत आभार आपका। मैं ग़ज़ल में संशोधन कर रहा हूँ..</p>
<p>आदरणीय रवि जी, कहन की त्रुटियों पर ध्यान देने के लिए बहुत-बहुत आभार आपका। मैं ग़ज़ल में संशोधन कर रहा हूँ..</p> आदरणीय जयनित जी । सुन्दर प्रव…tag:openbooksonline.com,2015-11-25:5170231:Comment:7175342015-11-25T10:44:53.299ZRavi Shuklahttp://openbooksonline.com/profile/RaviShukla
आदरणीय जयनित जी । सुन्दर प्रवाह पूर्ण ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर मुबारक बाद क़ुबूल करे । पिया के घर किसी बेटी के जाने से हर और मातम फैल जाने के कथन से विनम्रता पूर्वक मैं असहमत हूँ । पिता अपनी पुत्री को विदा करता है दुखी होना स्वाभाविक है किन्तु उसका एक पुनीत कर्तव्य भी है ये ।इसमें मातम की मौजूदगी थोड़ी असहज लगी । सादर ।
आदरणीय जयनित जी । सुन्दर प्रवाह पूर्ण ग़ज़ल के लिए शेर दर शेर मुबारक बाद क़ुबूल करे । पिया के घर किसी बेटी के जाने से हर और मातम फैल जाने के कथन से विनम्रता पूर्वक मैं असहमत हूँ । पिता अपनी पुत्री को विदा करता है दुखी होना स्वाभाविक है किन्तु उसका एक पुनीत कर्तव्य भी है ये ।इसमें मातम की मौजूदगी थोड़ी असहज लगी । सादर ।